Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

विस. उप चुनाव जीतने के लिये योगी ने संभाला मोर्चा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव में मनमाफिक सीटें नहीं मिलने के दाग को धोने के लिये स्वयं मोर्चा संभाल लिया है। प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव में बड़ी जीत हासिल करके योगी विपक्ष को एक बार फिर से बैकफुट पर ढकेलने की रणनीति बना रहे हैं। खासकर अखिलेश यादव द्वारा जीत के बाद छोड़ी गई करहल और अयोध्या लोकसभा से सांसद चुने गये सपा नेता अवधेश प्रसाद के मिल्कीपुर विधान सभा सीट त्यागपत्र देेने के बाद खाली हुई इन दोनों सीटों पर हुए चुनाव को गंभीरता से ले रही हैं। योगी ने इन 10 में से अपने हिस्से की पांच सीटों पर कब्जा बरकरार रखने के साथ ही शेष पांच सीटों को भी जीतने की रणनीति बनाई है। उप चुनाव की कमान खुद मुख्यमंत्री ने अपने हाथों में लिया है। उनके द्वारा सभी 10 सीटों पर 16 मंत्रियों की टीम तैनात कर उन्हें जीत पक्की करने की जिम्मेदारी दी गई है। इन सीटों के नतीजों से ही इन मंत्रियों की हैसियत भी घटे या बढ़ेगी।

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नीट परीक्षा विवाद… आखिर क्यों ?

UGC-NET परीक्षा की नई तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने बताया है कि UGC-NET की परीक्षा 21 अगस्त से 4 सितंबर के बीच में होने वाली है, इसके साथ-साथ ज्वाइंट CSIR-UCG NET की परीक्षा जुलाई 25 से 27 जुलाई के बीच में होने वाली है। इसी कड़ी में NCET परीक्षा 10 जुलाई को करवाई जाएगी। बड़ी बात यह है कि इन परीक्षाओं को इस बार ऑनलाइन करवाया जा रहा है क्योंकि पिछली बार UGC-NET की परीक्षा ऑफलाइन करवाई गई थी।
हर साल लाखों छात्र मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए NEET की परीक्षा देते हैं। NEET परीक्षा विवाद के बाद लाखों छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। 5 मई को देशभर से करीब 23 लाख स्टूडेंट्स ने यह परीक्षा दी थी, लेकिन पेपरों की बिक्री से लेकर अंकों के अवैध वितरण की ग्रेस पद्धति और परिणामों की घोषणा तक हर स्तर पर घोटाला हुआ।
नीट परीक्षा मानसिक योग्यता का परिक्षण होता है।
एक परीक्षा 23 लाख छात्र और बहुत से सवाल। 50 हजार रूपए की पुस्तकें, लाखों रुपए कोचिंग फीस के बाद 12-12 घंटे तक बच्चों की पढ़ाई और उसके बाद हजारों प्रश्नों में से 180 प्रश्न पूछे जाते हैं जिनके उत्तर छात्रों को देने होते हैं। फिर मेरिट लिस्ट बनने के बाद छात्रों को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिलता है।
इन घोटालों के चलते इस साल नीट परीक्षा में टॉपर्स की संख्या 67 तक पहुंच गई जबकि पिछले साल टॉपर्स की यही संख्या सिर्फ दो थी।

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त्योहारों के मौसम और मुहर्रम पर शांति सरकार की बड़ी कसौटी

उत्तर प्रदेश में त्योहारों का सीजन शुरू होने वाला है। सावन का महीना भी लगने वाला है। वहीं इसी दौरान मुहर्रम का सिलसिला भी शुरू हो जायेगा। ऐसे में कानून व्यवस्था सरकार और पुलिस के लिये बढ़ी चुनौती होगी। इसी को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि कांवड़ यात्रा हो या मुहर्रम सभी की आस्था का सम्मान किया जाए, लेकिन नई परंपरा की अनुमति नहीं दी जाएगी। 22 जुलाई से पवित्र श्रावण मास का प्रारंभ हो रहा है। इस अवधि में श्रावणी शिवरात्रि, नागपंचमी और रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। परंपरागत कांवड़ यात्रा निकलेगी। इसलिए सरकार ने आदेश दिया है कि पिछले वर्षों में हुई दुर्घटनाओं से सबक लेते हुए इस बार निर्धारित आवाज में ही डीजे बजाने की अनुमति दी जाए और उसकी ऊंचाई भी ज्यादा न हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि सात से नौ जुलाई तक जगन्नाथ रथ यात्रा, सात व आठ से 17-18 जुलाई तक मोहर्रम और 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पावन अवसर है। इसलिए सभी संबंधित विभाग इसकी तैयारियां समय से कर लें।
गौरतलब हो, कांवड़ यात्रा की दृष्टि से उत्तराखंड की सीमा से लगे जिलों के अलावा गाजियाबाद, मेरठ, अयोध्या, बरेली, प्रयागराज, वाराणसी, बाराबंकी व बस्ती जिले महत्वपूर्ण हैं। कावंड़ यात्रा आस्था के उत्साह का आयोजन है। योगी सरकार ने आदेश दिया है कि परंपरागत रूप से नृत्य, गीत, संगीत इसका हिस्सा रहे हैं। ऐसे में डीजे, गीत-संगीत आदि की आवाज निर्धारित मानकों के अनुरूप ही हो।

