Saturday, May 4, 2024
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मकड़ी का वह जाला है कानून, जिसमें कीड़े-मकोड़े तो फंसते हैं लेकिन बड़े जानवर उसे फाड़ कर आगे निकल जाते हैं !

मान्यता है कि बुरे काम का बुरा नतीजा। सरकार दमदार हो और पत्रकार के इरादे फौलाद हो तो अपराधियों का बचना मुश्किल हो जाता है लेकिन अगर अपराधियों का राजनीतिकरण ही हो जाये तो यही काम उतना मुश्किल हो जाता है क्योंकि सरकारें स्वतः अपने हाथ अनैतिक कारनामों से रंग चुकी होतीं हैं। आप आंख उठा कर देख लें, अनेक गुंडे आज सफेद चोला पहन कर सदन में बैठे हैं।
एक तरफ मामूली से माफिया को अंडरवर्ल्ड बनाकर प्लांट करते हुए मिट्टी में मिलाया जाएगा तो दूसरी ओर हिस्ट्रीशीटर नेता जिला कप्तान के साथ बैट-बल्ला खेलता भी दिखाई देगा यानी बिल्ली चूहे के साथ ही जाम लड़ा रही है। इस आचरण को भी नजरअंदाज नही किया जा सकता है।
जैसे एक उदाहरण के रूप में हार्डेंड क्रिमिनल की हरियाणा सरकार द्वारा घोषित परिभाषा देखिए। वहां हरियाणा सरकार का लिखा-पढ़ी में दिया गया तर्क है कि गुरमीत रामरहीम को वह इसलिये बार-बार पैरोल पर छोड़ रही है क्योंकि वह कोई हार्डेंड क्रिमिनल नहीं है, इसी समाचार में इस अपराधी का निम्नांकित आपराधिक इतिहासभी बताया गया है-1. उसे हत्या के दो प्रकरणों में अलग- अलग दो बार आजीवन कारावास की सज़ा हो चुकी है।
2. बलात्कार के दो प्रकरणों में 10-10 साल की सज़ा हो चुकी है।
3. इनके अतिरिक्त इस पर चार अन्य अपराधों की ट्रायल हो रही है जिनमें एक प्रकरण कुछ चेलों के जननांग कटवा देने का है।
यहां देखे जाने योग्य यह है कि नियमतः किसी अपराधी के एक-दो से अधिक बार संगीन अपराध (यथा हत्या, बलात्कार, डकैती) में संलिप्त होने पर उसे हार्डेंड क्रिमिनल मान लिया जाता था लेकिन आज हरियाणा सरकार की निगाह में इतने अपराध उसे हार्डेड क्रिमिनल नहीं मानते। यह सब बार बार हर बार केवल इसलिए होता है क्योंकि एक नेता को अपनी रैली में भीड़ इकट्ठी करने के लिए बाहर से कई बसें भरकर लानी पड़ती हैं लेकिन ये बाबा जिनके दरबार में लाखों भक्त प्रतिदिन आते हैं, वे एकबार में लाखों का वोट बैंक दे सकते हैं। ऐसे में केवल परिभाषा ही नहीं बल्कि संविधान संशोधन भी करना पड़े तो ये कर देंगे।
समाज की सफाई के लिए राजनीति की सफाई जरूरी है। जिस आदमी को जेल में होना चाहिए, जब एक पढ़ा लिखा आईपीएस उस हिस्ट्रीशीटर को सैल्यूट करता है, तब आयोग और अकादमी का औचित्य मुझे मूर्खता से भरा हुआ दिखता है, मेरा खून खौल उठता है। मन में ख्याल आता है कि जब पढ़े लिखे अफसरों को किसी अपराधी को सैल्यूट ठोकना है तो ‘ट्रेनिंग अकादमी’ का नाम बदलकर ‘जमीर परिवर्तन निदेशालय’ कर देना चाहिए।
अनेक नाम गिना सकता हूँ जिन्हें आज जेल में होना चाहिये लेकिन सदन में बैठकर कुरकुरा और चिप्स चबा रहे हैं, हमारे काबिल ऑफिसर्स उनकी फ़ाइल उठा रहे हैं। नियम सबके लिए बराबर होने चाहिये लेकिन अफलातून ने कहा था कि यह बात झूठ है कि कानून सबके लिए बराबर है। कानून मकड़ी का वह जाला है जिसमे कीड़े मकोड़े तो फंसते हैं लेकिन बड़े जानवर उसे फाड़ कर आगे निकल जाते हैं। तब कोई मतलब नही रह जाता है ला एंड ऑर्डर का ?
माना कि अपराधी ने पुलिस पर फायर किया, निर्दाेष कांस्टेबल सहित अन्य की हत्या की, प्रत्यक्ष चुनौती दी। यह घोर निंदनीय कृत्य है, अभियुक्त का अंजाम मौत ही होना चाहिए। मुझे अनुमानतः ज्ञात था कि यह दुर्दांत एनकाउंटर में ढेर किया जाएगा, किन्तु यदि हर बार बार-बार आपको अपने हाथ से सड़क पर फैसले करने हैं तो ‘देश से न्यायालय बन्द कर दीजिए’। अपने-अपने कार्यलयों में अपने- अपने पीए के द्वारा न्यायपालिकायें चलाइये।
बेकार ही शासन के तीन अंगों में कार्यपालिका के साथ साथ न्यायपालिकाओं को भी स्थान दिया गया है। दो-एक मामले अपवाद स्वरूप तो ठीक हैं लेकिन शासन के एक अंग द्वारा, दूसरे अंग के अधिकार क्षेत्र में घुसना फैशन बन जाये यानी चलन में आ जाये तब यह रवैय्या ठीक नहीं है।
एसआईटी का क्या है, वह तो कुकर्म को कागजी लीपापोती कर सत्कर्म में बदलने का तरीका मात्र है। इस आदत को रोका जाना चाहिए।


निखिलेश मिश्रा
प्रशिक्षक एवं विशेषज्ञ
आपदा प्रबंधन एवं सूचना प्रौद्योगिकी