बागपत। दिगम्बराचार्य गुरुवर श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर में मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि जो अशुद्ध में शुद्ध द्रव्य को निहारता है, वही सच्चा ज्ञानी है। अमुक्त दशा में शुद्ध द्रव्य का जिसे बोध होता है वही प्रज्ञ-पुरुष होता है। कृषक भी बीज में वृक्ष को निहारता है, तभी वह चमकते बीज को खेत की मिट्टी में डालता है। ग्वालिन को भी दुग्ध में घृत दिखाई देता है तभी वह दही जमाकर बिलोनल कर घृत निकालती है। जो अदृष्ट को जानता है, वही ज्ञानी है।
जैन मुनि ने कहा, बाह्य तप-साधना के साथ अंतरंग पुरुषार्थ भी प्रबल होना चाहिए। मनुष्य पर्याय का मिलना बहुत दुर्लभ है। मनुष्य भव प्राप्त करके श्रेष्ठ कार्य करना भी दुर्लभ है। व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, अपितु सुखद कार्यों से व्यक्ति महानता को प्राप्त करता है।
दुनिया के लोग जीवन जीना सिखाते हैं, परन्तु मरने की कला एक मात्र जैन दर्शन ही सिखाता है। जैनाचार्यों ने विश्व वसुधा को विशिष्ट विचार आचार, अध्यात्म के साथ-साथ विशाल दृष्टि भी प्रदान की है। जहाँ जगत के सोच का अंत हो जाता है उससे भी अधिक आगे से जैनाचार्यों का विराट सोच प्रारम्भ होता है।जैन दर्शन ने हमेशा से सदाचरण, उच्च विचार, दया, करुणा, परस्पर सहयोग का ही पक्ष लिया है। जियो और जीनो दो यह जैन दर्शन का सूत्र है। संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे सुरेंद्र जैन, प्रवीण जैन, अनिल जैन, सुनील जैन, नवीन बब्बल, दीपक जैन, सतीश जैन, विनोद जैन एडवोकेट आदि सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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