Monday, November 18, 2024
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प्रणय का तीसरा कोण

मौली आज पाँच साल बाद मुस्कुराई थी अपने पाँच साल पुराने प्यार को देखकर, माँ-पापा की इज्जत की ख़ातिर अक्षत से शादी तो कर ली, पर पति की जो छवि मौली के मन मैं थी उस फ्रेम में अक्षत का किरदार फिट नहीं बैठता था। मौली को अपना साथी चंचल, खुशमिजाज, हंसमुख खुलकर प्यार जताने वाला और मजाकिया स्वभाव का पसंद था। उसके विपरीत अक्षत कम बोलने वाला, अकड़ू बात बात पर गुस्सा करने वाला और प्यार जताने में नीरस स्वभाव का था। पर मौली जानती थी अक्षत अंदर ही अंदर मौली पर जान छिड़कता था। पर जो अपेक्षा मौली को पति के किरदार से थी उसमें अक्षत खरा नहीं उतर पा रहा था। मौली ने जो शादीशुदा जीवन की कल्पना की थी वैसा इस ज़िंदगी में कुछ नहीं था। ज़िंदगी जी नहीं रही थी बस काट रही थी।
मुरझाए फूल सी मौली ने जीवन में कुछ रंग भरने के लिए फेसबुक ज्वाइन किया, कुछ जानें, कुछ पहचाने दोस्तों से मिलकर मौली को अच्छा लगता था मानों खुश रहने का ज़रिया मिल गया। पर आज अचानक प्रतिक की फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी तो चेहरे पर हज़ारों रंग ठहर गए, सालों बाद हंसी ने होठों को पहचान लिया। यस प्रतिक मिश्रा जो कालेज के ज़माने में मौली का आशिक था, मरता था मौली पर। पर मौली के घर का वातावरण थोड़ा अठारहवीं सदी वाला था। पापा भी कड़क स्वभाव के और बड़ा भाई राहुल तो मानों बोड़ीगार्ड ही समझो। मौली चाहते हुए भी किसी लड़के की तरफ़ आँख उठाकर नहीं देख सकती थी। मौली भी मन ही मन प्रतिक को चाहती थी पर प्रतिक की चाहत का प्रतिसाद देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई कभी। प्रतिक ने बहुत बार अपने प्यार का इज़हार किया पर मौली की चाहत ने घरवालों की सख़्ती के आगे सिसक कर दम तोड़ दिया और एक दिन माँ पापा की पसंद अक्षत के साथ शादी के बंधन में बंध गई।
आज प्रतिक को फेसबुक पर देखकर सोए अरमान जाग उठे, दिल के भीतर दबी चाहत अंगड़ाई ले उठी और एक पल की भी देरी न करते अंगूठे ने प्रतिक की रिक्वेस्ट को दावत दे दी मौली की ज़िंदगी में कदम रखने की।
हाय हैलो से शुरू हुए रिश्ते ने पुरानी चाहत को जगा दिया, तो आग दोनों तरफ़ लगी हुई थी दोनों शादीशुदा थे पर दिल पर किसका ज़ोर चला है। रिश्ता आगे बढ़ता मुलाकातों में तब्दील हो गया। मौली अब खुशखुशाल रहने लगी मानों जीवन में प्रतिक के आगमन ने हर कमी पूरी कर दी।
आहिस्ता-आहिस्ता मौली घर और अक्षत के प्रति बेदरकार होने लगी। अक्षत ने महसूस किया मौली का बदलाव पर जब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिलता कैसे मौली पर इल्जाम लगाता। अंदर ही अंदर सहम कर रह जाता, पर एक दिन अक्षत ने मौली और प्रतिक को हाथों में हाथ डालें एक रैस्टोरेंट में जाते हुए देख लिया। मौली को इतना खुशखुशाल कभी नहीं देखा था अक्षत स्वभाव अनुसार गुस्से से आगबबूला हो गया। पर घर आकर आराम से सोचा कहाँ गलती हुई की मौली इतना बदल गई।
