रायबरेलीः जन सामना ब्यूरो। सर्वोदय नगर में श्रीमद्भागवत हृदय कथा एवं श्री सहस्त्र चण्डी महायज्ञ में कृष्ण चरित्र के आचरणीय पक्ष और इन्द्र वृन्तासुर संग्राम में वृन्तासुर की सत्य के प्रतिनिष्ठा पर प्रकाश डालते हुए त्यागमूर्ति स्वामी सूर्य प्रबोधाश्रम (स्वामी स्वात्मानन्द) ने कहाकि कृष्ण का चरित्र विचारणीय ही नहीं है अपितु आचरण योग्य भी है। आवश्यकता यह है कि कृश्ण चरित्र में सन्निहित सात्विक तत्व को समझा जाय। स्वामी जी ने कहाकि कृश्ण का गोपियों संग व्यवहार हमें स्पष्ट संदेश देता है कि हम नारी वर्ग के कितने ही समीप चले जाएं परन्तु हमारे मन, मस्तिष्क, विचारों और व्यवहार में तनिक भी विकृति नहीं आनी चाहिए। नारियों के प्रति सद्भावी होते भी हमारे विचार और व्यवहार सात्विक ही होने चाहिए। स्वामी जी ने चीर हरण प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहाकि प्रथम दृष्टया यह कृश्ण की बाल लीला है। बाल पन में किया गया व्यवहार निश्छल होता है। भगवान कृष्ण ने इसके माध्यम से गोपियों को सन्देश दिया है कि यदि कोई बाहरी व्यक्ति स्नानावधि में उस स्थान पर आ गया होता तो ब्रज और गोपियों की मर्यादा का हनन होता। इन्द्र वृन्तासुर युद्ध के प्रसंग में स्वामी जी ने कहाकि श्रीमद्भागवत में ‘‘मा मनुस्मर यद्धय च’’। यानी वृन्तासुर युद्ध काल में भगवान का स्मस्ण करता है जो कि व्यवहारिक रूप से सही प्रतीत नहीं होता। परन्तु मन का स्वभाव स्वतंत्र है। मन की स्मृति वही जाती है जहां उसे लगाव होता है। वृन्तासुर का लगाव भगवान के प्रति था। अतः युद्धरत रहते हुए भी वह भगवत स्मरण से विरत नहीं होता। जब इन्द्र के हाथ से वज्र गिर जाता है तो वृन्तासुर कहता है कि अब मैं तुम्हारे ऊपर प्रहार नहीं करूंगा। जब तुम मुझे मारोगे तो मैं तुम्हें मारूँगा। यह असुर की सत्य के प्रति निष्ठा है। इस अवसर पर कथा यजमान प्रशान्त बाजपेई, गरिमा बाजपेई सहित आरके पाण्डेय, अवध नरेश पाण्डेय, केपी त्रिपाठी, अमरेश चैबे, जगदम्बा तिवारी, बरन त्रिपाठी, मदन सिंह चैहान, अशोक श्रीवास्तव, विनय कुमार पाण्डेय, मनोज कुमार पाण्डेय आदि मौजूद रहे।