लखनऊ, राम प्रकाश वरमा। राजधानी में पिछले 15 दिनों से एक-दो दिन छोड़कर हर सुबह भारी बरसात हो रही है। जिससे गली-मोहल्ले, कालोनियां तालाबों, नालों में बसे या उगे दिखाई देने लगे। आदमी से लेकर जानवर तक गीला-गीला हो रहा है। भोर की भारी बरसात में सबसे अधिक तकलीफ में अखबार घर-घर बांटने वाले हाकर, दूध, अंडा, पावरोटी, मक्खन फुटपाथ पर बेचने वाले हैं। ये जमात हर सुबह अलसाई राजधानी के घर-घर में बेनागा ये सभी सामन पहुंचाते हैं। मामूली सी देर हो जाने में किसी का शौचालय इन्तजार में गंदा होने से रह जाता है, तो किसी बच्चे के स्कूल का टिफिन तैयार करने में मम्मियों के फेसबुक/वाट्सअप की गुड मॉर्निंग का नागा हो जाता है।
अखबार हाकरों की नई जमात पुराने हाकरों की तरह संजीदा भी नहीं है फिर भी 75 फीसदी हाकर बरसते-गरजते सावन में घर-घर अखबार बाँट रहा है और हादसों के साथ बीमारी का शिकार भी हो रहा है। यही नहीं दैनिक अखबारों की प्रसार संख्या में भी खासी गिरावट आई है। अखबारों के वितरण सेंटरों पर हाकरों के न पहुंचने से अखबार के बंडल प्रेस से भेजे ही नहीं जाते या उनकी संख्या देखकर भेजे जाते हैं। अव्वल तो बारिश का जोर देखकर अखबार की प्रतियां कम छापी जाती हैं। इसी तरह दूध, अंडे, पावरोटी, मक्खन की बिक्री में भी गिरावट दर्ज की जा रही है। फेरीवाले, साइकिल रिक्शेवाले, मजदूर और फुटकर कारोबारियों को सर छुपाने के भी लाले हैं। ये लोग पूरी-पूरी रात जागती आँखों में काट देते हैं और फिर दिन भर रिक्शा खींचते हैं या सर पर बोझ ढोते हैं।
हाँ…भरे पेट जवानी सावन के हंसते बादलों की नन्ही-नन्ही बूंदों के बीच लखनउव्वा मरीनड्राइव पर स्मार्ट फोन से सेल्फी खींचकर मौसम के मजे लेने में जरूर मस्त है। अखबार में भी भीगी-भीगी इठलाती यौवनाओं के ही फोटो छाप कर मौसम का हाल बयान किया जाता है। गोया सावन अस्पताल औ हवाईअड्डे की टपकती छतों से होता हुआ बरसाती पानी में तरबतर रोटी के साथ भी कभी हथेली में समाये फोन से सेल्फी खिंचा पायेगा ?