दिमागी जद्दोजहद और आत्मनिरीक्षण किया क्यूँ मौली घर और अक्षत के प्रति बेदरकार हो गई थी, क्यूँ किसी और मर्द का सहारा लेना पड़ा ? गहरे आत्म-मंथन के बाद अक्षत को अहसास हुआ कि कहीं न कहीं गलती खुद की ही है। पत्नी एक नाजुक फूल सी होती है उसे प्यार, परवाह और चाहत की नमी से सिंचना होता है। मौली चंचल ज़िंदगी को जी भरकर जीने में मानती है, क्या चाहती थी मुझसे महज़ पति में एक प्रेमी ही तो चाहिए था मौली को जो मैं बन न पाया। आज तक बेरुख़ी ही तो दी है मैंने मौली को, तभी सच्चे प्यार की चाह में भटक रही है मौली। नहीं मुझे खुद को बदलना होगा मेरा घर परिवार बचाना होगा मौली को पत्नी का सही स्थान देकर एक प्रेमी की तरह सहलाकर मुरझाए फूल में प्राण भरकर इस प्रणय त्रिकोण का अंत करके मौली का भरोसा जीत कर वापस लाना होगा।
और एक ठोस निर्णय के साथ अक्षत खड़ा हुआ किचन में जाकर दो कप कोफ़ी बनाई और टेबल पर रख दी। इतने में मौली आ गई अक्षत को घर पर देखकर थोड़ा सकपकाई, पर अक्षत ने कुछ भी जताने नहीं दिया और प्यार से बोला आ गई स्विटहार्ट आजा आज हम दोनों साथ मिलकर कोफ़ी पीते है मैंने अपने हाथों से बनाई है। मौली को घोर आश्चर्य हुआ, क्या ये वही अक्षत है? अब तो अक्षत ने ठान लिया था मौली को तीसरे कोण के आख़री छोर तक पहुँचने नहीं देना और अक्षत एक बेतहाशा प्यार करने वाला आशिक बन गया। सुबह-सुबह मौली को चाय के कप और गुलाब का फूल देकर जगाना, बात बात पर प्यार जताना, कभी गाल सहलाना, कभी बालों में तेल मालिश कर देना, कभी बिना बात के भी उपहार लाकर देना, मूवी दिखाना, रैस्टोरेंट में खाना खिलाना और बेडरूम में अंतरंगी पलों में बेतहाशा बरस जाना। मौली की कल्पनाओं में बसा पति लौट आया था अब मौली की ज़िंदगी में हर रंग गुनगुना रहे थे। मौली जिस चाहत के लिए तरस रही थी वह चाहत अब धुआँ धार बरस रही थी तो मनचाही चाहत की तृप्ति ने अब प्रतिक से किनारा करना शुरू कर लिया। मौली ने एक दिन अक्षत को पूछा अक्षत ये बदलाव आप में कैसे आया अब तक मेरा पसंदीदा अक्षत कहाँ गुम था ? अक्षत ने ज़िक्र तक नहीं किया की उसने मौली को प्रतिक के साथ देख लिया था मौली को शर्मिंदा करना नहीं चाहता था, तो बस इतना ही बोला मैडम तुम्हारे जैसी ज़िंदादिल बीवी मिली है तो इतना तो सिखूँगा ना, की ज़िंदगी को जश्न की तरह जीना चाहिए और तुम्हारे जैसी खूबसूरत बीवी हो जब तो भला बेरुख़ी कौन पालें और मौली को बाँहों में भरकर बरस पड़ा। आज प्रेम की चरम पाकर मौली ने अपने बहकते कदमों में बेड़ियां डाल दी, फेसबुक अकाउंट बंद कर दिया जहाँ से प्रणय के तीसरे कोण का उद्भव हुआ था।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)