भारत में धर्म, जाति की राजनीति के बाद जेंडर आधारित राजनीति का चलन तेजी से लोकप्रिय हुआ है जिसमें महिला मतदाताओं में पैठ बनाना लक्ष्ये होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के केंद्र में आने के बाद चुनाव में जीत के इस छुपे राज पर से धीरे – धीरे पर्दा उठने लगा है। दरअसल जेंडर राजनीति की गंभीर शुरूआत गुजरात में 2002 में शुरू हुई और इसे भुनाने की सुनियोजित पहल नरेन्द्र मोदी ने की थी जो वह वहां के मुख्यमंत्री थे। मोदी के मुख्य मंत्री बनने के बाद चुनावी सभाओं में महिलाओं की उपस्थिति निरंतर बढती गई जिसकी एक वजह यह भी थी कि गोधराकांड और उसके बाद हुये दंगों के बाद पहली बार गुजरात में चुनाव हो रहे थे। दंगों से निबटने में मोदी की भूमिका का लेकर विपक्ष खासकर कांग्रेस ने आरोपों की झडी लगा दी थी और उन्हें घेरने के लिये कोई कसर नहीं छोडी गई थी।
मोदी गुजरात विधानसभा चुनाव जीत गये और दोबारा मुख्य मंत्री बने। मोदी ने चुनावी जनसभाओं में महिलाओं की बडी संख्या में उपस्थिति को ध्यान में रखकर काम करना शुरू किया और जेंडर आधारित राजनीति की ठोस शुरूआत की। मोदी ने नवजात कन्याओं से लेकर बुजुर्ग महिलाओं के कल्याण के लिये अनेक योजनाओं की शुरूआत की। मोदी की कार्यशैली में योजनाओं के त्वरित क्रियान्वायन और कडी निगरानी को सर्वाेच्च प्राथमिकता मिलती रही है और वह लाल फीताशाही के अवरोधों को दूर करने में कसर नहीं रखते हैं।
गुजरात में विकास और जेंडर आधारित राजनीति की सफलता को देखते हुये अन्य राज्यो की भाजपा सरकारों ने उसे अपनाया जिसमें मध्यरप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी जेंडर आधारित राजनीति का बडा लाभ मिला और लक्ष्मी लाडली जैसी योजनाओं के कारण जनता में ‘मामा’ कहे जाने लगे। भाजपा में मोदी के बाद शिवराज और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जेंडर की राजनीति करके महिला मतदाताओं को रिझाने में कामयाब हो रहे हैं।जेंडर राजनीति का प्रयोग हर राजनीतिक दल ने किया लेकिन उसकी प्राथमिकता तय करने में वे गंभीर नही दिखे या ऐसे समझा जा सकता है कि वे वोटबैंक के लिहाज से उसे भुनाने में ज्यामदा कामयाब नहीं हो पाये। वैसे जेंडर राजनीति की पहली कर्मभूमि तमिलनाडु रही है जहां 1991 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद जयललिता ने महिलाओं के लिये कल्या णकारी योजनाओं की शुरूआत कर दी थी। उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं को तमिलनाडु में बडी अहमियत मिली जिनमें – अम्मा फ्री वाई-फाई, अम्मा बेबी केयर किट्स, अम्मा पीपल सर्विस, अम्मा एजूकेशन स्कीम, अम्मा स्किल जैसी अनेक योजनायें सराही गईं।
मोदी के दोबारा लोकसभा चुनाव जीतने के बाद विपक्ष को जेंडर राजनीति पर जोर देने के लिये बाध्य होना पडा है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली परिवहन निगम की बसों में महिलाओं के मुफ्त सफर योजना को लागू किया और बालिकाओं को प्रोत्सााहन देने के लिये अनेक ऐसी योजनाओं को अपनाया जिसकी शुरूआत मोदी और जयललिता ने बहुत पहले कर दी थी। कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में हर महिला को 1500 रूपये हर महीने देने का वादा किया जो वहां पर उसकी जीत का एक बडा कारण बना। कर्नाटक में कांग्रेस ने ऐसा प्रयोग किया और वहां भी जीत स्वांद चखा। वहां पर तो गृह स्वा मिनी को हर महीने 2000 रूपये मिल रहे है। अब पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस इन्हीं वादों को दोहरा रही है।
वैसे इन विधानसभा चुनावों में हर राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को रिझााने के हर महीने नकद सहायता देने के लिये नित नई नई घोषणायें कर रहे हैं। जेंडर राजनीति के फायदे हैं और इसे सकारात्मकता से देखा जाना चाहिये। बालिकाओं और महिलाओं के उत्थान की योजनाओं की कमी नही है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें ऐसी योजनाओं पर पहले से काम करती रही हैं लेकिन इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये गंभीर पहल नहीं किये जाने के कारण वे अपने निर्धारित लक्ष्य से पीछे रह गईं।
शिक्षा के क्षेत्र में बालिकाओं को आगे लाने के लिये मुफ्त शिक्षा की व्यरवस्था पहले से है लेकिन तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिये और प्रोत्साहन देने की जरूरत थी। सत्ता में वर्षों रहने के बाद भी कांग्रेस जेंडर राजनीति के महत्व को अच्छी् तरह समझ नहीं पाई लेकिन अब उसने सबको पीछे छोडने का मन बना लिया है। उसने आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली पानी योजना को और बढा चढाकर लागू करना शुरू कर दिया है।
2024 के लोक सभा चुनाव से पहले हो रहे पांच राज्यों के चुनाव यह संकेत देंगे कि देश में राजनीतिक हवा किस राजनीतिक दल के पक्ष में बह रही है। ऐसे में अब यह देखना होगा कि जेंडर राजनीति को लेकर विपक्ष मोदी की विकास और जेंडर राजनीति की काट ढूंढने में कामयाब रहेगा या नही। विपक्ष महिला मतदाताओं को लेकर चौकन्ना है तों क्या मोदी की दो दशक की विकास एवं जेंडर आधारित चुनावी राजनीति में बढत ले पायेगा ? -कविता पंत