दो इंसानों की जरूरत पर लेनदेन का किस्सा “सरोगेसी” व्यापार बन गया है आजकल। पहले सरोगेट मदर का सहारा तब लिया जाता था जब कोई औरत माँ बनने में सक्षम नहीं होती थी तब उसके पति का बीज किसी अन्य महिला के अंडे के साथ फलीभूत करके भाड़े की कोख में बो दिया जाता था, और इस ज़रिए मातृत्व प्राप्त किया जाता था। पर आज कल कई महिलाएं अपने फ़िगर को कमनीय रखने के चक्कर में सरोगेसी का सहारा ले रही है। मेहनत भी नहीं फ़िगर भी खराब न हो और पैसों के दम पर रेडीमेड बच्चा पा लेती है।
माँ त्याग की मूर्ति है जो अपनी जान पर खेलकर अपने भीतर आपकी सांसों की संरचना को पूरा होने तक पालती है। उस त्याग की मूर्ति के बिना तो किसी भी नए जीवन की कल्पना संभव नहीं।
मातृत्व एक स्त्री को संपूर्ण बनाता है स्त्री को एक खास स्थान देता है। जब स्त्री गर्भ धारण करती है तब पूरे परिवार में एक खुशी का माहौल बन जाता है, आम औरत भी खास बन जाती है। घर का हर सदस्य खास खयाल रखते पूछता रहता है दवाई ली की नहीं ? दूध पिया की नहीं?अरे धीरे चला करो इतना वजन क्यूँ उठा रही हो, ये मत करो, वो मत करो, कुछ चाहिए तो बता दिया करो। बच्चा हिल रहा है की नहीं वगैरह। और बाल गोपाल की तस्वीर सगर्भा के रूम में रख दी जाती है। शायद सरोगेट मदर को भी ये सारी आवा भगत मिलती होगी जिनके बच्चे को वह अपनी कोख में पालती है उनकी तरफ़ से। कई बार ये बात सरोगेट मदर से गुप्त भी रखी जाती है की किसके बच्चे को जन्म देने वाली है। सिर्फ़ पैसे और बच्चे का लेनदेन करके बात ख़त्म हो जाती है। पर इन सारी ख़ातिरदारी के बाद एक सरोगेट मदर्स को क्या मिलता है? 9 माह ख़त्म होते ही उसकी कोख तो खाली हो जाएगी। और चंद रुपयों के बदले उसकी ममता, भावना और मातृत्व छीन लिया जाता है। साथ ही डिलीवरी के बाद शरीर में आए परिवर्तन के चलते मोटापा या बेडौल शरीर का तोहफ़ा मिलता है। कई बार सरोगेट मदर कोख में पल रहे बच्चे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है, भूल जाती है की किसी ओर की अमानत पाल रही है। क्या कोख खाली होते ही उस बच्चे के प्रति उत्पन्न हुए लगाव को दफ़न कर पाती होगी। सरोगेट मदर अपनी कोख से पैदा किए बच्चे को अपना दूध नहीं पिला पाती और माँ के रहते हुए भी वह बच्चा माँ के दूध से वंचित रह जाता है। देवकी बनकर रह जाती है सरोगेट मदर यशोदा बनने का सुख किसी ओर की झोली में ड़ालकर। मातृत्व जिसका मोल ही नहीं उसे हासिल करके भी उस भावना से वंचित रह जाती है। पर लगता है पैसों की जरूरत के आगे ममता दफ़न हो जाती होगी तभी तो माँ बनने के बाद भी औरत भावहीन बन जाती होगी।
भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगुलूरु