उत्तर प्रदेश में जन सुविधा केन्द्र अराजकता के अड्डे बनते जा रहे हैं। इन पर सरकारी नियंत्रण नहीं के बराबर नजर आता है। इनके कामकाज की कभी समीक्षा भी नहीं होती है,जिसके चलते यह खूब मनमानी और फर्जीबाड़ा करते रहते हैं। नकली जन्म प्रमाण पत्र से लेकर फर्जी आधार कार्ड, दिव्यांगों, वृद्धजनों, विधवा पेंशन जैसे तमाम सरकारी योजनाओं का फार्म भराने, सब में यहां धांधली का बोलबाला रहता है। आज भले ही यूपी के रायबरेली जनपद का सलोन कस्बा अवैध जन्म प्रमाण पत्र बनाने का केन्द्र बनने के कारण सुर्खियां बटोर रहा हो,लेकिन यूपी में ऐसे कई ‘सलोन कस्बे’ हैं जिन पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया है। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि बड़ी संख्या में जन सुविधा केन्द्र राष्ट्र विरोधी कृत्यों का ठिकाना बने हुए हैं।
रायबरेली के सलोन कस्बे में दूसरे प्रांतों से आए लोगों का फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाने का मामला न सिर्फ गंभीर है बलिक आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है। जिस कस्बे की आबादी ही लगभग 20 हजार हो वहां एक ग्राम विकास अधिकारी की आइडी से 19 हजार से अधिक जन्म प्रमाणपत्र बना दिए गए और किसी का इस ओर ध्यान ही नहीं गया। अब यह मामला सामने आया है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि कुछ को छोड़कर सब के सब जन्म प्रमाण पत्र बंग्लादेश और रोहनिग्यां मुसलमानों के बनाये गये हैं। खास बात यह है कि यह सब थे तो घुसपैठिये मुसलमान लेकिन इनका जन्म प्रमाण पत्र हिन्दू नामों से बनाया गया था।
लेख/विचार
डिजिटल अटेंडेंस जरूरी क्यों?
“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:।
गुरुदेवो परमेश्वर: गुरुदेवो भव:”।।
गुरु के सम्मान में कहे हुए यह वाक्य गुरु की महिमा को दर्शाते हैं। ज्ञान की कल्पना गुरु के बिना संभव नहीं है। एक शिक्षक ही होता है जो बच्चों को संसार की तमाम विभिन्नताओं और देश देशांतर की विभिन्नताओं से अवगत कराता है। शिक्षक बच्चों की नींव मजबूत करता है और उनका मार्गदर्शक होने के साथ-साथ उन्हें अनुशासित भी करता है। बच्चों का कक्षा में देर से आने पर वह उन्हें दंड देता है साथ ही उन्हें समय का पाबंद होना सिखाता है लेकिन आज यही समय की पाबंदी शिक्षकों के लिए मुसीबत बन गई है। आज शिक्षा पद्धति के साथ-साथ शैक्षणिक व्यवस्था में भी बहुत बदलाव आया है। आज शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी पर तमाम सवाल खड़े हो गए हैं ऐसे कई कारण है जिसके चलते शिक्षकों का डिजिटल हाजिरी देना संभव नहीं हो पाता है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने यह मामला स्थगित कर दिया है लेकिन विचार करने जैसी बात है कि शिक्षक आखिर समय पर डिजिटल हाजिरी क्यों नहीं दे पा रहे हैं? ग्रामीण अंचलों की बात करें तो वहां स्कूल होने के बावजूद शिक्षक समय पर नहीं पहुंच पा रहे क्योंकि उनके आवास दूर-दराज इलाकों में होते हैं साधन न होने पर यातायात संसाधनों की भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है
मिट्टी में मिलते जा रहे, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के अरमान
मिट्टी के बर्तन बनाने के अलावा इनके पास और कोई दूसरा रोजगार नहीं है, न ही कृषि करने के लिए इनके पास भूमि है। और न अन्य साधन, जिससे आय का आवक हो पाए। यह जैसे-तैसे करके अपने परिवार को पाल रहे हैं। मौजूदा दौर में एल्युमीनियम, थर्माकोल व प्लास्टिक बर्तनों का खूब चलन चला है, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। हमारे पूर्वज अपने समय में मिट्टी, लोहे व काँसे के बने बर्तनों का उपयोग करते थे। इसलिए उन्हें मौजूदा दौर की बीमारियाँ नहीं हुईं। यदि आप भी, अपने पूर्वजों की भाँति स्वस्थ्य जीवन-यापन करना चाहते हैं तो, मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग भोजन बनाने के लिए करें, ताकि आपके स्वस्थ्य के साथ ही इन कुम्हारों की माली हालत में सुधार हो सके।
