Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

गंधर्व विवाह

पता नहीं यह मंदिर मुझे क्यों अच्छा लगता था मुझे और यह भी नहीं जानती थी कि यहां बैठकर मुझे शांति क्यों मिलती है? यहीं पर गीत गुनगुनाते हुए भगवान के लिए फूलों की माला बनाना मुझे अच्छा लगता है। मां बाबूजी सुबह – सुबह आकर मंदिर की साफ सफाई में लग जाते हैं। आंगन साफ करना, पौधों में पानी डालना, फूलों का कचरा समेटना उनका यही काम था। मैं भी मां के साथ-साथ मंदिर चली आती थी। पहले पहल तो यूं ही साथ में आ जाती थी लेकिन अब यह बोलकर साथ आती हूं कि तुम्हारे काम में हाथ बंटा दूंगी तो काम जल्दी निपट जाएगा। यहीं पर काम करते-करते मैं छोटी से बड़ी हो गई थी। सभी से मेरी अच्छी जान पहचान हो गई थी। मंदिर में पुजारी मेरे हाथ की बनी माला सामने से मुझसे मांग कर चढ़ाते थे क्योंकि मैं माला बहुत सुंदर बनाती थी। मैं माला की टोकरी मंदिर के सीढ़ियों के पास रख देती थी। पंडित जी पानी के छींटे मारकर टोकरी अंदर ले लेते थे और भगवान को चढ़ा देते थे। यह मंदिर मुझे अब अपना घर जैसा ही लगने लगा था। एक दिन ना आऊं तो कुछ अधूरा सा लगता था।

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होली पर असावधानियां न दें जिंदगी भर का दर्द

रंगों के त्यौहार होली पर भला कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो आपसी द्वेषभाव भुलाकर रंग-बिरंगे रंगों में रंग जाना नहीं चाहेगा। लोग एक-दूसरे पर रंग डालकर, गुलाल लगाकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं लेकिन होली के दिन प्राकृतिक रंगों के बजाय चटकीले रासायनिक रंगों का बढ़ता उपयोग चिन्ता का सबब बनने लगा है। ज्यादातर रंग अम्लीय अथवा क्षारीय होते हैं, जो व्यावसायिक उद्देश्य से ही तैयार किए जाते हैं और थोड़ी सी मात्रा में पानी में मिलाने पर भी बहुत चटक रंग देते हैं, जिससे होली पर इनका उपयोग अंधाधुंध होता है। ऐसे रंगों का त्वचा पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है। शुष्क त्वचा वाले लोगों और खासकर महिलाओं व बच्चों की कोमल त्वचा पर तो इन रंगों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। अम्ल तथा क्षार के प्रभाव से त्वचा पर खुजलाहट होने लगती है और कुछ समय बाद छोटे-छोटे सफेद रंग के दाने त्वचा पर उभरने शुरू हो जाते हैं, जिनमें मवाद भरा होता है। यदि तुरंत इसका सही उपचार कर लिया जाए तो ठीक, अन्यथा त्वचा संबंधी गंभीर बीमारियां भी पनप सकती हैं। घटिया क्वालिटी के बाजारू रंगों से एलर्जी, चर्म रोग, जलन, आंखों को नुकसान, सिरदर्द इत्यादि विभिन्न हानियां हो सकती हैं। कई बार होली पर बरती जाने वाली छोटी-छोटी असावधानियां भी जिंदगी भर का दर्द दे जाती हैं।

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महामारी अंत की पहली होली में रखें स्वास्थ्य का खास ख्याल

