यूपी में निकाय चुनाव का दौर चल रहा है। इस दौरान कहीं ईवीएम मशीन में गड़बड़ी तो कहीं लोगों के नाम मतदान सूची से गायब होने की तमाम खबरें आई। आलम यह देखने को मिल रहा है कि शेषजन (आम नागरिक) ही नहीं बल्कि वीआईपी यानीकि विशेष जनों तक के नाम मतदाता सूची में गायब होने की खबरें मिलीं। मतदाता सूची से सांसद, मंत्री, मेयर तक के नाम गायब मिले। पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा देवरिया से बीजेपी सांसद कलराज मिश्र, साक्षी महाराज, उन्नाव जिले की चर्चित नेता अन्नू टंडन, सपानेता चो. सुखराम सिंह के साथ-साथ उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया सुलखान सिंह का नाम मतदाता सूची से गायब मिलने की बात कही गई। इनके साथ ही वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक रहे वीरभद्र निषाद का नाम भी मतदाता सूची में शामिल नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि सालदर साल चुनाव सम्पन्न कराने का जिम्मेदार आयोग यानि की निर्वाचन आयोग ‘कुत्ते की दुम’ क्यों बना हुआ है? लोकतन्त्र के महाकुम्भ में ऐसा कोई चुनाव सम्पन्न नहीं हो पाया है जिसमें हजारों मतदाताओं से उनका अधिकार छिन नहीं गया हो।
मतदाता सूची की गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए आयोग द्वारा जारी किए गए तमाम दिशा निर्देशों की अवहेलना होती देखी जा सकती है, इसी लिए जब भी चुनाव का वक्त आता है तो ऐसा दिखता है कि चुनाव आयोग उस बूढ़े कुत्ते के जैसा ही दिखेगा जो दांत रहित होता है और वह सिर्फ भौंक सकता है लेकिन काट नहीं सकता है। नतीजन तमाम दिशा निर्देशों के बावजूद सभी दलों के प्रत्याशी आचार संहिता का उल्लंघन करने से जरा भी हिचकिचाते हैं वहीं चुनाव को सम्पन्न कराने में जुटी सरकारी मशीनरी भी लापरवाही करने से नहीं चूकती।
सरकारी मशीनरी में सुधार नहीं होना भी इसी पर निर्भर है क्योंकि लापरवाह कर्मियों पर सटीक व कड़ी कार्रवाई भी नहीं की जाती है। इससे भी ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव को सम्पन्न कराना महज एक औपचारिकता बस है निर्वाचन आयोग के लिए। इसके अलावा मतदाता सूची को तैयार करवाने व मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर लाखों रुपयों का वजट हर जिले से खर्च कर दिया जाता है वाबजूद इसके मतदाता सूची त्रुटिरहित प्रकाशित नहीं हो पा रही है, मतदाता सूची में किसी का नाम गायब होना, किसी का पता ठीक ना होना तो किसी की उम्र ठीक ना लिखी होना, इतना ही नहीं पूरे मुहल्ले के लोगों के नाम गायब होना कोई विशेष बात नहीं कही जा सकती है, मतदाता सूची को तैयार करने में ऐसे मूर्ख अधिकारियों व कर्मचारियों को कार्य पर लगाया जाता है जिन्हें देश की सरकारी मशीनरी का कलन्क से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि उन्हीं की लापरवाही के परिणाम स्वरूप प्रत्येक चुनाव में हजारों लोग अपने मताधिकार के प्रयोग से वंचित हो जाते है। जबकि लोकतन्त्र के महापर्व में सभी की भागेदारी अनिवार्यता में होनी चाहिए लेकिन निवार्चन आयोग सुधरने का नाम नहीं ले रहा है और हर चुनाव में तमाम लोग अपने मताधिकार के प्रयोग से वंचित हो रहे हैं।