इंसान के जीवन में ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय हो तो आत्मा का कल्याण हो निश्चित है। ज्ञान फूल है, भक्ति सुगंध है और कर्म वो फल है जिसका रस आख़री साँस तक जिह्वा को शहद सी मिठास देता है।
एकः शत्रु र्न द्वितीयोऽस्ति शत्रुः ।
अज्ञानतुल्यः पुरुषस्य राजन् ॥
इन्सान का एक ही शत्रु है, अन्य कोई नहीं, वह है अज्ञान।
अज्ञान इंसान को जड़ बना देता है। पर सिर्फ़ ज्ञानी होने से जीवन का उद्धार नहीं होता, ज्ञान को पचाकर जीवन में उतारना अति आवश्यक है। ज्ञान वो उर्जा है जो इंसान को सही गलत की पहचान करवाते गलत कर्म करने से रोकता है। जहाँ से जितना मिले ज्ञान बटोरना चाहिए और ज्ञान बांटना भी चाहिए। जरूरी नहीं पढ़ाई-लिखाई से ही ज्ञान प्राप्त हो। हमारे आसपास हो रही गतिविधियाँ हमें बहुत कुछ सिखाती है। कभी-कभी एक छोटा बच्चा भी हमें ज़िंदगी का बहुत बड़ा सबक दे जाता है। मामूली सी चींटी को कभी देखा है? दो अलग-अलग दिशा से आवन-जावन करने वाली चींटी एक दूसरे को गले मिले बिना आगे नहीं बढ़ती। ये छोटी सी बात सही पर देखा जाए तो हम इंसानों को सीखने की जरूरत है हर किसीको अपना समझते प्यार से मिलना और रहना चाहिए। यही तो ज्ञान है।
भक्ति की बात करे तो महकती धूपबत्ती सी सराबोर सुगंधित है। इंसान का ईश्वर के साथ साक्षात्कार करवाते मोक्ष का मार्ग आसान करती है।
“श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्”
भक्ति वो शक्ति है जो जन्म-जन्मों के संचित पाप काटती है। भक्ति हमारी बुद्धि और हृदय को इतनी शुद्ध और निर्मल कर देती है कि हमारी अन्तरात्मा की आवाज हमें गलत कार्य करने के पहले रोक देती है। भक्ति करते-करते अन्तरात्मा की आवाज दृढ और साफ सुनाई देने लगती है। अन्तरात्मा की आवाज सुनने और मानने से वह और बुलंद होती चली जाती है। भक्ति मनुष्य को मानसिक व शारीरिक रूप से मजबूत बनाती है। भक्ति हर परिस्थिति से लड़ने का संबल प्रदान करती है। भक्ति की ही शक्ति थी जिसके बल पर हनुमानजी समुद्र पार कर गए थे, और शबरी जैसी आम भिलनी से भगवान श्री राम खुद मिलने गए थे।ईश्वर के किसी भी रुप का ध्यान एक ही शक्ति की पूजा है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश अलग नहीं एक ही शक्ति के नाम है। जो भी नाम पर श्रद्धा हो उठते-बैठते, सोते-जागते वो नाम दोहराया करो। किसी भी परिस्थिति में अंत:करण की प्रार्थना पर ईश्वर को भक्तों को साक्षात्कार देना पड़ता है।भक्ति के साथ सुकर्मों का समन्वय भव सागर पार लगा देगा कर्म के फल पर आत्मा का आवागमन ठहरा है।
*नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मण: शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मण*
शास्त्रों में बताए गए अपने धर्म के अनुसार कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से शरीर निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा।भगवद् गीता का यही संदेश है “जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान” हमें समझाता है कि सत्कर्मी हंमेशा सुखशैया पर सोता है। गलत काम करने वालें भले उपर से सुखी दिखते हो पर उनकी अंतरात्मा कचोटती जरूर है, और अंत समय उनका घिनौना होता है। सत्कर्मों का फल मिश्री सा मीठा होता है। बड़े बुज़ुर्गो के अच्छे कर्म उनके बच्चों को सुखी रखता है और आने वाली कई पीढ़ी यों पर ईश्वर का आशिर्वाद बना रहता है।जीवन सिर्फ़ मौज मस्ती या ऐशो-आराम का नाम नहीं। आत्मा का कल्याण भी जरूरी है, जिससे लिए ज्ञान, भक्ति और कर्म का समन्वय होना आवश्यक है। ये वो कश्ती है जिनके सहारे जीवन नैया भव सागर पार लगाती है।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलूरु, कर्नाटक)