आधुनिक फ्रिज और एसी ने मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है। ये मिट्टी के बर्तन बनाकर रखतें हैं लेकिन बिक्री न होने की वजह से खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। परिवार कैसे चलेगा। कोई भी मटके खरीदने नहीं आ रहा है। धंधे से जुड़े लोगों ने ठेले पर रखकर मटके बेचने भी बंद कर दिए हैं। देश भर में प्रजापति समाज के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ नहीं सकते. इसलिए उनके पास मिट्टी के बर्तन और गर्मी के दिनों में घड़े बेचने के अलावा कमाई का दूसरा विकल्प नहीं है. हालात ये हैं कि अब कुम्हार परिवार अपने काम को जिंदा रखने के लिए कर्ज लेकर व्यवसाय कर रहे हैं।
सरकारी स्कूल की बदहाली और गुणवत्ताउक्त शिक्षा पर सवालिया निशान!
बच्चे हमारे कल की तस्वीर है, आज हम उनके जीवन में जैसे रंग भरेंगे भविष्य में वैसी ही उनकी एक परिपक्य तस्वीर नजर आयेगी। बच्चों का उन्नत पालन-पोषण एवं उनकी शिक्षा उनका भविष्य निर्माण करती है। घर में बच्चों को जीवन कौशल, संस्कार, और सामाजिक एवं भावनात्मक विकास की शिक्षा मिलती है। समाज, दोस्त, पड़ोस बच्चों को बहरी ज्ञान एवं सामाजिकता सीखता है स इसके आलावा स्कूल ऐसा स्थान है जहाँ बच्चों को मानसिक रूप से ससक्त करने एवं जीवन कौशल का ज्ञान दिया जाता है। किसी भी बच्चे का व्यक्तित्व निखारने और उसका भविष्य संवारने में स्कूल की भूमिका सर्वाधिक होती है। स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां बच्चों का सामाजिक विकास तेजी से होता है। हम उम्र बच्चों के साथ वे घुलमिलकर चीजों को बेहतर तरीके से समझते हैं। वैसे तो समाजीकरण के मामले में घर को सबसे बड़ा स्कूल माना जाता है। जहां पर बच्चा प्राथमिक स्तर पर सबकुछ सीखने लगता है, लेकिन इसके बाद स्कूल उसे ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में मिलता है, जिसके जरिए उसका विकास होता है।
Read More »अब मुसलमानों से किनारा करके आगे बढ़ेगी बसपा
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने लोकसभा चुनाव में मिली शर्मनाक हार के बाद अब यूपी उपचुनाव से पहले संगठन स्तर पर बदलाव शुरू कर दिया है। सूत्रों की मानें तो 2022 के विधान सभा और 2024 के लोकसभा चुनावों से सबक लेकर बीएसपी अब दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के साथ ही उन्हें प्राथमिकता देने में लगी हुई है। वहीं मुसलमानों से मायावती का मोह भंग होता जा रहा है। मुसलमानों से मोह भंग होने का सबसे बड़ा कारण है बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों को भी उनके समाज द्वारा वोट नहीं दिया जाना। बहनजी समझ गई हैं कि मुसलमानों चक्कर में वह अपने अन्य वोट बैंक पर ध्यान नहीं दे रही थीं, जिसका खामियाजा उन्हें लगातार चुनाव में भुगतना पड़ रहा है। इसी के चलते मायावती द्वारा अब दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के लिए बनी कमेटी के गठन में ब्राह्मणों और मुसलमानों को लगभग दूर रखा जा रहा है।
यूपी बीजेपी में क्यों नहीं उभर रही है दलित लीडरशिप
लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से जो झटका मिला है, उससे बीजेपी आलाकमान अभी तक उबर नहीं पाया है। हार की कई स्तरों पर लगातार समीक्षा हो रही है। बीजेपी प्रत्याशियों की हार और वोट प्रतिशत में गिरावट के लिये फिलहाल कई छोटे-छोटे के अलावा दो-तीन बढ़े कारण नजर आ रहे हैं। इसमें प्रत्याशियों के प्रति जनता की नाराजगी के अलावा ओबीसी और दलित वोट बैंक के खिसकने को सबसे बड़ी वजह समझा जा रहा है। इसी के चलते पार्टी के सजातीय मंत्रियों और पदाधिकारियों की लगाम कसने के साथ अब इस वोट बैंक को वापस भाजपा की तरफ लाने की जिम्मेदारी भी सजातीय नेताओं को सौंपी गई है।
रथोत्सव-सा उत्सव दूसरा नहीं
भारत के चार प्रमुख धामों में श्री जगन्नाथपुरी एक परम पावन धाम है। चारों धामों का अपना पृथक-पृथक महत्व है, किंतु आदिगुरु शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार प्रमुख तीर्थस्थलों को एक में जोड़कर पूरे भारत को एक सूत्र में आबद्ध कर दिया है और भारत के चारों प्रमुख तीर्थों में अपनी एक-एक पीठ भी स्थापित कर दी है। जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ स्वामी का मंदिर अपने-आप में पौराणिक और ऐतिहासिक दोनों ही है।
यह मंदिर सन् 1199 ई. में स्थानीय नरेश अनंगभीम देव ने बनवाया और उसमें काष्ठ प्रतिमाओं को स्थापित किया। यह मंदिर 192 फुट ऊंचा है। मंदिर का घेरा 665 फुट लंबा और 615 फुट चौड़ा है। मंदिर के चारों दिशाओं में चार फाटक हैं। पूर्व दिशा का द्वार बहुत सुंदर बनाया गया है। इसे ‘सिंह द्वार’ कहते हैं। इस द्वार के दोनों ओर एक-एक सिंह की मूर्ति बनी है।
धर्मनिरपेक्ष भारत को यूसीसी से नहीं शरिया से चलाने की जिद्द
मोदी सरकार द्वारा पहली जुलाई से देश में भारतीय न्याय संहिता लागू किये जाने के बाद अब समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) का मुद्दा गरमाने लगा है, जिस तरह से मोदी सरकार के मंत्री और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूसीसी के पक्ष में बयानबाजी कर रहा हैं उससे यूसीसी विरोधियों के भी सुर मुखर होने लगे हैं। सुन्नी पर्सनल लॉ बोर्ड तो पहले से ही यूसीसी का विरोध कर रहा था, अब शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसी क्रम में लखनऊ में ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएसपीएलबी) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि समान नागरिक संहिता उन्हें किसी दशा में स्वीकार नहीं है। उनकी कौम देश के कानून से नहीं चलेगी, बल्कि शरीयत कानून को ही मानेगी। बोर्ड ने धमकी वाले अंदाज में कहा है कि मोदी सरकार यूसीसी बनाने की प्रक्रिया को रोक दे।
बाबाओं के मायाजाल में फंसती भीड़
आजकल विभिन्न सामाजिक वर्गों में अलग-अलग किस्म के अंधविश्वास प्रचलित हैं। इतने जागरूकता अभियानों के बावजूद आज भी आपको गांव-कस्बों में भूत-प्रेत के कस्से सुनने को मिल जाएंगे। वहीं हायर क्लास के अंधविश्वास अलग हैं। इस क्लास में भी असुरक्षा की भावना कम नहीं है। इस वर्ग के लोग यूं तो अत्याधुनिक होने का दावा करते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे एयरकंडिशंड आश्रमों वाले गुरुओं के यहां लाखों का चढावा चढाने से लेकर अपनी सफलता/असफलता की वजह लकी चार्म को मानने से भी गुरेज नहीं करते। समाज में अतार्किक विचारधारा वाले इतने अधिक लोग कहां से आ गए? जवाब है, वह परवरिश और माहौल जो हम अपने बच्चों को देते हैं। शिक्षा व्यवस्था के तहत बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उतने प्रयास नहीं हो रहे जितने होने चाहिए। संयुक्त परिवारों का टूटना और नई जीवन शैली का एकाकीपन, यांत्रिकता, तनाव आदि से पिछले रसायन ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी जहां हर व्यक्ति परेशान और बेचौन हो चला है। इन्हीं सामाजिक-मनोवैज्ञनिक स्थितियों के बीच लोग जाने-अनजाने ऐसे बाबाओं की ओर उन्मुख होने लगते हैं जो लोगों को हर दुरूख-तनाव से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। -प्रियंका सौरभ
पिछले कुछ दशकों से उभरने वाले किस्म-किस्म के बाबाओं ने राष्ट्र के मुख पर कालिख पोतने का का किया है। अपनी अनुयायी स्त्रियों के शारीरिक शोषण, हत्या-अपहरण से लेकर अन्य जघन्य अपराध करने वाले बाबाओं का प्रभाव इस कदर बढ़ता जा रहा है कि आज जनता को तो छोड़िये, सदिच्छाओं वाले राजनेता, अभिनेता, अधिकारी, बुद्धिजीवी इत्यादि वर्ग भी उनसे घबराने लगा है। आखिर इन बाबाओं के महाजाल का समाजशास्त्र क्या है? इसी तरह सवाल यह भी है कि इनके पीछे जनता के भागने का क्या अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान है? आजकल विभिन्न सामाजिक वर्गों में अलग-अलग किस्म के अंधविश्वास प्रचलित हैं। इतने जागरूकता अभियानों के बावजूद आज भी आपको गांव-कस्बों में भूत-प्रेत के किस्से सुनने को मिल जाएंगे। वहीं हायर क्लास के अंधविश्वास अलग हैं। इस क्लास में भी असुरक्षा की भावना कम नहीं है। इस वर्ग के लोग यूं तो अत्याधुनिक होने का दावा करते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे एयरकंडिशंड आश्रमों वाले गुरुओं के यहां लाखों का चढावा चढाने से लेकर अपनी सफलता/असफलता की वजह लकी चार्म को मानने से भी गुरेज नहीं करते।
ऐसी मान्यताएं भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी देशों में पाई जाती हैं। सवाल यह उठता है कि समाज में अतार्किक विचारधारा वाले इतने अधिक लोग कहां से आ गए? जवाब है, वह परवरिश और माहौल जो हम अपने बच्चों को देते हैं। शिक्षा व्यवस्था के तहत बच्चों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के उतने प्रयास नहीं हो रहे जितने होने चाहिए। संयुक्त परिवारों का टूटना और नई जीवन शैली का एकाकीपन, यांत्रिकता, तनाव आदि से पिछले रसायन ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी जहां हर व्यक्ति परेशान और बेचौन हो चला है। इन्हीं सामाजिक-मनोवैज्ञनिक स्थितियों के बीच लोग जाने-अनजाने ऐसे बाबाओं की ओर उन्मुख होने लगते हैं जो लोगों को हर दुरूख-तनाव से छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। लोगों में वहम पैदाकर फायदा उठाने की कला बाजार ने भी सीख ली है। यही वजह है कि बाजार के जन्म दिए हुए बहुत सारे त्योहार आज परंपरा के नाम पर कुछ दूसरा ही रूप ले चुके हैं।
अखिलेश जीत से अहंकार नहीं पालें, बीजेपी के हश्र से लें सबक
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के हौसले इस समय काफी बुलंद हैं। उनकी पार्टी ने यूपी की 80 में से 37 सीटों पर जीत हासिल की है। इसी के बाद वह यूपी में 2014 के लोकसभा चुनाव में 71 और 2019 में 62 और अबकी 2024 में 33 सीटें एवं यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में 312 तथा 2022 में 273 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी पर लगातार हमलावर हैं। ऐसा होना स्वभाविक भी है, उन्हें (अखिलेश यादव) अपने नेतृत्व में पहली बार लोकसभा चुनाव में 37 सीटों पर जीत का स्वाद चखने को मिला है। इससे पहले अखिलेश की जीत रिकार्ड ना के बराबर था। वह समाजवादी पार्टी की बागडोर संभालने के बाद लगातार जीत के लिये तरस रहे थे। 2012 के विधान सभा चुनाव, जो समाजवादी पार्टी द्वारा मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़े गये थे गये थे, उसमें समाजवादी पार्टी को बहुमत हासिल हुआ था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद मुलायम ने अपनी जगह बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था, जिसको लेकर पार्टी में मनमुटाव भी देखने को मिला था। तब से लेकर आज तक समाजवादी पार्टी यूपी से लेकर दिल्ली तक के चुनाव में अपनी पैठ नहीं बना पाई थी।