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अनुप्रिया की साख पर आई आंच तो बीजेपी की लगाई क्लास

अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल की 2024 के लोकसभा चुनाव में सियासी जमीन क्या हिली,उन्हें दलित,कुर्मी पिछड़े सब याद आने लगे हैं। 2019 में मिर्जापुर लोकसभा सीट का चुनाव अनुप्रिया ने करीब दो लाख बत्तीस हजार वोटों के अंतर से जीता था, लेकिन 2024 में जीत का अंतर 37 हजार वोटों के करीब सिमट गया। ऐसा होते ही अनुप्रिया फिर से अपनी साख लौटाने के लिये उसी बीजेपी को घेर रही हैं जिसकी मोदी सरकार में वह और योगी सरकार में उनके पति मंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। अपनी खोई हुई जमीन फिर से हासिल करने के लिये अनुप्रिया ने ओबीसी व एसटी के लिए आरक्षित पदों पर भर्ती को लेकर जो सवाल खड़े किये वह उनके सियासी सुर्खियां बटोरने का प्रयास के अलावा कुछ नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि इसके पीछे उनकी कुर्मी वोट बैंट के खिसकने की घबराहट को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि खुद को अपनी जाति का एकमात्र नेता मान चुकीं अनुप्रिया को इस बार लोकसभा चुनाव में कड़े संघर्ष में बमुश्किल जीत मिली थी, उससे वह काफी दबाव में हैं।
दरअसल, लोकसभा चुनाव में उन्हें अपनी परंपरागत सीट पर अनुप्रिया को बड़ी मशक्कत और कड़े संघर्ष में जीत मिली थी, वहीं, राबर्टगंज सीट उनके हाथ से निकल गई।

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अवधेश के सहारे बीजेपी के हिंदुत्व को चुनौती देगी सपा

समाजवादी पार्टी अयोध्या लोकसभा सीट से सपा की जीत को एक बड़ा सियासी मुद्दा बनाने का हर जतन कर रही है। जाने-अंजाने वह बीजेपी से लड़ते-लड़ते प्रभु श्रीराम को ‘चुनौती’ देने लगी हैं। सपा सांसद धमेन्द्र यादव का वह कृत्य कैसे भुलाया जा सकता है जब संसद के भीतर वह अयोध्या से विजय हुए अवधेश प्रसाद की शान में ‘जय अवधेश’ के नारे लगाते हैं। वह कहीं न कहीं ऐसा करके जय श्री राम के समानांतर अवधेश प्रसाद को खड़ा दिखाने की साजिश कर रहे थे। इतना नहीं सपा द्वारा सांसद अवधेश को अयोध्या का राजा बताया जा रहा था, जबकि समाजवादी जानते हैं कि अयोध्या के राजा प्रभु श्री राम थे। यह बात आज तक निर्विवाद सत्य है। इसी तरह उनको सपा संसद में सबसे आगे की कुर्सी पर बैठाती है, जबकि समाजवादी पार्टी के अन्य दो-तीन बार तक के सांसद अवधेश प्रसाद के पीछे की कुर्सियों पर बैठे नजर आते हैं। हालात यह है कि अब तो विपक्ष अवधेश प्रसाद को डिप्टी स्पीकर का चुनाव लड़ाने की भी बात कहने लगा है,जबकि वह पहली बार लोकसभा चुनाव जीत कर आये हैं। ऐसा लगता कि अयोध्या को समाजवादी पार्टी ने अपने चुनावी एजेडे में शामिल कर लिया है। ऐसा करके वह बीजेपी के हिन्दुत्व कार्ड को चुनौती तो अपने पीडीए वाले एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहते हैं। अवधेश दलित समाज से आते हैं,इसके जरिये भी वह दलितों को बड़ा संदेश देना चाहते हैं। यह सिलसिला फिलहाल थमने वाला नहीं लगता है। अभी दस सीटों पर विधान सभा चुनाव होने हैं। सपा देखना चाहती है कि इसका उसे चुनाव में कितना फायदा मिलेगा।

