उपराष्ट्रपति ने राजनीतिक बहस के लगातार गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए इस प्रवृत्ति को बदलने का आह्वान किया
नई दिल्ली, जन सामना ब्यूरो। भारत के उपराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने हाल के वर्षों में राजनीतिक बहस के निचले स्तर पर पहुंचने पर चिंता व्यक्त करते हुए इस प्रवृति को जल्दी बदलने का आह्वान किया है।
हैदराबाद में आज हैदराबाद प्रबंधन संघ (एचएमए) के 46 वें वार्षिक पुरस्कार समारोह में बोलते हुए, उपराष्ट्रपति, ने संसद और राज्य विधानसभाओं में लगातार हो रहे व्यवधानों पर अपनी चिंता व्यक्त की।
श्री नायडू ने दुखी लहेजे में कहा कि इस तरह के पवित्र और वैधानिक मंचों में व्यवधान उत्पन्न करना हमारे संविधान निर्माताओं की परिकल्पना की उपेक्षा करना है। “एक तरह से, यह भारत के संविधान की भावना के प्रतिनुकूल है। यह लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं की अनदेखी करने जैसा है। यह जनादेश की अवहेलना है। यह लोकतंत्र के इन स्तंभों में लोगों के विश्वास के साथ विश्वासघात करने जैसा है, ”
श्री नायडू ने कहा कि सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोगों को यह समझना चाहिए कि वे केवल प्रतिद्वंद्वी हैं दुश्मन नहीं। पूर्व राष्ट्रपति, श्री प्रणव मुखर्जी हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि “कोई भी निर्णय लेने के लिए बहस और चर्चा करें लेकिन व्यवधान पैदा न करें” संस्थानों के प्रभावी कामकाज के लिए यह सबसे अच्छा तरीका होना चाहिए।
विधायिकाओं में लगातार व्यवधान से जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने की मांग मजबूत होने की आशंका व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा “ मुझे डर है कि हम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं”। उन्होंने कहा कि विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों को तीन महीने के भीतर दलबदल निरोधक मामलों का फैसला करना करना चाहिए। इसी तरह, चुनाव याचिका और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों का उच्च न्यायालयों की विशेष पीठों द्वारा समयबद्ध तरीके से जल्दी निपटारा किया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोगों ने हाल के चुनावों में पूरी स्पष्टता के साथ अपनी पसंद के अनुरूप स्थिरता और निरंतरता के लिए मतदान किया। उन्होंने कहा कि देश को भूख, गरीबी, अशिक्षा और बीमारी के खिलाफ अपनी अथक लड़ाई जारी रखनी चाहिए और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा, रोजगार, बेहतर बुनियादी ढांचे और सुविधाओं के माध्यम से आर्थिक विकास के लाभ को जनता की खुशहाली में बदलना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस लक्ष्य को निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में प्रबुद्ध और कुशल प्रबंधन के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एचएमए जैसे निकायों को प्रबंधन को अर्थव्यवस्था और समाज के परिवर्तन के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करना चाहिए।
जीएसटी को एक क्रांतिकारी कराधान उपाय बताते हुए उपराष्ट्रपति ने इसके लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में 17 साल की लंबी चर्चा को सफल बनाने में पूर्व वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली के प्रबंधकीय और नेतृत्व कौशल की सराहना की। उन्होंने कहा कि जीएसटी परिषद की 34 बैठकों में सभी निर्णय बिना मतदान के सर्वसम्मति से लिए गए, उन्होंने कहा कि यह “प्रबंध कौशल की महारत है”।
विश्व बैंक के नवीनतम पूर्वानुमान का उल्लेख करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि पूरी दुनिया निवेश के लिए भारत की ओर देख रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह आने वाले वर्षों में भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए सुधारों को तेज करने का समय है।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों से एक-दूसरे पूरक बनने और एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने का आग्रह करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि कॉर्पोरेट प्रशासन के मजबूत सिद्धांतों को किसी भी कंपनी का प्रेरक बल होना चाहिए। “पारदर्शिता, एकता, नैतिकता और ईमानदारी के सिद्धांतों को हर समय बरकरार रखा जाना चाहिए और प्रत्येक व्यावसायिक गतिविधि में यह परिलक्षित होना चाहिए।”
श्री नायडू ने कहा कि भारत विकास के इस महत्वपूर्ण मोड़ पर घोटालों, और धोखाधड़ी की अनुमति नहीं दे सकता है। उन्होंने कहा कि वित्तीय धोखाधड़ी करने वाले भगोड़ों को विदेशों में सुरक्षित ठिकाने तलाशने से पहले ही कानून की गिरफ्त में लाया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने इस अवसर पर विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार भी प्रदान किए। जिसमें तेलंगाना सरकार के प्रधान सचिव श्री जयेश रंजन को दिया गया वर्ष -2018 के कुशल प्रबंधक का पुरस्कार भी शामिल था।
इस अवसर पर हैदराबाद प्रबंधन संघ के अध्यक्ष श्री रवि कुमार पिसापति, संघ के सदस्य और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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