संसार में कोई मानव सामान्य अथवा अनाकर्षक नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने आप में एक चमत्कार है। ऐसे में अपने आपको कुरुप या अनाकर्षक समझकर हीन भावना से पीड़ित रहना भारी भूल है। सौंदर्य मात्र गोरे रंग या तीखे नैन-नक्श में नहीं होती, अपितु आकर्षक व्यक्तित्व का मूल मोती की तरह सीप में छिपा है, उसके अक्षुण्ण सुंदरता की आभा अंदर से ही फूटती है। सचमुच व्यक्ति के अंदर ही सुंदरता का बीज निहित होता है। किसी भी व्यक्तित्व में आकर्षण उसके अंदर से आता है। अपने आप क्या अनुभव कर रहे हैं। आपका रंग इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करता है। कहा जाता है कि चेहरा मन की बात बता देता है। इसलिए व्यवहार तथा विचारों की झलक चेहरे पर स्पष्ट हो जाती है। किसी मुस्कान में भी अंदर के भावों तथा विचारों को पढ़ा जा सकता है। इन भावों और विचारों से न केवल आपके नेत्रों की चमक अपितु त्वचा का रंग भी प्रभावित होता है, किसी भव्य व्यक्तित्व में जितना अंश शारीरिक सुंदरता का होता है, उतना ही मानसिक सुंदरता का होता है।
सौंदर्य प्रसाधन, केश सज्जा तथा परिधान आपकी पहचान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करते हैं, किंतु मात्र इनके द्वारा कोई भी सुंदर नहीं बन सकता। वह व्यक्ति ही वास्तव में सुंदर है, जिसके चेहरे पर अंदरूनी शांति तथा खुशी झलके। ये दोनों चीजें बनावटी नहीं हो सकती। इन्हें अकस्मात् ही खरीदा नहीं जा सकता। इसे तो अपने भीतर उत्पन्न करना पड़ता है। उसे संजोना पड़ता है। अब यह आप पर निर्भर करता है, कि आप कितने अधिक वक्त तक इन्हें अपने व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बना पाते हैं। ईर्ष्या-द्वेष मन की शांति चौपट करके सुंदरता को नष्ट कर देते हैं। चेहरे के हाव-भाव में इनकी स्पष्ट झलक मिल जाती है। ईर्ष्या-द्वेष के वजह से चेहरे पर आड़ी-तिरछी लकीरंे खुद ब खुद बन जाती हैं। इससे आपके व्यक्तित्व में किसी को आकर्षित कर पाने की सामर्थ्य शेष नहीं रह पाती। चिकित्सकों ने पाया कि ईर्ष्या आरोग्यता और सुंदरता के लिए सबसे ज्यादा घातक तत्व साबित हो सकती हैं। क्योंकि यह भी सच है, कि यह एक नैसर्गिक भाव है, जिस पर काफी कोशिशों के पश्चात ही अंकुश पाया जा सकता है। एक प्रकार की बीमारी मानते हुए लगातार इसके उन्मूलन तथा रोकने की कोशिश करते रहना चाहिए।
आपके तन, मन तथा मस्तिष्क को चाहिए खुशहाल वातावरण ताकि आपका व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित कर सके। यह खुशहाल वातावरण आपकी सुंदरता का परिचायक है। यदि आप चिंता में डूबे रहते हैं, तो सचेत। चिंता चेहरे पर झाइयां एवं मुहांसों की वजह बनती है। यदि आप चिंता से घिरे हो तो कलम और कागज लेकर बैठ जाइए तथा जो कुछ दिमाग में आए, उसे लिख डालिए। जब आप लिख चुकेंगे, तो अपने आप को तनावमुक्त और बेहतर अनुभव करेंगे। तत्पश्चात एक नजर उस कागज पर डालिए। आप पाएंगे कि जो आशंकाएं आपके मन में थीं उनमें से अधिकतर असत्य निकली।
आइए, अब उन तत्वों पर नजर डालें जिनसे सुंदरता में इजाफा होता है। इनमें प्रथम तत्व है खुलकर हंसना। आपने देखा होगा कि जब आप हंस रहे होते हैं, तो कोई नहीं रोता। इसलिए प्रत्येक परिस्थिति में कुछ न कुछ सकारात्मक सोचते हुए उसमें हास्य के तत्व ढूंढने का प्रयास करें।
हर हाल में प्रसन्न रहना सुंदरता का अचूक नुस्खा है। कभी भी बनावटी हंसी या मुस्कान सुंदर नहीं बना सकती। स्मरण रहे कि धारण किए हुए कपड़े या केशा सज्जा से कहीं अधिक सुंदरता बढ़ती है आपकी मुस्कान से। सौंदर्य की वृद्धि का है द्वितीय नुस्खा है दया। यहां दया से आशय है दूसरों के गुणों तथा अवगुणों को स्वीकार करना। उन्हें समझना तथा प्रत्येक व्यक्ति तथा वस्तु के प्रति बेहतर व्यवहार करना। दूसरों की भावनाओं को नुकसान पहुंचाने से भी आपका सौंदर्य चौपट हो जाता है। इसलिए सौंदर्य को समाप्त कर कुरूपता नहीं ओढे़।
यदि आप अंदरूनी गुणों का विकास करेंगे तो वह नैसर्गिक रूप से वाह्य सौंदर्य के रूप में परिलक्षित होने लगेगा।
-डॉ.हनुमान प्रसाद उत्तम
⇒ ‘‘जन सामना’’ वेब न्यूज पोर्टल पर प्रसारित सामग्री जैसे – विज्ञापन, लेख, विचार अथवा समाचार के बारे में अगर आप कोई सुझाव देना चाहते हैं अथवा कोई सामग्री आपत्तिजनक प्रतीत हो रही है, तो आप मोबाइल न0 – 9935969202 पर व्हाट्सएप के माध्यम से संदेश भेज सकते हैं। ई-मेल jansaamna@gmail.com के माध्यम से अपनी राय भेज सकते हैं। यथोचित संशोधन / पुनः सम्पादन बिना किसी हिचकिचाहट के किया जायेगा, क्योंकि हम ‘‘पत्रकारिता के आचरण के मानक’’ का पालन करने के लिये संकल्पवद्ध हैं। – सम्पादक