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यूपी में राहुल तो अन्य राज्यों में अखिलेश तलाश रहे हैं संभावनाएं

उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से राहुल गांधी की जीत के बाद यूपी में पार्टी के लिये नई संभावनाएं तलाश रहा कांग्रेस आलाकमान और गांधी परिवार एक बार फिर प्रदेश में विस्तार के लिये कमजोर हो चुके संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास कर रहा है। राहुल गांधी ने भले ही समाजवादी पार्टी के वोट बैंक के सहारे रायबरेली से जीत हासिल की हो, लेकिन वह अपनी जीत को इस तरह से प्रचारित कर रहे हैं जैसे यूपी की जनता कांग्रेस को फिर से बीजेपी के विकल्प के रूप में देखने लगी है। राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से त्यागपत्र देकर रायबरेली सीट का संसद में प्रतिनिधित्व करने का निर्णय कर कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया है, अब यह उर्जा कब तक बरकरार रहेगी कोई नहीं जानता है। इस बार समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाकर चुनाव लड़ रही कांग्रेस को यूपी में 06 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यूपी को लेकर राहुल गांधी की चपलता को आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। साढ़े तीन दशक से उत्तर प्रदेश में अपनी खोए जनाधार को तलाश रही कांग्रेस को अबकी लोकसभा चुनाव के नतीजों से नई उम्मीद जागी है। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की निगाह अब उत्तर प्रदेश पर सबसे अधिक है। बीजेपी ने आम चुनाव में काफी खराब प्रदर्शन किया था, इससे भी कांग्रेस में खुशी का माहौल है।
बहरहाल, यह एक पहलू है। दूसरा पहलू यह है कि समाजवादी पार्टी ने यूपी में कांग्रेस को वह सब कुछ दे दिया है जिसकी उसे वर्षाे से दरकार थी, लेकिन अब अखिलेश इसकी कीमत वसूलना चाहते हैं। अखिलेश भी कांग्रेस से इस बात की अपेक्षा कर रहे हैं कि वह भी यूपी में बाहर उन राज्यों में उसको हिस्सेदारी दे जहां जल्द विधानसभा चुनाव होने हैं।

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अच्छा रिश्ता मिलना समस्या क्यों ?

कहते हैं कि रिश्ते आसमान पर बनते हैं। जमीन पर तो उनका सिर्फ मिलन होता है और इस मिलन को भाग्य में लिखे गए जीवनसाथी को तलाश करने में माता-पिता और निकट संबंधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन आज के इस निरन्तर परिवर्तित युग में यह दायित्व मैरिज ब्यूरो और इन्टरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने उठा लिया है। इतनी सुविधाएं उपलब्ध होने पर भी आज अच्छा रिश्ता मिलना एक गंभीर समस्या बन गया है। आखिर क्या कारण है जिनके चलते अच्छे रिश्तों का अकाल पड़ गया है? आज इसी समस्या के कारण असंख्य अविवाहित लड़कियां विवाह का अरमान लिए प्रौढ़ावस्था में प्रवेश कर जाती हैं। जहां पहुंचकर उन्हें असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है कभी-कभी तो उन्हें विवाहित पुरुष की दूसरी पत्नी बनने की पीड़ा सहनी पड़ती है। इतना ही नहीं कुंवारे होने पर भाई-भावजों के तानों के साथ समाज के व्यंग्य को भी सहना पड़ता है। हमारे समाज में रिश्ते पहले भी हुआ करते थे, लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या कारण है कि आज अच्छा रिश्ता मिलना असंभव सा हो गया है ?

