Friday, September 20, 2024
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क्या वाकई में महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं ….?

⇒घूंघट में ही दिन गुजार रही ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं
पवन कुमार गुप्ता, रायबरेली। सरकार और प्रशासन महिला सशक्तिकरण पर जोर दे रहा है और आज तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं भी दी जा रही हैं। किंतु विचारणीय है कि क्या ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं भी समाज के विकास का हिस्सा बन चुकी हैं या नहीं या फिर शहरी क्षेत्र की माहिलाएं ही सशक्त हुई हैं और ग्रामीण क्षेत्र में आज भी महिलाएं घूंघट की आड़ में ही दिन गुजार रही हैं।
हालात तो यह हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं पुरुषों के इशारे पर ही काम कर रही है। जिले भर में विगत कई वर्षों से महिलाओं ने राजनीति में भी कदम तो रखा है लेकिन उसमें से कुछ महिलाओं ने ही अपने बलबूते पर पहचान बनाई है, बाकी तो कठपुतली की भांति कार्य कर रही हैं। इन महिलाओं को पुरुषों ने राजनीति में केवल अपना मोहरा बनाया है और चाल वह स्वयं से चल रहे हैं।
महिलाओं ने राजनीति में कदम तो रखा है लेकिन प्रशासनिक अधिकारी ही उन्हें उसका हकदार नहीं मानते हैं और न ही उन्हें वरीयता देते हैं। उक्त विचारों का संबंध रायबरेली जिले की महिला ग्राम प्रधानों से भी है जिन्हें जनता ने चुन तो लिया,परंतु आज तक कभी उन्हें घूंघट से बाहर नहीं देखा । गौर करने वाली बात है कि यह सब रायबरेली जिले के अंदर तब हो रहा है, जब जिले की उच्च प्रशासनिक पदों पर महिलाएं ही आसीन हो। डीएम, सीडीओ, सिटी मजिस्ट्रेट और भी कई उच्च पदों पर महिला अधिकारी ही कार्यरत हैं। फिर भी महिलाओं को समाज में आगे लाने और उनका हक दिलाने में जिला की महिला अधिकारी ही नाकाम है। ऐसे में कैसे मान लिया जाए कि जनपद की महिलाएं सशक्त हैं और उन्हें कैसे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई दी जाए।
जिले के ब्लॉक व तहसील स्तर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम जैसे कि त्योहारों पर शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए पीस कमेटी की बैठक, समाधान दिवस, थाना दिवस, तहसील दिवस, ब्लॉक दिवस इत्यादि सार्वजनिक कार्यक्रम जिनमें महिला ग्राम प्रधानों की भूमिका भी होनी चाहिए। लेकिन ऐसे किसी भी कार्यक्रम में महिलाएं शामिल होती नहीं दिखी, उनके स्थान पुरुषों ने ही अपना हक जमा रखा है। खास बात तो यह है कि ऐसे कार्यक्रमों में मौजूद उच्चाधिकारी भी महिलाओं की उपस्थिति को अनिवार्य नहीं समझते। यहां तक ग्राम पंचायत में होने वाले विकास कार्यों के स्थल पर भी महिला ग्राम प्रधान की उपस्थिति कभी नहीं देखी गई। हमेशा से ऐसे सामाजिक कार्यक्रमों और प्रशासन की तरफ से आयोजित होने वाली बैठकों में, ग्राम चौपाल में केवल और सिर्फ केवल प्रधान प्रतिनिधियों ने ही प्रधान की भूमिका संभाली है और यह सब प्रशासनिक अधिकारियों को भी ज्ञात होता है। अब उक्त बातों गौर करने पर सवाल यह है कि आखिर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर यह दिखावा क्यों ? आखिर कब चमकेगा महिलाओं का भविष्य? क्या इसी तरह गर्त के अंधेरे में महिलाएं गुजारेंगी जीवन? क्या वाकई में महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं या फिर केवल प्रचार प्रसार के माध्यम में ही महिलाओं को सशक्त देखा जा रहा है, हकीकत में नहीं।