इजराइल तथा फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास के बीच जारी जंग को तीन सप्ताह पूरे होने वाले है। दोनो तरफ से जारी युद्ध में अब तक भयंकर रुप से जन धन का नुकसान हो चुका है। इस लड़ाई में 25 अक्टूबर तक इजराइल के 1400 लोग मारे जा चुके हैं और 222 लोगों को हमास ने बंधक बना रखा है। वहीं दूसरी तरफ इजराइल के आक्रमण से 6546 फिलिस्तीनी लोगों की जान जा चुकी है। इसमें 2404 बच्चे बताए जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि हमास द्वारा इजराइल पर 7 अक्टूबर को हमला किया गया था। इजराइल से हमदर्दी, सहयोग और एकजुटता दिखाने के लिए अमेरिकी राश्ट्रपति जो बाइडेन, जर्मनी के चांसलर ओलाक स्कोल्ज, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों तथा ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक इजराइल का दौरा कर चुके हैं। इस तरह इजराइल को पांच देषों का साथ मिल गया है। वहीं दूसरी तरफ ईरान व लेबनान सहित अनेक मुस्लिम देष फिलिस्तीन का साथ देने को तैयार खड़े हैं। कुल मिलाकर इजराइल हमास जंग के मसले पर पूरी दुनिया दो भागों बंटी हुई दिखाई दे रही है। इजराइल की सैन्य क्षमता पर गौर करें तो उसके पास 173000 सक्रिय सैनिक, 465000 रिजर्व सैनिक, 2200 टेैंक, 300 रॉकेट लांचर एवं 601 युद्धक विमान हैं।
इसके अतिरिक्त लेबनान के पास 84200 सक्रिय सैनिक, 2500 वायु सैनिक, 1400 नौसैनिक एवं 78 एयरक्राफ्ट हैं। मिस्र के पास 3.10 लाख सक्रिय सैनिक, 6.85 लाख आरक्षित सैनिक, 1.85 लाख नौसैनिक एवं 30000 वायु सैनिक हैं। सीरिया के पास 1.70 लाख सक्रिय सैनिक व 50000 आरक्षित सैनिक हैं जबकि जॉर्डन के पास एक लाख के अधिक पैदल सैनिक व 65000 आरक्षित सैनिक हैं। ऐसे में अगर इजराइल ने ज्यादा आक्रामकता दिखाई तो जार्डन, ईरान और लेबनान की तरफ से भी आक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। यह स्थिति होने पर विश्व युद्ध की संभावनाएं बढ़ती दिखाई दे रही ंहैं।
इजराइल व हमास की इस जंग से भारत के भी प्रभावित होने की पूरी संभावना है। इस लड़ाई का खामियाजा भारतीय निर्यातकों को भी उठाना पड़ सकता है। विदित हो कि भारत भारी मात्रा में इजराइल को सामान का निर्यात करता है और इजराइल से भारी मात्रा में सैन्य सामग्री लेता है। ऐसे में अगर लड़ाई तेज होती है तो निर्यातकों के लिए हालात कठिन हो सकते हैं। संघर्श से इजराइल के इलियत, हाइफा और अशदोद नामक बंदरगाहों पर कामकाज प्रभावित हो जाएगा। इजराइल पर हमले के बाद से तेल की कीमतें बढ़ गई हैं और एयरलाइन के षेयरों में गिरावट आ गई है। इसी तरह शेयर बाजार में भी गिरावट देखने को मिली। इस जंग के प्रारम्भ हो जाने से कच्चे तेल का आयात महंगा होना शुरू हो गया है। ज्ञातव्य है कि भारत अपनी जरूरतों का 85 प्रतिषत तेल आयात करता है।
अब अगर यह जंग ज्यादा दिनों तक चली तो भारत की सैन्य तैयारियों पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि भारत इजराइल से भारी मात्रा में हथियार और उनकी तकनीक लेता है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो भारत लगभग एक अरब डॉलर हर वर्श इस खरीद पर खर्च करता है। इस लड़ाई में इजराइल जिस हिसाब से प्रभावित हो रहा है उससे उसे भी उबरने में कुछ समय अवश्य लगेगा और तब तक भारत के लिए आपूर्ति प्रभावित रहना स्वाभाविक है। भारत और इजराइल के बीच एक लम्बी अवधि से प्रगाढ़ सैन्य संबंध बने हुए हैं। वर्श 1962 में चीन से लड़े गए युद्ध के समय इजराइल ने भारत की मांग पर मोर्टार और छोटे हथियार मुहैया करवाये थे। 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका पाकिस्तान को सैन्य मदद दे रहा था। उस समय इजराइल ने भारत को सैन्य सहायता दी थी। सन् 1971 की लड़ाई के समय इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर से हथियार मांगे तो उन्होंने ईरान को हथियारों की आपूर्ति रोककर भारत की अविलम्ब मदद की थी। वैसे भारत के लिए रूस अच्छा सैन्य मददगार था लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत के मिग-21 विमानों के लिए एवियोनिक्स प्रदान करने के लिए कदम बढ़ाए। भारत के पास मौजूद रूस के सुखोई विमानों, ब्रहमोस क्रूज मिसाइलों, रूसी एयरफ्रेम और अनेक इंजनों में इजराइली राडार व विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम लगे हुए हैं। वर्ष 1999 में लड़े गए कारगिल युद्ध के समय भारत के मिराज लड़ाकू विमानों पर लाइटनिंग टारगेटिंग पॉड्स लगाए जाने हेतु इजराइली तकनीशियनों को भारत भेजा गया था। पॉड्स की वजह से भारत अपने मूक बमों को लेजर निर्देषित युद्ध सामग्री में बदलने में सफल हुआ था। इसके बाद भारत पहाड़ों पर स्थित पाकिस्तानी ठिकानों पर आक्रमण करने में सफलता मिली थी।
भारत को फॉल्कन यानी कि प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली इजराइल ने प्रदान कर रखी है। इजराइल प्रदत्त टोही विमान भी भारत के पास हैं। इजराइली टैवर असॉल्ट राइफल बनाने की तकनीक भारत को वहीं से प्राप्त हुई जिससे भारत इनका निर्माण करने में सफल हुआ। भारत को बराक-8 वायु रक्षा प्रणाली इजराइल से ही मिली। इसकी तकनीक मिलने से अब भारत इनका उत्पादन करने में सक्षम है। इस रक्षा प्रणाली का परीक्षण आईएनएस कोलकाता पर किया जा चुका है। अब इसे नौसेना के अन्य पोतों पर लगाया जाना है।
भारत के पास इजराइली ड्रोन सिस्टम की प्रणालियां हैं। ड्रोन सिस्टम प्रणालियों की खरीद से इजराइल की रक्षा उपकरण निर्माता कंपनियों को उच्चस्तरीय लाभ प्राप्त हुआ। इजराइली ड्रोन सिस्टम खरीदने में भारत सबसे आगे है। भारत इजराइल से हेरॉन ड्रोन खरीदने का इच्छुक था लेकिन अब यह सौदा कब होगा कुछ निष्चित नहीं है। हेरॉन ड्रोन पहाड़ी इलाकों में अत्यंत उंचाई पर लड़ाई के लिए काफी बेहतर हैं। इनका उपयोग लद्दाख व कश्मीर के उंचाई वाले इलाकों में किया जा सकेगा। अब देखना यह होगा कि यह जंग कब रुकेगी?
-डॉ0 लक्ष्मी शंकर यादव (लेखक-सैन्य विज्ञान विषय के प्राघ्यापक रहे हैं)