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आखिर लगा ही दी नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर हैट्रिक

जैसा कि पूर्वानुमान था, नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने हैट्रिक लगाते हुए 9 जून को तीसरी बार भारत के प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली। यद्यपि विपक्षी पार्टियों के गठबन्धन इण्डिया ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन को कड़ी टक्कर दी है। जिससे भाजपा का 400 पार का स्वप्न साकार नहीं हो सका। इसके कारणों पर भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को गहन विचार करना पड़ेगा। क्योंकि पार्टी के चाणक्यों ने 400 से अधिक सीटें प्राप्त करने हेतु जो रणनीति बनायी थी, वह कहीं न कहीं विफल साबित हुई। जिसके चलते भाजपा को बहुमत से बहुत कम 240 सीटें ही प्राप्त हुईं। परन्तु उसके नेतृत्व वाले गठबन्धन राजग ने 292 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। जनवरी 2023 से फरवरी 2024 के बीच विभिन्न एजेंसियों द्वारा कराये गये चुनावी सर्वेक्षणों में भी नरेन्द्र दामोदर दास मोदी हैट्रिक लगाते हुए दिखाई दे रहे थे। जो एकदम सही साबित हुआ। लेकिन सीटों को लेकर सर्वेक्षणों का आकलन गलत सिद्ध हुआ। देश की 13 अलग-अलग एजेंसियों द्वारा कराये गये सर्वेक्षणों के आधार पर भाजपा गठबन्धन को 44.30 प्रतिशत वोट के साथ 341 के आसपास सीटें मिलने की सम्भावना थी।

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बंपर नौकरियों के सहारे 2027 में विपक्ष को ‘बेरोजगार’ करेंगे योगी

भारतीय जनता पार्टी 2024 जैसे चुनावी नतीजे 2027 विधानसभा चुनाव में नहीं देखना चाहती है। खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिये अभी से सरकार के पेंच कसना शुरू कर दिये हैं। संगठन स्तर पर भी काम चल रहा है। यूपी विधानसभा चुनाव 2027 के शुरुआती तीन-चार महीनों में सम्पन्न होना है। इस हिसाब से सरकार के पास तीन साल से भी कम का समय बचा है। लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी खराब छवि वाले विधायकों का टिकट काटने में भी परहेज नहीं करेगी। गौरतलब हो, हाल में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उम्मीद से काफी कम सीटें मिली थीं। चुनाव आयोग ने जो आकड़े जारी किये हैं उसके अनुसार यूपी में 80 लोकसभा सीटें जिसके अंतर्गत 403 विधान सभाएं आती हैं, वहां अबकी से बीजेपी 162 विधान सभा क्षेत्रों में समाजवादी और कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी से पिछड़ गई थी। इन 162 विधान सभा क्षेेत्र के विधायकों पर भी गाज गिर सकती है।
वहीं 2027 में विपक्ष एक बार फिर से बेरोजगारी को मुद्दा नहीं बना पाये इसके लिये योगी ने सभी खाली पड़े रिक्त पदों को भरने के लिये बम्पर नौकरियां निकाली हैं।

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2024 का जनादेशः मायने अनेक

लोकसभा चुनाव का शोर थम गया है। अब नतीजों की समीक्षा का दौर है। सभी दलों के नेता अपनी-अपनी खामियां और खूबियों का आकलन कर रहे हैं। मगर आम आदमी के नज़रिये से देखा जाए तो यह चुनाव कई मायनों में निचले से निचले स्तर पर जाता दिखा। तमाम दलों के नेता उनके समर्थक बार-बार अपनी जुबान से जहर उगलते रहे। जाति, धर्म, राम मंदिर, आरक्षण, मुस्लिम आरक्षण, संविधान, महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, ईवीएम, किसान से लेकर वो जिहाद, मंगलसूत्र, मुजरा, कानून व्यवस्था, बाहुबली, मिट्टी में मिल गये माफिया, मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं सब छाये रहे। एनडीए सरकार की सभी योजनाओं में से प्रति व्यक्ति 5 किलो मुफ्त अनाज सबसे प्रभावी और दूरगामी प्रतीत हुआ। जाति या समुदाय से इतर दूरदराज के इलाकों में जितने भी लोगों से बात हुई, उनमें से अधिकांश ने माना कि उन्हें मुफ्त अनाज मिला है। जरूरतमंदों ने इसके लिए सरकार की खूब सराहना की। इसी प्रकार प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान स्वास्थ्य योजना का फायदा उठाने वाला एक बड़ा वर्ग बीजेपी की हौसला अफजाई करता रहा। गुलाम कश्मीर, पाकिस्तान और चीन की भी खूब बात हुई।

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