देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी की सरकार के स्वच्छता अभियान-स्वच्छ भारत अभियान के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं। वहीं मोदी सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती के अवसर पर दो अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच से मुक्त भारत का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। तीन वर्ष की इस अवधि में इस दिशा में कुछ कुछ सफलता दिखने लगी है। लेकिन खुले में शौच से मुक्त के लिए क्रियान्वित करने में बनाये जा रहे शौचालय भी भ्रष्टाचार के गारे में संलिप्त हैं। खासबात यह भी है इस प्रकरण पर आने वाली शिकायतों को अधिकारी व कर्मचारी पूरी तरह से नजरअन्दाज भी करते रहते हैं। शायद उनकी मंशा यहीी है कि मोदी सरकार की वापसी पुनः ना होने पावे। इससे यह भी लगता है कि भारत सरकार को 2019 तक हर घर में शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य एक भ्रष्ट मार्ग से ही गुजर पायेगा। आंकड़ों की माने स्वच्छ भारत अभियान के तहत दो अक्टूबर 2014 तक 4.90 करोड़ शौचालय बन चुके थे। वहीं पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार 24 सितंबर 2017 तक 2.44 लाख गांव और 203 जिले खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिए गए हैं। बताते चलें कि 2012 में केवल 38 प्रतिशत क्षेत्र स्वच्छता कवरेज से जुड़े थे। अब यह बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया है। लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है क्योंकि इससे जुड़े तमाम पहलू आज भी फोटो खिचाऊ कार्यक्रम ही साबित हो रहे हैं। कई नजारे तो ऐसे देखने को मिल रहे है कि देखा देखी में उन्हीं के अनुयायी कूड़ा-कचरा को इकट्ठा कर खबरों में आने का माध्यम बना रहे हैं जबकि उन्हें इस अभियान से शायद ईमानदारीपूर्ण लगन नहीं है।
वर्तमान में मोदी सरकार ने एक पखवाड़े के लिए स्वच्छता ही सेवा “क्लीनलिनेस इज सर्विस” अभियान आरंभ किया है। इसका समापन गांधी जयंती पर अगले महीने होगा। देश भर में स्वच्छता की मुहिम को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए हैं। समासेवी संस्थाओं के अलावा, पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय इस अभियान का प्रचार प्रसार कर रहा है। इसके साथ इस अभियान में अन्य मंत्रालय, सरकारी विभाग, गैर-सरकारी संगठन भी स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के कार्य में जुटे हैं। दो अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में स्वच्छता के लिए खुद झाडू लगाई थी। प्रधानमंत्री ने स्वच्छता का बिगुल बजाया था, स्वच्छता के महत्व पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि स्वच्छ भारत के विचार का राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें स्मरण होना चाहिए कि गांधी जी ने कहा था कि स्वच्छता, स्वाधीनता से अधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि विभिन्न सरकारों ने इस दिशा में कई कार्यक्रम चलाए, लेकिन यह दुखद है कि स्वच्छता और अस्पर्शता दोनों विषय बापू के निधन के लगभग 70 साल बाद भी देश में विद्यमान हैं। अपर्याप्त स्वच्छता स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियों और असमय मृत्यु का कारण बनती है। एक स्वयंसेवी संगठन वाॅटर ऐड ने 2014 की अपनी एक रिपोर्ट में इस गंभीर स्थिति के बारे में जिक्र किया था। इसने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत में लगभग 1.2 बिलियन लोगों में से एक तिहाई से कम लोगों की पहुंच स्वच्छता तक है। पांच साल की उम्र तक के लगभग 1,86,000 से भी अधिक बच्चे हर साल असुरक्षित जल और दयनीय स्वच्छता सेवाओं के वजह से डायरिया रोगों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। इससे देश की आर्थिक स्थिति बहुत हद तक प्रभावित होती है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि पूर्व में स्वच्छता और निजी स्वच्छता की कमी के कारण भारत में अनुमानतः प्रति व्यक्ति साढ़े छह हजार रुपये बर्बाद होते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि स्वच्छ भारत अभियान जन-स्वास्थ्य पर अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ेगा। क्योंकि गंदगी के कारण पनपने वाली बीमारी में खर्च होने वाला रुपया जब बचेगा तब निर्धनों की आय की बचत होगी और अंततः राष्ट्र की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। वहीं अभी हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, स्वच्छता के सुधार के कार्य में निवेश किये गये एक रुपया से साढ़े चार रुपये की बचत होगी। साफ-सफाई रहने से चिकित्सा क्षेत्र में आने वाला व्यय (खर्च) कम होगा, वहीं बीमारी के समय उसकी तीमारदारी करने वालों के समय की बचत होगी, शरीर भी स्वस्थ रहेगा और जलजनित रोगों से होने वाली मृत्यु दर को रोका जा सकेगा, जिससे देश में प्रति वर्ष हर परिवार में लगभग पचास हजार रुपये की बचत हो सकती है। लेकिन इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों को बहुत प्रयत्न करने होंगे। इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि स्वच्छता अीिायान भी कहीं दिखावे की बलिवेदी पर न चढ़ जाये। क्योंकि सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद आज भी कई स्थानों पर बड़ी संख्या में लोग खुले में शौच करने जाते है क्योंकि उन लोगों का मिथक है कि घर में शौचालय का इस्तेमाल करना घर को अशुद्ध करना है। वहीं आज भी जिन गावों को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर पीठ थपथपाई जा रही है उन गांवों में से कई गांवों की जमीनी हकीकत भी कुछ अलग है।