कानपुर। बिधनू कठेरुआ स्थित पंचमुखी हनुमंत धाम में श्रीमद्भागवत कथा का तीसरे दिन श्रद्धालुओं ने भक्ति की गंगा में डुबकी लगाई। इस मौके पर, मनुष्यों का क्या कर्तव्य है इसका बोध भागवत सुनकर ही होता है। विडंबना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निस्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोग अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं। यह बात बिधनू कठेरुआ स्थित पंचमुखी हनुमंत धाम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथावाचक मलूकपीठाधीश्वर राजेन्द्र दास देवाचार्य महाराज के शिष्य चन्द्रेश महाराज उर्फ चन्द्रदास ने कही। उन्होंने कहा कि प्रभु जब अवतार लेते हैं तो माया के साथ आते हैं। साधारण मनुष्य माया को शाश्वत मान लेता है और अपने शरीर को प्रधान मान लेता है। जबकि शरीर नश्वर है। उन्होंने कहा कि भागवत सिखाती है कि कर्म ऐसा करो जो निस्काम हो वहीं सच्ची भक्ति है। उन्होंने बताया किसी भी स्थान पर जाने से पहले इस बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि जहां आप जा रहे हैं, वहां आपके माता पिता और गुरु का अपमान न हो। यदि ऐसा है तो उस स्थान का त्याग करने के साथ उस व्यक्ति से भी संबंध तोड़ देने चाहिए। जानने के बाद भी ऐसे लोगों से संबंध रखने वाला गुरु और मातृ पित्र द्रोही होता है और घोर नरक का कष्ट भोगता है। कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान शिव की बात को न मानकर पिता के घर जाने से अपमानित सती को स्वयं अग्नि में समाना पड़ा था। ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। बच्चों को बचपन से ही भगवान की भक्ति करने की प्रेरणा देनी चाहिए। इस मौके श्रीबाबू शुक्ल, रानी शुक्ला, राजेन्द्र त्रिपाठी, दिलीप तिवारी, अरविंद शुक्ल, सतीश शुक्ल, सर्वेश रावत, बदलू सैनी, रमाकांत तिवारी, सिद्धार्थ, संजीव, रामजी द्विवेदी मौजूद रहे।