Sunday, November 24, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » एक घर हो अपना, हो गया सपना

एक घर हो अपना, हो गया सपना

लखनऊ, राम प्रकाश वरमा। राजधानी में अपने लिए आशियाना बनाने का सपना देखने वालों को अब निराश होना पड़ेगा क्योंकि निर्माण सामग्री से लेकर मजदूर, राज मिस्त्री, प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन की दरें खासी महंगी हो गईं हैं। हैरत की बात है ‘सबका साथ, सबका विकास’ चार साल में ही ‘साफ नीयत, सही विकास’ में तब्दील होकर प्रचार और आंकड़ों के मंच से चूल्हा, घर, सफाई, शौचालय सहित तमाम सौगातें बांटकर ‘न्यू इण्डिया’ बनाने का चुनावी ऐलान कर चुका है, जबकि नोटबंदी, जीएसटी के बाद लुटी-पिटी कंगालों की एक नई कौम हाथ पसारे ‘मन की बात’ सुनने को मजबूर है।
गौरतलब है कि महज पांच महीने पहले 37 हजार रूपये टन सरिया का दाम था जो फरवरी की शुरुआत में 45 हजार रुपये टन हो गया। मार्च लगते ही 49 हजार रुपये टन हो गया और आज उछल कर 60 हजार रूपये टन पर पहुंच गया है। यही हाल मौरंग का रहा है, जो चार महीने तक 110 रुपये फुट बिक रही थी वो आज गिर कर 80-85 रुपये फुट है, यहां बताना जरूरी होगा कि मौरंग की जगह सरकारी कामों में अधिकतर पत्थर का चूरा इस्तेमाल हो रहा है जिसका भाव मौरंग से आधा है, गुणवत्ता क्या होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सीमेंट के भाव जनवरी, 18 में 265 रुपये बोरी था जो आज बढकर 295-310 रुपये बोरी हो गया है। वहीं मजदूरों की दिहाड़ी होली से पहले तक 300 रुपये थी जो अब बढकर 350 रूपये हो गई है, इसी तरह सभी लेबर की दिहाड़ी में 15-25 फीसदी का इजाफा हुआ है, लेकिन अधिकांश मजदूर बेकारी की मार से बेजार हैं, क्योंकि निर्माण कार्य लगभग बंद हैं। गली-कूचों में बनने वाले छोटे-मंझोले मकानों को अधबना देखा जा सकता है।
बाजार के सूत्रों का कहना है कि शेयर ब्रोकर और कम्पनियों के सिंडीकेट ने केंद्र सरकार की अनदेखी के चलते सरिया-सीमेंट में बढ़ोतरी करा दी। सरिया के भाव अचानक हफ्तेभर में बढ़ना बताता है कि इस साजिश में देश में आये दिन होने वाले चुनावों में दिए जाने वाले चंदे की बड़ी भूमिका है। बतादें पूरे देश में निर्माण कार्यों में 60-70 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है या यूं कहें कि निर्माण कार्य बंद हो गये हैं। रियल स्टेट के दिग्गज अपनी साख बचाने के लिए दूसरे क्षेत्रो से लेकर दूसरे देशों तक में सम्भावनाएं तलाश रहे हैं। गिरावट का आलम यह है कि लखनऊ विकास प्राधिकरण को अपनी कानपुर रोड पर मानसरोवर योजना में 5 योजनाओं के फ्लैटों की कीमतें 10 फीसदी कम करने के एलान के बाद भी कोई खरीददार फटक नहीं रहा। सरकार जिस प्रधानमंत्री आवास योजना का ढोल पीट रही है उसकी हकीकत अजब-गजब है, डेढ़-ढाई लाख रुपये देकर घटिया निर्माण के आवास तैयार किये जा रहे हैं, जिस पर रिश्वतखोरों की पौ बारह है। आये दिन इन आवास निर्माण के घोटाले की खबरें शौचालय निर्माण घोटाले की तर्ज पर उजागर हो रही हैं।