कोरोना महामारी का अंत हो गया है और यह पूरे पूरे 3 वर्ष तक चला। 2019 के बाद 2023 में खूब हर्षाेल्लास के साथ और बिना किसी रोक-टोक के होली मनाएंगे ऐसे में स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है क्योंकि अक्सर हम जोश में होश खो बैठते हैं।
होली में मौसम में तेजी से बदलने लगता है सर्दी की विदाई और एकदम से तेजी से गर्मी आने लगती है ऐसे में अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत जरूरी है क्योंकि हमारा शरीर मौसम के बदलाव से अपने आप में संतुलन बनाने में लगा रहता है।
आइए जानते हैं कैसे खेले हैप्पी हेल्दी होली-
सबसे पहले तो अपने शरीर को अच्छे से हाइड्रेट रखें पानी का शरीर में बहुत अहम भूमिका है।
शरीर में पानी 60 प्रतिशत से भी ऊपर है, मस्तिष्क में 85 प्रतिशत, खून में 79 प्रतिशत, और फेफड़ों में 80 प्रतिशत है।यह हमारे शरीर से टॉक्सिंस बाहर निकालता है और थकान को भी दूर भगाता है यदि आप ज्यादा पानी पी नहीं पाते क्योंकि आपका पेट फूलने लगता है या जी मिचलाने लगता है या पानी पसंद नहीं ऐसे में आप पानी के अन्य स्रोत जैसे ग्रीन टी ,फ्रेश फ्रूट जूस, नारियल पानी, जूसी फल जैसे संतरा, अंगूर ,खरबूजा ,तरबूज आदि का सेवन कर खुद को हाइड्रेट रख सकते हैं। शरीर में 60 प्रतिशत से भी अधिक पानी है ।

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चीतों से गुलजार होती भारत की धरती

करीब 70 वर्षों के बेहद अंतराल के पश्चात् लंबे प्रयासों के बाद भारत में पिछले साल 17 सितम्बर को चीतों की वापसी हुई थी, जब चीते की शक्ल में तैयार हुए बोइंग 747 के विशेष विमान के जरिये नामीबिया की राजधानी विंडहोक से ग्वालियर लाए गए 8 चीतों को प्रधानमंत्री द्वारा मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में बाड़े में छोड़ा गया था। ये सभी चीते यहां के माहौल में पूरी तरह ढ़ल चुके हैं। चीतों के पुनर्वास की चल रही योजना के तहत 18 फरवरी को भी दक्षिण अफ्रीका से 7 नर और 5 मादा चीते कूनो नेशनल पार्क में लाए जाने के बाद अब भारत में चीतों की संख्या 20 हो गई है। हालांकि ऐसा नहीं है कि चीतों को अचानक ही भारत लाए जाने की योजना बनी बल्कि करीब 50 वर्ष पहले चीतों को भारत लाने के प्रयास शुरू हो गए थे। सबसे पहले 1970 में एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीता भारत लाने के लिए ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू हुई थी लेकिन वहां शासक बदलने के बाद चीते भारत नहीं लाए जा सके, जिसके बाद इन प्रयासों की रफ्तार धीमी पड़ गई।
21वीं सदी के इन दो दशकों में चीतों की वापसी के प्रयासों में तेजी आई और उनके संरक्षण के लिए गलियारों की पहचान और उन्हें सुदृढ़ करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया। 2009 में राजस्थान के अजमेर में हुई बैठक में चीतों को भारत लाने की चर्चा पुनर्जीवित हुई और आनुवंशिक समानता तथा जीनोम विश्लेषण के आधार पर अफ्रीका से चीते लाकर भारत में बसाने की योजना को उपयुक्त पाया गया। चीतों की पुनर्स्थापना के संबंध में पर्याप्त अध्ययन नहीं होने के कारण 2013 में सर्वाच्च न्यायालय ने चीतों को भारत लाए जाने पर रोक लगा दी थी। अदालत द्वारा 28 जनवरी 2020 को चीतों के पुनर्स्थापना हेतु अनुमति मिलने के बाद चीता परियोजना हेतु माॅनीटरिंग के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ दल का गठन किया गया और उसके बाद चीतों को भारत लाए जाने की इजाजत देने के पश्चात् ही चीतों की भारत वापसी का रास्ता साफ होने से इन प्रयासों में तेजी आई। चीतों को भारत लाने के लिए भारत सरकार ने 2010 में नामीबिया से बातचीत शुरु की थी लेकिन नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीते लाने का समझौता जुलाई 2022 में हुआ। 2021-22 से 2025-26 के बीच ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत ‘चीता इंट्रोडक्शन परियोजना’ के लिए भारत सरकार द्वारा 38.7 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है।

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क्या यही प्यार है ???

