लखनऊ, राम वरमा। आज से 30-40 साल पहले बड़े मंगल से एक हफ्ते पहले से ‘लाल लंगोटे वाले की जय’,’जय बजरंगबली’ के जयकारों से लखनऊ की सड़कें सूर्योदय से पूर्व गूंज उठती थीं। नन्हे-मुन्ने लंगोटे और उम्रदराज लंगोटे अपने-अपने घरों से निकलकर सड़कों पर लेटकर दंडवत परिक्रमा करते, जयकारा लगाते हुए अमीनाबाद व अलीगंज हनुमान मन्दिर तक जाते थे। इन परिक्रमा करने वालों के लिए जगह-जगह पीने के पानी के प्याऊ लगे होते थे। इन पर शक्कर के छोटे-छोटे बताशे, पेड़े भी होते थे। यह इंतजाम कोई स्वयंसेवी संस्था नहीं करती थी बल्कि शहर के अमीर-ओ-उमरा बड़े ही शौक व श्रृद्धा से करते थे। यही नहीं जिन सड़कों से परिक्रमा करने वाले गुजरते थे उन्हें नगर पालिका के भिश्ती (धुलाई कर्मी) एक पहर रात में धुलते थे। जो लोग या बच्चे एक रात में परिक्रमा पूरी नहीं कर पाते वे रास्ते में कहीं भी पीपल के पेड़ के नीचे अपना पत्थर निशान लगा कर रख देते और दूसरी रात वहीं से फिर परिक्रमा शुरू करते। ये परिक्रमा करने वाले श्रृद्धालू आस-पास के जिलों से भी बड़ी संख्या में आते थे और तब तक रुकते थे जब तक बजरंगबली बाबा के दर्शन न हो जाते। तमाम तो चारो मंगल यानी एक महीने तक मन्दिर के आस-पास किसी धर्मशाला या मेला स्थल पर ही पड़े रहते थे।
अलीगंज हनुमान मन्दिर पर काफी बड़ा मेला लगता था, जिसे महावीरजी का मेला कहा जाता और जो पूरे महीने भर चलता था। आज का अलीगंज बाजार और सहारा चैराहा सब मेले की जद में रहता था। तरह-तरह की दुकाने, झूले-तमाशे, काला जादू, सर्कस, घर-गृहस्ती के सामन, मिठाई, पूरी-कचैरी की शुद्ध दुकानें होती थीं। सोमवार की रात से लखनऊ की सड़कों पर इक्के, तांगे सरपट दौड़ते नजर आने लगते थे जिनमे मेलार्थी दूर-दराज से हनुमानजी के दर्शन करने और मेला घूमने आते थे। मेला तो आज भी परंपरा के नाम पर लगता है। उस समय हनुमान सेतु मन्दिर व आज का गोमती नदी का पुल भी नहीं था, उस समय ब्रिटिश इण्डिया यानी गोरी सरकार का बनवाया हुआ पुल था जिस पर हर समय बंदरों के झुण्ड मंडराते रहते थे। इसीलिये उसे लोग-बाग ‘मंकी ब्रिज’ कहते थे।
गोमती इस पार अमीनाबाद हनुमान मन्दिर की मान्यता के साथ गणेशगंज हनुमान मन्दिर और छाछीकुंआं वाले हनुमानजी मन्दिर में भी दर्शनार्थियों की भारी भीड़ होती थी द्य पहला यानी बड़ा मंगल अलीगंज के नाम होता तो दूसरा अमीनाबाद के और तीसरा गणेशगंज के नाम होता द्य अमीनाबाद और गणेशगंज में भी भव्य मेला लगता था। लखनऊ के कदीमी रहने वाले बताते हैं कि उन्होंने अपने पुरखों से सुना है कि यह मेला नवाबों के समय से लगता है और अलीगंज हनुमान मन्दिर का निर्माण भी नवाब मुहम्मद अली शाह की बेगम ने कराया था।
संवत् 2075 (2018) के ज्येष्ठ माह में अधिक मास होने से 9 मंगल महावीर मेले की धूम होगी और 2 महीने तक हनुमानजी का डेरा लखनऊ में रहेगा। पहला बड़ा मंगल 1 मई को है। इन्हीं 9 मंगलों के दौरान सेक्टर क्यू अलीगंज के विन्ध्याचल देवी मन्दिर में 81 फुट की विशाल हनुमान प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होगी। शहर भर में भंडारों की धूम होगी जिनसे टनों कचरा निकलेगा। कई जगह आइसक्रीम, कढ़ी-चावल, खीर जसे अन्य पकवान भंडारों में बांटे जाते हैं। अब तो कई मन्दिरों में हनुमानजी एसी व कूलर में रहते हैं। टनों फूलों के श्रृंगार से लेकर तरह-तरह के भव्य आयोजन होते हैं। वैसे भी इस वर्ष मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री की विशेष कृपा रहेगी हनुमान मन्दिरों पर इसी श्रृंखला में आलमबाग से आगे वीआइपी रोड के पास नये बसे इलाके आजाद नगर में पंडित गया प्रसाद शुक्ला जी ने अपने घर में नीचे हनुमान मन्दिर बनाया है जहां भव्य भंडारे का आयोजन होता है। इंदिरा नगर में भी कई जगह नये हनुमान मन्दिरों का निर्माण हुआ है वहां भी श्रृद्धालुओं की आस्था देखने को मिलेगी।