Monday, November 25, 2024
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“देश की आबो-हवा”  

कवि की सृजनात्मकता हो,
या कुंभकार की अद्भुत कला।
शिल्पकार की कल्पना हो,
चित्रकार की चित्रकारिता।
जब ये अपने पर आ जाते हैं,
तो देश क्रांति में हो जाता है।
सत्य की ओर उन्मुख हो जाते,
तो उभर के आती छुपी भावना।
कोई हाथों से रेखा खींचकर,
बनाता अनेक अनेक तस्वीरें।
कोई गढ़-गढ़ उन्हें सजाता है,
अपने पूर्वजों की दुर्लभ धरोहर।
कोई रेखा खींच यहां पर,
रचता है प्रेरणा के सुंदर गीत।
किसी की हस्त रेखाओं ने,
दिखाया है उसको गगनचुंबी।
डॉ० साधना शर्मा (राज्य अध्यापक पुरस्कृत) इ० प्र० अ० पूर्व मा०वि०कन्या सलोन, रायबरेली