Wednesday, January 22, 2025
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विविधा

खुशियां बस यूं ही कायम रहें…..

2016-10-14-4-sspjs-alkaरात की थकान से ग्रसित
आंखों में नींद की खुमारी लिये
सुबह उठते ही वो दौड़ती है
रसोई की ओर
खुले बालों का बनाते हुए
हाथों से जूड़ा
भागती है बेतरतीब सी
इधर से उधर
बिखरे घर को संभालते संभालते
भूल जाती है खुद को सम्हालना
फिर भी पाती है पूरे घर से
सिर्फ झिड़की और उलाहना

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प्यार की मुहिम

छेड़ जायेगें प्यार की वो मुहिम दोस्तो
ना कहीं गम होगा ना कोई गमजदा होगा
खिलेगीं मुस्करहटें खामोश लवों पे फिर
उतर आयेगा आसमान भी-
प्यार की तमन्ना लिये दिल में
भर लेगा जमीं को अपनी बाहों मे
और चूमेगा टूट के तब
ना रुठेगीं खुशियां किसी के नसीब से
पूरा हर दिल का हर एक अरमां होगा

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“ वह अँधेरा क्या फिर दीप्त हो पाएगा “

kanchan-pathakपंछियों का बसेरा नियत काल तक
पिंजड़े का बखेड़ा नियत काल तक
कौन आया है रहने यहाँ पर सदा
चक्रजीवन जजीरा नियत काल तक
वक्त की करवटों पर पिघल जाएँगे
कल चमकते सितारे भी ढल जाएँगे
आज अट्टालिकाएं हैं जो तनकर खड़ी
खण्डहर में इमारत बदल जाएँगे
तब ये पूजन ये तर्पण पितरपक्ष से
ताप मरुथल का क्या सिक्त हो पाएगा !
बुझ गया जो अतृप्ति में जलकर दीया
वह अँधेरा क्या फिर दीप्त हो पाएगा !!

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सपना मांगलिक की कलम से……हिजड़े की व्यथा

sapna-manglikकहते विकलांग उसे जिनका, अंग भंग हो जाता
मिलता यह दर्जा मुझको तो, क्यों मैं स्वांग रचाता
झूठ वेश खोखली ताली, दो कोठी बस खाली
जीता आया नितदिन जो मैं, जीवन है वो गाली।

घिन करता इस तन से हरपल, मन से भी लड़ता हूँ
कोई नहीं जो कहे तेरा, मैं दर्द समझता हूँ
तन-मन और सम्मान रौंदे, दुनिया बड़ा सताये
होता मेरे साथ भला क्यों, कोई जरा बताये।

अपनों ने ही त्याग दिया जब, मान गैर क्यों देते
जैसा भी है अपना है तू, गले लगाकर कहते
लिंग त्रुटि क्या दोष माँ मेरा, काहे फिर तू रूठी
फैंक दिया दलदल में लाकर, ममता तेरी झूठी।

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खौफ का पर्याय

gireesh-ashkखौफ का पर्याय खाकी हो गई।
मुल्क की भीवत्स झाँकी हो गई।।
मखमली रिश्ते भी सारे गुम हुए,
अब यहाँ बदरंग राखी हो गई ।।
अब बला अबला बनी इस मुल्क में
बेहया दुश्मन जहाँ की हो गई ।।
अनवरत चिंघाड़ते इस शोर में,
अब मधुर लोरी भी माँ की खो गई।
धन कमाने की कबायद यूँ बढ़ी,
जिन्दगी अब जोड़-बाकी हो गई।।

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ये मेरा मन…..

pooja-ahoojaकभी गोटा किनारी लगाता जाता ये मेरा मन
कभी चुनरी लहराता जाता ये मेरा मन
कभी अरमान संजोता जाता ये मेरा मन
कभी टूट कर बिखरता जाता ये मेरा मन
कभी आग बनके दहकता जाता ये मेरा मन
कभी राख बनके सुलगता जाता ये मेरा मन
कभी आँखों में ख्याल बनके सो जाता ये मेरा मन
कभी पलकों में सपने बिखेर जाता ये मेरा मन

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