Thursday, May 2, 2024
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दिव्यांग का लॉकडाउन

कोरोना त्रासदी ने तो जीवन के माईने ही बदल दिए। लॉकडाउन ने जीवन की परिभाषा को नवीन रूप में परिवर्तित कर दिया। स्वतन्त्रता और स्वच्छंदता क्या होती है शायद इसकी कटु अनुभूति का सामना हुआ, पर क्या कभी हमनें सोचा है की जो दिव्यांगजन खुलकर जीवन नहीं जी पाते उनके मन में कैसी टीस होती होगी। उनका लॉकडाउन कैसे होता होगा। उनके मन की क्या व्यथा और मनोदशा होती होगी। कई बार हम लोग उदास होने पर घूम फिरकर माहौल में परिवर्तन कर किसी पर्यटक स्थल, तीर्थ स्थल या किसी बगीचे में जाकर अपने जीवन को एक नई ऊर्जा देते है और अच्छा महसूस करने लगते है, पर शायद दिव्यांगजन यह सब कुछ सहजता से नहीं कर पाते।
कोरोना संकट तो ईश्वर का प्रायोगिक ज्ञान ही है जोकि हम सबको दूसरों के मनोभावों को समझने का एक मौका देता है। कितना विषम और दुखद होता होगा दिव्यांगजन का लॉकडाउन। यह दो वर्ष हमें जीवन के सत्य का साक्षात्कार करा गए। इन दो वर्ष में हमनें हजारों वर्षों के लॉकडाउन को अनुभव किया तो सोचिए जरा कि दिव्यांगजन का लॉकडाउन कितना लंबा होता होगा। कितनी कठोर मनःस्थिति से गुजरते है वे लोग, कई बार अनजान लोगों के शब्दो की चोट, समाज का अतिरिक्त मूल्यांकन, बेवजह के ताने; शायद यह सब कुछ हृदय विदारक होता होगा। दिव्यांगजन हर समय शारीरिक और मानसिक स्तर पर जूझते और जीतते नज़र आते है इसके विपरीत सामान्य जन कभी-कभी विषम परिस्थितियों के चलते कई बार जीवन समाप्ती की ओर आत्महत्या का निर्णय लेते है।
पर इन सबके बीच में यह बात भी उजागर हुई है की कई दिव्यांगजन ने अपने सशक्त आत्मविश्वास के बलबूते नए कीर्तिमान स्थापित किए है। कोई भी दिव्यांग या आमजनमानस यदि आत्मविश्वास और मेहनत को अपना ध्येय बना ले तो जीवन की चुनौतियों से सहजता से निपटा जा सकता है। वर्तमान समय में हम ऐसे अनेकों उदाहरण देख सकते है जिसमें दिव्यांगजन से सफलताओं के नवीन आयाम रच दिए है। इसलिए सबसे जरूरी है स्वयं की कमियों और बुराइयों से लड़ना और जीतना। मन रूपी रथ को आशावादी नजरिए से और अथक प्रयास से सही दिशा दी जा सकती है। यदि हमनें यह मान लिया की हम कुछ बेहतर करने के लिए पूर्ण समर्पण से अपनी कार्यक्षमता का उपयोग करेंगे तो निश्चित ही हमें विजयपताका लहराने से कोई नहीं रोक सकता।
जब हम लॉकडाउन के व्यापक अनुभव को महसूस कर चुके है तो क्यों न हम दिव्यांगजन और सभी के साथ प्रेमपूर्ण और मित्रवत व्यवहार करें और उन्हें कुछ खुशी के क्षण भेंट करें। लॉकडाउन का असर हम में से कुछ लोगों के जीवन में नकारात्मक दृष्टिकोण को लेकर आया तो क्यों न हम एक नवीन समाज की परिकल्पना करें जो दिव्यांग के लॉकडाउन और अन्य लोगों के दु:ख को भी कुछ क्षणों के लिए खत्म करने का भरसक प्रयास करें। समाज में उदारवादी दृष्टिकोण और सभी के साथ सम्मान और अपनेपन के व्यवहार को अमल में लाना होगा। इन दो वर्षों के कोरोना नामक विश्वव्यापी गुरु से सीख लेकर जीवन के मूल अर्थ को समझने का प्रयत्न करना चाहिए और आनंद के कुछ क्षण और आध्यात्मिक ज्ञान को खोजने के लिए भी प्रयत्न करना चाहिए। शायद यह भी जीवन की वास्तविक पूँजी है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)