बड़ौत/बागपत। दिगम्बर जैनाचार्य 108 श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने ऋषभ सभागार में प्रवचन करते हुए कहा कि सबके साथ जीवन जियो, सामन्जस्य बनाना सीखो, पर सिद्धान्तों को मत छोड़ो। दूसरे के साथ मित्रता करो, पर अपना अस्तित्व मत मिटाओ। जिंदगी जीना भी एक कला है। जो समझौता करना नहीं जानते वह जीवन में विफल हो जाते हैं।
उन्होंने कहा एकता में आनन्द है, शांति है, विकास है, जागृति है और परस्पर एकता धर्म का प्रतीक है।
जैन मुनि ने कहा, पूर्णज्ञानी, महापुरुष किसी की पूजा करते नहीं, स्वयं की पूजा कराते नहीं, दुनिया उनकी पूजा स्वयमेव करती है। ऐसे ही गुणियों के गुणों की प्रसंशा स्वयमेव होती है। गुणवान बनो, चारित्रवान बनो, नीतिज्ञ बनो। यथार्थ धर्म समझो; धर्म हमेशा कल्याण का मार्ग ही प्रशस्त करता है। अशुद्धि घटाये, विशुद्धि बढ़ाये, वही सच्चा धर्म है। धर्म खण्ड-खण्ड होने की शिक्षा नहीं देता। धर्म एकता, सामन्जस्य, मैत्री की शिक्षा देता है। जिस प्रकार से दिया, बाती, घृत और अग्नि मिलकर दुनिया को प्रकाश देते हैं, ठीक वैसे ही एकता महा-शक्ति को जन्म देती है। सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
-विश्व बंधु शास्त्री
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