भारत में जब भी कोई पाकिस्तान प्रायोजित बड़ा आतंकी हमला होता है तब देश के कोने-कोने से आवाजें आने लगती हैं कि भारत सरकार पाकिस्तान को सख्ती के साथ सबक सिखाये। अनेक बुद्धजीवी तो यहाँ तक कहने लगते हैं कि भारत को पाकिस्तान पर तत्काल हमला कर देना चाहिए, जिस तरह से अमेरिका ने 9/11 के बाद अफगानिस्तान पर किया था। अनेक लोग तो 1971 के युद्ध की यादें ताजा करते हुए स्व. इन्दिरा गाँधी जैसी दृढ़ निश्चयी नेता की परि कल्पना करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि जिस तरह से श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तान की गुस्ताखी का मुंहतोड़ जवाब दिया था, ठीक वैसा ही कुछ वर्तमान सरकार को भी करना चाहिए। लेकिन क्या वर्तमान परिस्थितियां ऐसी हैं जिनसे युद्ध के परिणाम सर्वथा भारत के पक्ष में दिखायी दे रहे हों?
यहाँ सबसे पहले यह समझना अति आवश्यक है कि न तो भारत अमेरिका है और न ही पाकिस्तान अफगानिस्तान है। अफगानिस्तान अमेरिका से हजारों मील की दूरी पर है। जबकि भारत और पाकिस्तान की सैकड़ों मील लम्बी सीमाएं एक दुसरे से जुड़ी हुई हैं। अफगानिस्तान पर जब अमेरिका ने हमला किया था तब वहां तालिबान नामक आतंकवादी संगठन का कब्जा था और उसके पास अमेरिका की तुलना में हथियार और गोला बारूद न के बराबर थे। जबकि पाकिस्तान में इस समय एक चुनी हुई सरकार है, साथ ही वह एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है।
लेख/विचार
महाशक्तियों को चुनौती देता चीन
दक्षिण चीन सागर पर चीन इतिहास को आधार बनाकर छल और छद्म से अपने विस्तारवादी मनसूबे के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है, आखिर कोई कैसे “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” के फैसले और तमाम तरह के वैश्विक समझौतों को ताक पर रखते हुए अपनी मनमानी कर सकता है?
चीन की लगातार बढ़ती दादागीरी अब विश्व पटल पर भी किसी से छिपी नहीं है, विस्तारवादी सोच के साथ हमेशा से आगे बढ़ने वाला चीन किसी की बात मानना कभी भी मुनासिब नहीं समझता रहा है चाहे वह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण द्वारा 12 जुलाई 2016 दिया गया कोई आदेश यह फिर अति महत्वपूर्ण सम्मेलनों में किये गये समझौते ही क्यों न हों। चीन के लिए कुछ भी मायने नहीं रखता वह सबकी सुनता जरूर है, पर करता अपने मन की है। खुद को माहाशक्ति के रूप में स्थापित करने की चीन की चाह वाकई विश्व के अन्य देशों के साथ दक्षिण ऐशियाई देशों के लिए परेशानी का सबक बना हुआ है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण अब विश्व स्तर पर किया जा रहा है, परन्तु इससे सबसे ज्यादा अमेरिका की साख को ही पलीता लग रहा है भले ही अमेरिका का दक्षिण चीन सागर विवाद से ज्यादा कुछ लेना- देना न हो परन्तु यह एक ऐसा विवाद है जो इस समय उसके लिए परेशानी का सवब बना हुआ है। जिस तरह से चीन अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को ताक पर रखकर लगातार अपने दादागीरी के दम पर फिलिपीन्स और अन्य देशों के द्वीपों पर हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा इससे उसकी दादागीरी साफ नजर आ रही है इससे पता चलता है कि चीन किसी से नहीं डरता।
थोथा चना, बाजे घना…..
जी बिल्कुल सही कहते हैं आप, सरकार बेकार, समाज बेकार, लोकतन्त्र में समस्या, शासन प्रणाली सही नहीं, बस सारी जिंदगी दोष देते रहते हैं हम। कभी सोचा ये बने किससे, कौन है इनका आधार, कौन है जिम्मेदार। नहीं कभी नहीं, चलिए ये बताइए कि आपने क्या किया, सिवाय गाल बजाने के, कभी किसी सामाजिक कार्य में भागीदारी की, कभी निस्वार्थ भावना से किसी गैर की समस्या का समाधान किया, शायद कभी नहीं, करें भी क्यूँ। क्या लेना देना आपको, सीधे सच्चे इंसान हैं आप, अपने रास्ते जाना, अपने रास्ते आना अपना घर, अपनी गृहस्थी, मगन हैं आप अपनी दाल रोटी में। वो बात अलग है कभी कहीं सामाजिक मुद्दों पर बात हुई तो समय पास करने का अच्छा साधन, आपकी बेबाक राय, सिर्फ कोरी राय, करना धरना कुछ नहीं । वो ही कहावत चरितार्थ ‘‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’’।
बङे ही प्रेम से अपनी उंगली उठाना, और कमी निकालना, कोई भी समाज सेवी हो या नेता, उनके ओहदे तक पहुंचने की मेहनत किसी को नहीं दिखाई देती, बस विपक्ष की तरह तैयार हैं 24ग7उंगली उठाने को। मानते हैं गंदगी है, कुछ कमियां हैं, पर आप भी तो सिर्फ नाक सिकोड़कर मुहँ पर रूमाल रखकर, आगे बढ़ जाते हैं, क्या कभी हिम्मत की है गंदगी के थोङे हिस्से को भी साफ करने की, शायद कभी नहीं।
स्वास्थ्य सुविधाओं की खुली लूट
भारत में प्रतिवर्ष संक्रामक ‘दिमागी बुखार’ (जेई और एईएस) कुछ विशेष महीनों में पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेता है। विशेषकर प्रतिवर्ष लाखों भारतीय बच्चे संक्रामक ‘दिमागी बुखार’ का शिकार होकर काल के गाल में समा जाते हैं। ‘दिमागी बुखार’ से हो रही बच्चों की मौत के बेहद संवेदनशील मामलों को रोकने के लिए केंद्र सरकार को तत्काल एक बेहद कारगर रणनीति बनाने की आवश्यकता है। देशभर में ‘दिमागी बुखार’ (जेई और एईएस) की स्थिति बेहद गंभीर स्तर पर पहुंच गई है। भारत सरकार तथा राज्यों की ओर से ‘दिमागी बुखार’ की रोकथाम के लिए चलाए जा रहे विशेष कार्यक्रम बहुत अधिक सफल नहीं हो सके हैं। इस गंभीर समस्या से निजात पाने के लिए शीघ्र ही राज्य सरकारों को भी जरूरी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
‘दिमागी बुखार’ (जेई और एईएस) की रोकथाम के लिए, आवश्यक फागिंग, टीकाकरण और शुद्ध पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए सरकार प्रतिवर्ष भारी-भरकम धनराशि खर्च कर रही है, परंतु लापरवाही तथा अनेक स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण जमीनी स्तर पर कोई फायदा अभी तक दिखाई नहीं पड़ रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित होने वाले धन की खुली लूट देश में होती रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल और भी अधिक बदतर है। यहां तक कि कई राज्यों में तो जिला मुख्यालयों तक पर भी पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
विगत कुछ वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत ने कतिपय उपलब्धियां भी प्राप्त की हैं। भारत में शिशु मृत्युदर में शनैः-शनैः सुधार हो रहा है। भारत ने संक्रामक रोगों से लड़ने में अपनी क्षमता एवं तत्परता का परिचय दिया है।