आजकल राखी सावंत और आदिल का रिश्ता सोशल मीडिया पर जमकर सुर्खियां बटोर रहा है। उनके रिश्ते को साल भर भी पूरा नहीं हुआ और दोनों कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे है। अभी कुछ महीनों पहले एक दूसरे को जान से ज्यादा अज़ीज मानने वाले राखी और आदिल, आज एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन बैठे है। कहाँ गया वो प्यार, वो शिद्दत, वो चाहत? क्या सच्चा प्यार इतनी जल्दी दम तोड़ देता है? स्वार्थ की नींव पर बँधे रिश्तों का अंजाम यही होता है। ऐसे छिछोरे लोगों ने आजकल रिश्तों की गरिमा का कत्ले-आम कर दिया है और शादी जैसे पवित्र बंधन को मजाक बना कर रख दिया है।
कोई मेल नहीं था दोनों का, फिर क्यूँ जुड़े एक दूसरे के साथ। हो सकता है शायद राखी की पोप्युलारिटी को ज़रिया बनाकर आदिल आगे बढ़ना चाहता हो, और अपने से छोटे हेंडशम दिखने वाले आदिल से राखी आकर्षित हुई हो। कारण जो भी हो पर सस्ती पब्लिसिटी के चक्कर में लड़कियाँ खुद को बर्बाद कर लेती है, राखी उस बात का जीता जागता उदाहरण है।
राखी सावंत जो इन दिनों अपने निजी रिश्तों की वजह से खबरों में छाई हुई है, उन्होंने बीते दिनों अपने ही पति आदिल को जेल भिजवा दिया और उनके खिलाफ़ कोर्ट में केस भी लड़ रही है। हर दिन राखी सावंत मीडिया में आकर केस का अपडेट सुनाती है। राखी को लोग ड्रामा क्वीन के नाम से भी जानते है। माना कि वो भी दूध की धुली नहीं, हर कुछ दिन बाद पब्लिसिटी स्टंट करती रहती है। आज उसे अपनी ही बेवकूफ़ी भारी पड़ रही है। किसीको बिना जाने पहचाने अपनी सारी प्रॉपर्टी दे देना अक्कलमंदी हरगिज़ नहीं।

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मानसिक प्रदूषणः सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग?

बहुत तरह के प्रदूषण की चर्चाएं होती हैं जैसे ध्वनि जल थल वायु आदि किंतु सबसे खतरनाक प्रदूषण का कोई चर्चा का विषय नहीं बनाता यह मानसिक प्रदूषण है।
हर मानव ही मानसिक प्रदूषण से पीड़ित है और समाज में तेजी से इसे फैलाने का योगदान भी निभा रहा है किंतु अनजाने में इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है और इसीलिए यह चर्चा का विषय भी नहीं बन पाता है।
मानसिक प्रदूषण प्राचीन काल से मौजूद है ।मानसिक प्रदूषण पूरी मानव जाति के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह अन्य प्रदूषण का जनक है और इसके दुष्प्रभाव से मुक्ति के लिए मनुष्य को बहुत संयम से काम लेना पड़ेगा, मानसिक प्रदूषण का जन्म होता है इस वाक्य से-
सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग ?
क्या कहेंगे लोग इस चक्कर में इंसान इतना मानसिक प्रदूषित हो रहा है और समाज में फैला रहा है।
यह विनाशकारी भावनाएं मनुष्य में मानसिक प्रदूषण का जन्म देती हैं। मानसिक प्रदूषण मानव मन और व्यक्तित्व को हानि पहुंचाने वाली प्रक्रिया को बाधित करता है मन प्रदूषित तो तन,पर्यावरण ,समाज सब धीरे-धीरे प्रदूषित हो जाता है यह विभिन्न तत्वों से उत्पन्न होता है जैसे उदाहरण -अत्याचार, क्रोध, काम, लोभ, ईर्ष्या आदि ।

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तुर्किये-सीरिया के भूकम्प से सबक सीखने की जरूरत

