प्रयागराज। अपने भारत से सुदूर दुबई आई डॉ विमला व्यास के बहु चर्चित काव्य संग्रह ‘अनहद बाजे: वीणा मन की’ का विमोचन समारोह और पुस्तक परिचर्चा का आयोजन संयुक्त अरब अमीरात के रचनाकारों द्वारा बुर्ज खलीफ़ा के करीब स्थित ‘मनाजेल अल सफा टॉवर, बिजनेस बे, दुबई में जोश-ओ-खरोश से सम्पन्न हो गया।
समारोह के मुख्य अतिथि शिक्षाविद् डॉ कृष्ण पांडे, डीन साइंस, मनीपाल विश्वविद्यालय दुबई रहे तथा अध्यक्षता दुबई की साहित्यकारा स्नेहा देव ने की। अनु बाफना ने मंच संचालन का कार्यभार बड़ी कुशलता से निभाया। स्वागत भाषण के बाद उन्होंने लेखिका के जीवन-वृत्त से सबको अवगत कराया।
मुख्य अतिथि डॉ कृष्ण पांडे के हाथों डॉ विमला व्यास के प्रथम काव्य संग्रह ‘अनहद बाजे: वीणा मन की’ के विमोचन के पश्चात् लेखिका के साथ उनकी लेखन यात्रा के विषय में डॉ नितिन उपाध्ये और स्नेहा देव के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे गए। उनकी जिज्ञासा का समाधान करते हुए, अपने वक्तव्य में डॉ. विमला ने बताया कि प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय जी की तरह वो भी कविता को ‘सत्य की खोज’ मानती है। क्योंकि सत्य का ज्ञान वस्तुतः आत्म ज्ञान है। इसीलिए वह स्वयं को कर्ता नही बल्कि इस सत्य का साक्षी मानती हैं। उनके कथनानुसार यह सत्य सिर्फ़ अनुभूति का विषय है और इस अनुभूति के लिए आवश्यक है अहम् का पूर्ण परित्याग।
उन्होंने बेहद सहृदयता से कहा कि हमारी सर्जना के तीन अहम् तत्त्व हैं। ख़ुद के अहं का विगलन, अनुभूतियों की प्रमाणिकता और परम तत्त्व के प्रति संपूर्ण समर्पण।
“जब पाठक, सृजनकर्ता की आंतरिक भाव भूमि में स्वयं को स्थापित कर पाता है, तभी वो काव्य रस का असली आनंद ले पाता है।”
स्वयं के जीवन की सत्य आत्मकथाओं द्वारा बड़े दृष्टांतपूर्ण तरीके से उन्होंने उपरोक्त बातों का महत्त्व उपस्थित सभा को बताया।
डॉ. विमला की चुनिंदा कविताओं पर चर्चा के दौरान उनकी लेखनी में छायावाद की मशहूर कवियत्री महीयशी महादेवी वर्मा की झलक साफ़ दिखाई देती है। आखिर इसका क्या राज है ?
उन्होंने बेहद खुबसूरती से इस बात का जवाब दिया। उन्होंने बताया कि उन्हें विद्यार्थी जीवन में अनेकों बार आदरणीयाँ महादेवी से मिलने, साहित्यिक चर्चा करने एवं उनके सानिध्य में वक्त बिताने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। बहुत कुछ सीखा है उनसे, वो हमारी प्रिय कवियत्री, अग्रज और साहित्यिक गुरु रही हैं। इसीलिए डॉ विमला के काव्य शिल्प में आदर्णीयाँ महादेवी की तरह छायावाद के मूल दर्शन सर्वात्मवाद की झलक मिलती है।
उनकी जन्मभूमि प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट धाम एवं कर्मभूमि विश्वविख्यात कुंभ नगरी प्रयागराज है। इन दोनों पुण्य स्थलों की सभ्यता, संस्कृति, आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक वातावरण के साथ-साथ वहाँ की माटी की खुश्बू उनकी लेखनी का प्राण है। वो विज्ञान की छात्रा रही हैं। साहित्य उनके लिए परम पिता परमात्मा की कृपा एवं माता पिता गुरुजनों का आशीर्वाद है। जहाँ तक उनकी कविताओं का दायरा है, वो पाठकों को लौकिक से पारलौकिक की यात्रा करवाने में बखूबी समर्थ हैं। इसके पश्चात दुबई की साहित्यकारा डॉ आरती लोकेश ने बेहद सुंदर काव्य समीक्षा प्रस्तुत की। कार्यक्रम में डॉ. विमला के पुत्र शिवम व्यास, पुत्रवधू स्वर्णलेखा शेट्टी व्यास, सुषमा एवं गुरु शेट्टी की गरिमामय उपस्थिति रही।
बातचीत के दौरान डॉ. विमला व्यास ने कहा कि “भारत में बहुत से छोटे-बड़े साहित्यिक और अकादमिक कार्यक्रमों में शिरकत की है। साहित्य के बहुत से प्रतिष्ठित सम्माननीय लेखकों को सुना है, उनसे सम्वाद किया है। किन्तु कल दुबई के साहित्यिक बिरादरी के साथ हुआ ये छोटा सा आयोजन मन में अमिट छाप छोड़ गया। भारत से हजारों कोस दूर अरब के मरुस्थल में भी, कुछ साहित्य समर्पित लोग जिस तरह से हिंदी साहित्य की गंगा बहा रहे हैं, सच में अद्भुत है।