रायबरेली,पवन कुमार गुप्ता। पिछले कई वर्षों से सोशल मीडिया पर ऐसी तमाम तरह की बातें पढ़ने व सुनने को मिली हैं।जिनसे इतना तो समझ में आ गया है कि इस आधुनिक युग में विद्यार्थियों/पाठकों को विद्यालय में शिक्षकों से मिलने वाले ज्ञान से ज्यादा सोशल मीडिया के जरिए सामाजिक और साहित्य का ज्ञान प्राप्त हो रहा है। अभी पिछले दिनों एक बुक स्टॉल पर मेरी नजर एक पुस्तक पर पड़ी।बहुत कम मूल्य की इस पुस्तक का शीर्षक था‘मात्र एक महीने में घर बैठे डॉक्टर बनें’।हमारे देश में इसी प्रकार की और भी न जाने कितनी पुस्तकें बाज़ार में किताबों की दुकानों,सड़कों व फ़ुटपाथ पर बिकती दिखाई देंगी।जिनके शीर्षक में ही काफ़ी आकर्षण होगा।उदाहरण के तौर पर घर बैठे करोड़पति बनें,भाग्य शाली बनें,इंजीनियर बनें,पत्रकार बनें,इलेक्ट्रीशियन बनें,मैकेनिक बनें गायक व संगीतकार बनें इत्यादि।दूर से देखने में फुटपाथ पर सजी यह दुकाने तमाशा ही लगेंगी।लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन पुस्तकों की कीमत मात्र कुछ रुपए।
आधुनिक युग की भाषा परिवर्तन को देखते हुए क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाली एक पुस्तक इस बीच बेहद लोकप्रिय हुई है।जिसके शीर्षक में यह दावा किया जाता है कि घर बैठे फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलना सीखें/मात्र 90 दिनों में अंग्रेजी बोलना सींखे।इसके साथ ही अश्लील साहित्य प्रकाशन की तो हमारे देश में भरमार है।
सवाल यह है कि यदि उपरोक्त पुस्तकें इतनी ही प्रभाव शाली होतीं तो आज दस-बीस रुपये की इन्हीं पुस्तकों को पढ़ने के बाद पूरे देश में गली-गली फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाले,डॉक्टर,इंजीनियर,गीतकार-संगीतकार,गायक, मैकेनिक आदि दिखाई पड़ते।परंतु हकीकत में ऐसा नहीं है। गौरतलब यह है कि इस प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशक ऐसे प्रकाशन के माध्यम से चाहते क्या हैं?क्या वह वास्तव में लोगों को ज्ञान बांटना चाहते हैं?बडे़ शहरों में दशकों से फुटपाथ पर किताबें बिकती चली आ रहीं हैं।जहां पर सभी प्रकार की किताबों का संग्रह मिल जाता है।आज के समय में फुटपाथ पर एक से बढ़कर एक किताबों के साथ अलग-अलग कोर्स की भी किताबें उपलब्ध होती हैं।वर्ग डी से लेकर आईएएस तक की किताबें फुटपाथ पर बड़ी आसानी से बेहद कम दामों में मिल जाती हैं। इस तरह से यह कहा जा सकता हैं कि सड़कों पर बहती ‘ज्ञान की गंगा’विद्यार्थियों के लिए आधार हैं।आज भी फुटपाथ पर बिकती किताबें गरीब और मध्यम वर्गीय छात्रों का भविष्य संवार रही है। बड़े शहरों में सड़क पर वर्षों से बहती आ रही इस “ज्ञान की गंगा” ने कई अनमोल रत्न दिए हैं।इन किताबों को पढ़कर आज देश के कई छात्र बहुत से विभागों में अच्छे पदों पर आसीन होंगे।कई पुस्तक विक्रेताओं का कहना है कि इस आधुनिक युग में जहां सोशल मीडिया और गूगल जैसे ऐप पठन-पाठन और खोजबीन के बेहतरीन साधन हैं।फिर भी यह सभी पुस्तक प्रेमियों के मन में छुपी हुई किताबों का मोह तोड़ पाने में नाकाम रहे हैं और ऐसे किताब प्रेमी यहां से बहुत किफायती दामों में अपनी पसंदीदा किताब खरीद कर ले जाते हैं।हांलांकि एक किताब विक्रेता ने बताया कि यह डिजिटल युग हमारे कारोबार के लिए एक चुनौती है लेकिन अभी भी फुटपाथ पर बिकने वाली किताबों की पर्याप्त मांग है।