6 फरवरी को 7.8 की तीव्रता के शक्तिशाली भूकम्प से तुर्किये और सीरिया में हुए महाविनाश में 20 हजार से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तुर्किये की भौगोलिक स्थिति के चलते यहां अक्सर भूकम्प आते रहते हैं। 1999 में तो यहां भूकम्प से 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। तुर्किये और सीरिया में भूकम्प से हुई भयानक तबाही को देखने के बाद कुछ समय से भारत के विभिन्न हिस्सों में लगातार लग रहे भूकम्प के झटकों को लेकर भी चिंता गहराने लगी है। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक भारत में भी तुर्किये तैसे ही तेज भूकम्प की आशंका जता रहे हैं। उनके मुताबिक आगामी एक-दो वर्षों में या एक-दो दशक में कभी भी भारत के कुछ हिस्सों में 7.5 से भी ज्यादा तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश का करीब 59 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न तीव्रताओं वाले भूकम्प के जोखिम पर है। खासकर दिल्ली-एनसीआर तथा निकटवर्ती राज्यों में तो बार-बार भूकम्प के झटके लग रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर में 3 फरवरी की रात 3.2 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। 24 जनवरी की दोपहर को तो दिल्ली-एनसीआर सहित कुछ राज्यों में रिक्टर स्केल पर 5.8 तीव्रता के भूकम्प के तेज झटके लगे थे। 5 जनवरी की रात दिल्ली-एनसीआर से लेकर जम्मू-कश्मीर तक में 5.9 तीव्रता के भूकम्प के झटके महसूस किए गए थे। उससे पहले दिल्ली एनसीआर में नए साल की शुरूआत भी 3.8 तीव्रता के भूकम्प के झटकों के साथ ही हुई थी। नवम्बर माह में तो दिल्ली-एनसीआर में दो बार ऐसे बड़े भूकम्प भी आए, जिनमें से एक अति गंभीर श्रेणी का रिक्टर स्केल पर 6.3 तीव्रता का था, जिसका असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड सहित सात राज्यों के अलावा चीन और नेपाल तक महसूस किया गया था।

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यूपी ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट से प्रदेश में बढ़ीं रोजगार की अपरमित सम्भावनाएं

यूपी ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट-2023 में देश-विदेश के उद्यमियों से लगातार मिल रहे निवेश के प्रस्तावों से न केवल प्रदेश के आर्थिक ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन के स्पष्ट संकेत दिखाई दे रहे हैं बल्कि रोजगार की भी अपरमित संभावनाएं परिलक्षित हो रही हैं। योगी सरकार का दावा है कि प्रदेश में बेहतर कानून व्यवस्था तथा अच्छे इन्फ्रास्ट्रक्चर के बल पर वह उद्यमियों का भरोसा जीतने में सफल हुई है। जिसका परिणाम यह है कि न केवल भारतीय अपितु विदेशी उद्यमी भी प्रदेश में बड़े पैमान पर पूँजी निवेश करने के लिए आगे आये हैं। प्रदेश की वर्तमान कानून व्यवस्था से प्रदेश का आम जन सन्तुष्ट है या नहीं यह आम आदमी का विषय है। लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि देश-विदेश के उद्यमियों ने सरकार पर जबरदस्त भरोसा जताया है। यही कारण है कि यूपी ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट के तहत अब तक सरकार की अपेक्षा से कहीं अधिक निवेश के प्रस्ताव प्राप्त हुए ह। गौरतलब है कि यूपी ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट-2023 का आयोजन 10, 11 और 12 फरवरी को लखनऊ में होना है। इस दिन तक सरकार ने 17 लाख करोड़ के निवेश का लक्ष्य रखा था। लेकिन इससे पूर्व 4 फरवरी को ही 22 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश हेतु 14 हजार से अधिक समझौता प्रस्ताव (एमओयू) प्राप्त हो चुके थे।

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चुनावी चाशनी में डूबा संतुलित बजट

