बछरावां, रायबरेलीः जन सामना ब्यूरो। विधिक जानकारी न होने के कारण आम जन मानस को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चूंकि न्यायपालिका में आने वाले मुकदमों को कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। इसलिए कभी-कभी मुकदमों के निस्तारण में देरी हो जाया करती है। मौजूदा समय में अदालतों पर भारी बोझ लदा हुआ है। जिसके निस्तारण के लिए पुलिस से लेकर न्यायिक प्रक्रिया तक गुजरने वाले प्रत्येक अंग को सक्रिय होना पड़ेगा। यह विचार है न्यामूर्ति ब्रिजेश कुमार के जो उन्होंने दयानन्द महाविद्यालय में आयोजित विधिक जागरूकता संगोष्ठी के दौरान व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए वह सम्बन्धित थाना क्षेत्र में अपनी प्रथम सूचना अंकित कराये और यदि वहां सूचना अंकित नहीं होती है तो पुलिस अधीक्षक के पास अपने फरियाद करे यदि इसके बाद भी उसका मुकदमा पंजीकृत नहीं होता है तो 156/3 के तहत वह न्यायालय की शरण ले सकता है। अगर इतने पर भी पुलिस मुकदमा दर्ज नहीं करती है तो वह यह बात न्यायालय के सज्ञान में ला सकता है और न्यायालय स्वयं प्रतिवादी को नोटिस भेजकर मुकदमा चला देगा। तथा आदेश का पालन न करने वालों पर कोर्ट की अवमानना का केस दर्ज कर देगा। उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में गति लाने के लिए पुलिस द्वारा प्रस्तुत चार्ज सीट का बहुत महत्व होता है इसके लिए गम्भीर मामलोकं में यदि मुल्जिम जेल में है तो 90 दिन के अन्दर तथा साधारण मामलों में 60 दिन के अन्तर चार्ज सीट दाखिल करनें के लिए पुलिस को बाध्य किया जाता है। परन्तु अगर मुल्जिम द्वारा जमानत करा ली गयी है तो अदालत पुलिस को चार्ज सीट की समय सीमा में नहीं बांध पाती है। उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में मुकदमों के शीघ्र निस्तारण के लिए अलग-अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाये गये है जो शीघ्र से शीघ्र मुकदमा निपटाने का कार्य कर रहें है। प्राचार्य डाॅ0 रामनरेश नें कहा कि विधिक जागरूकता की आज के समय में बहुत बड़ी आवश्यकता है, सरकार द्वारा जूनियर हाई स्कूल से लेकर ड़िग्री कालेज तक इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना ताकि छात्राओं को जो कल के भविष्य है उन्हें आई0पी0सी0 व सी0आर0पी0सी0 की धाराओं की जानकारी हो सके। माननीय उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के द्वारा कुछ ऐसे भी अपराध हे जिनमें 7वर्ष से कम की सजा है इनमें गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। परन्तु आम नागरिक सही जानकारी न होने के कारण आये दिन शोषण का शिकार होता है और ड़र के मारे घर छोड़कर दर-दर भटकता रहता है। इतना ही नहीं समय-समय पर सार्वजनिक कार्यालयों व शिक्षण संस्थाओं में सरकार को चाहिए कि कानून की जानकारी के लिए गोष्ठियों का आयोजन करें और खास तौर से यह गोष्ठियाँ ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित की जाय। इस मौके पर डाॅ0 कल्पना श्रीवास्वत, डाॅ0 सुमन त्रिपाठी, डाॅ0 पुणेश्वरी, साधना, मालती, विनय सिंह, प्रमोद बाजपेई, मनोज श्रीवास्तव, विष्णुचन्द्र श्रीवास्तव, रामप्रवेश तिवारी, श्री प्रकाश मिश्रा, डाॅ0 शालिनी सहित छात्र छात्राओं द्वारा विविध प्रकार से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर न्यायमूर्ति द्वारा किया गया। न्यायमूर्ति के साथ आयी उनकी धर्म पत्नी नें भी विद्यालय परिवार व छात्र-छात्राओं को आर्शीवाद प्रदान करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की। कार्यक्रम का सफल संचालन डाॅ0 सुभाष चन्द्र श्रीवास्तव द्वारा किया गया।