वित्त वर्ष 2023-24 के बजट पर पूरे देश की नजरें केन्द्रित थी क्योंकि आम आदमी को इस बजट से ढ़ेर सारी उम्मीदें थी। दरअसल माना जा रहा था कि इस वर्ष होने जा रहे कई विधानसभा चुनावों के साथ-साथ अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बजट में आम जनता के लिए राहतों का पिटारा खोला जाएगा और ये उम्मीदें बेकार भी नहीं गई। सरकार ने 45 लाख करोड़ रुपये के खर्च का जो बजट प्रस्तुत किया है, उसमें सरकार की पावतियां केवल 23.3 लाख करोड़ रुपये की ही होंगी और इस भारी-भरकम घाटे को पूरा करने के लिए सरकार विनिवेश के जरिये करीब 51 हजार करोड़ रुपये की धनराशि जुटाएगी जबकि उसे 15 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा के बाजार से ऋण लेने पड़ेंगे। बाकी की कमी को लघु बचतों के जरिये पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। बजट के प्रावधानों को देखते हुए प्रतीत होता है कि सकल विकास वृद्धि में बढ़ोतरी के लिए करीब 10 लाख करोड़ रुपये की धनराशि पूंजीगत खाते से खर्च करके सरकार देशभर में रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ औद्योगिक उत्पादन को भी बढ़ावा देना चाहती है। छोटे और मध्यम उद्योगों को शुल्क ढ़ांचे में रियायतें प्रदान कर सरकार यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि अपने उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ यह क्षेत्र रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती में भी सहभागी बने।
इस बार के केन्द्रीय बजट में विभिन्न क्षेत्रों को लेकर कई महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण आम जनता को आयकर दरों में राहत दिया जाना है। दरअसल बहुत लंबे समय से आयकरों दरों में बदलाव की मांग की जा रही थी। नई कर व्यवस्था में आयकर सीमा में छूट को पांच लाख से बढ़ाकर सात लाख किए जाने से न केवल छोटे करदाताओं को बहुत बड़ी राहत मिलनी तय है, वहीं इससे मिशन 2024 मोड में जुटी भाजपा को सीधा फायदा मिलेगा। हालांकि पुरानी कर व्यवस्था भी लागू रहेगी जिसके तहत अभी भी 80सी, पीएफ, आवासीय कर्ज के मूलधन और ब्याज के भुगतान इत्यादि पर छूट हासिल की जा सकती है, जो नई कर व्यवस्था में नहीं मिलेगी लेकिन इस छूट के बगैर भी सात लाख तक की आय का करमुक्त होना करोड़ों करदाताओं को सीधे तौर पर लाभान्वित करेगा। इस वर्ष से इस नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट व्यवस्था बना दिया गया है। दरअसल करदाताओं को पुरानी कर व्यवस्था से नई कर व्यवस्था को अपनाने के लिए प्रेरित करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती रही क्योंकि तमाम अपीलों के बावजूद अधिकांश लोगों ने इसे नहीं अपनाया था।

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हिन्दुस्तान की आवश्यकता एक देश एक संविधान

26 जनवरी देश का गणतंत्र दिवस इस दिन अपने देश में अपना संविधान लागू हुआ था। इससे पूर्व हम अपनी व्यवस्थाओं को ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा स्थापित संविधान के अनुसार संचालित करते थे। जिसके लिए हमने ईस्ट इंडिया कंपनी के एक मुलाजिम माउंटबेटन को वर्षों तक किराये पर रखा हुआ था ताकि वह हमारा संविधान बनने तक हमें देश को चलाने का तरीका बताता रहे।
भारतीय संविधान को लिखने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया गया था। भारतीय संविधान को तैयार करने में 2 वर्ष 11 महिने 18 दिन का समय लगा। जो 26 नवम्बर 1949 तक पूरा हुआ और 26 जनवरी 1950 भारत गणराज्य का यह संविधान देश में लागू हो गया।
भारतीय संविधान अन्य देशों की तुलना में दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। मूल रूप से भारतीय संविधान में कुल 395 अनुच्छेद 22 भागों में विभाजित और जिसमें 8 अनुसूचियां थी। किन्तु विभिन्न संसोधनों के परिणाम स्वरूप वर्तमान में इसमें कुल 448 अनुच्छेद 25 भागों में विभाजित है और 12 अनुसूचियां है। संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।
भारतीय संविधान के कई हिस्से युनाइटेड किंगडम, अमेरिका, जर्मनी, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जापान के संविधानों से लिए गये। भारतीय संविधान में देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों, सरकार की भूमिका, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्रीयों की शक्ति का वर्णन किया गया है। संविधान में विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का कार्यो का उल्लेख किया गया है।
भारतीय संविधान की मूल प्रति 16 इंच चैड़ी 22 इंच लम्बे चर्मपत्र शीटों एवं 225 पृष्ठों पर लिखी गई है। संविधान की असली कॉपी प्रेम बिहारी नारायण राजजादा द्वारा हाथों से लिखी गयी। इसके प्रत्येक पन्नें को शान्ति निकेतन के कलाकारों द्वारा सजाया गया है।

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