Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

नाटक, रंगमंच, थिएटर और साहित्य उत्सव को पुनर्जीवित करना समय की मांग

सरकारी संरक्षण, निजी संगठनों, निजी टीवी चैनलों, नागरिक समाज को आगे आने की ज़रूरत
समाज में व्याप्त कई बुराइयों, भेदभावपूर्ण प्रथाओं से उबारने, जागरूकता लाने तथा वर्तमान आधुनिक अभियानों का लाभ पहुंचाने में नाटकों, रंगमंच, थिएटर की महत्वपूर्ण भूमिका – एड किशन भावनानी
भारत को आदि-अनादि काल से ही संस्कृति, सांस्कृतिक, साहित्य और नाटकों का अनमोल गढ़ माना जाता है। जो हजारों वर्षों से भारत में परंपरा चली आ रही है परंतु पिछले एक-दो दशकों से हम देख रहे हैं कि पाश्चात्य संस्कृति युवाओं पर भारी होते जा रही है। हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति को पुराना ज़माना कहकर नज़रअंदाज किया जा रहा है और इसे अपनाने वालों को ओल्डमैन का दर्ज़ा देकर किनारे करने की प्रथा चल पड़ी है।

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कुप्रथा का अग्नि संस्कार करो

मत करो कर्ज़ लेकर शादियां, इतना खर्च किस लिए, समाज को ये दिखाने के लिए की देखो हमारे पास कितनी संपत्ति है? या देखो हमने कितनी शानो शौकत से अपने बच्चों की शादी की। जब की आपकी शानों शौकत को देखने कोई नहीं आता।
किसी की शादी में कितने लोगों असल में पारिवारिक संबंध निभाने के तौर पर जाते है? शादी में आए करीब सत्तर प्रतिशत लोग दुल्हा-दुल्हन की शक्ल तक नही देखते, उनका नाम तक नहीं जानते। अक्सर विवाह समारोहों में आए लोगों को ये पता नहीं होता कि स्टेज कहाँ सजा है, युगल कहाँ बैठा है उनको सज-धज कर आने में और स्वादिष्ट खाना खाने में ही दिलचस्पी होती है।

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तीनों कृषि कानूनों की वापसी- किसकी जीत किसकी हार!!

तीनों कृषि कानून वापसी का फैसला चौंकाने वाला!! – कहीं खुशी कहीं गम – परिणामों के लंबे कयासों का दौर शुरू – एड किशन भावनानी
भारत में करीब 5 दशक पहले 1974 में रोटी फिल्म का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था, ये तो पब्लिक है ये सब जानती है, ये तो पब्लिक है, ये चाहे तो सर पे बिठाले, चाहे फेंक दे नीचे!! साथियों 19 नवंबर 2021 को सुबह 9 बजे कुछ मामला ही अलग नजर आया!! पब्लिक को कुछ उम्मीद ही नहीं थी, पब्लिक कुछ जानती नहीं थी, पर पीएम ने अपने संबोधन में वह करके दिखाया जिसकी किसी को दूर-दूर तक उम्मीद नहीं थी!! तीनों कृषि कानूनों की वापसी का चौंकाने वाला निर्णय की जानकारी!! ऐसा चौंकाने वाला निर्णय जो गुरु नानकदेव के प्रकाशपर्व और देव दीपावली के पावन पर्व पर किसान भाइयों के लिए खुशियों की सौगात!! नायाब तोहफे!! की घोषणा फिर क्या! हर न्यूज़ टीवी चैनल पर धमाकेदार ब्रेकिंग न्यूज़ का दौर जो शुरू हुआ वह अभी तक जारी है।

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अग्नि-5 मिसाइल से भयभीत हुआ चीन

सम्प्रति देश की सामरिक तैयारियां तेजी से मजबूती की ओर बढ़ रही हैं। 28 अक्टूबर को भारत ने अपनी मिसाइल मारक क्षमता में इजाफा करते हुए सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का सफलता पूर्वक परीक्षण किया। इस बार का परीक्षण रात में किया गया जिससे रात्रिकालीन मारक क्षमता को परखा जा सके। अधिकारियों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक ओडिशा में एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से रात्रि में 8 बजे से कुछ समय पहले यह परीक्षण किया गया जो कि सफल रहा।

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चिकित्सा पेशे से जुड़े व्यक्ति में नैतिकता, संवेदनशीलता, सेवा, समर्पण का भाव अत्यंत ज़रूरी

कोविड-19 की भयंकर त्रासदी से चिकित्सा पेशे से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभव से दो-चार हुए कोविड पीड़ितों की दासतां का स्वतः संज्ञान नीति निर्धारकों को लेना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से खासकर भारत में आदि-अनादि काल से ही चिकित्सक पेशे से जुड़े व्यक्तियों को खासकर डॉक्टरों को एक भगवान ईश्वर अल्लाह का दर्जा दिया हुआ है। हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में और सैकड़ों वर्षो पूर्व डॉक्टरों को वैद्य के रूप में जाना जाता था। उस समय भी हम उन्हें ईश्वर अल्लाह ही दर्जा देते थे। क्योंकि उनमें समर्पण का भाव, नैतिकता, संवेदनशीलता, सहयोग और सेवा का भाव कूट-कूट कर भरा रहता था। उस समय पैसों की इतनी अहमियत नहीं थीं, जितनी सेवा, सहयोग, समर्पण का भाव था।

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कामयाबी के थप्पड़

अपने खिलाफ बातें
करने वालों को कभी
कोई जवाब भले ना देना
पर एक दिन उनके
सोच पर अपनी
कामयाबी का
थप्पड़ जरूर मारना
हो सकता है कि
थप्पड़ मारने में तुम्हें
थोड़ी विलम्ब हो जाए

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कैसे रोका जाए इस धर्मांतरण के प्रयासों को?

आज के अखबार में पढ़ा तो एक धक्का सा लगा, क्या हैं वो? गुजरात के भरूच में १०० लोगों को लालच दे धर्म परिवर्तन करवाया गया। एक यूके के नागरिक और मौलवी के साथ ९ लोगों के सामने फरियाद– ये हैं हेड लाइन्स। जो लालच से नहीं माने उनको डरा कर धर्मांतरण करवाया गया की उनकी पहचान कश्मीर से पाकिस्तान तक हैं, फरियाद करने वालों को मार दिया जायेगा। ३७ परिवारों के १०० लोग उनके झांसे में आ गए। क्या हो रहा हैं ये? क्यों गरीबों को निशाना बनाया जा रहा हैं?

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औरंगाबाद घृष्णेश्वर मंदिर

हमारी हिंदू सभ्यता और संस्कृति पौराणिक स्थलों में बखूबी दिखाई देती है। वास्तुकला, शिल्प कला और दर्शन इन सब की भव्यता और जानकारी हमें यही से मिलती है। वास्तव में जो भी पौराणिक मंदिर या पर्यटन स्थलों में जो चित्र या कलाकृतियां होतीं हैं वो उस समय के जीवन काल और दिनचर्या का आभास देती है। मेरी एक और यात्रा का संस्मरण औरंगाबाद से शुरू होता है।
घृष्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के छोटे से गांव वेरूल में स्थित है। वैसे यह ज्योतिर्लिंग बाबा का अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है लेकिन जो भी दर्शन पहले हो जाए वहीं बाबा के आगे सर झुक जाता है। बिल्कुल बनावटीपन दूर शोर शराबे से अलग एक शांत वातावरण में बाबा के दर्शन किए। लाल पत्थरों से बना हुआ यह मंदिर वाकई बेहद खूबसूरत है उसके दरवाजे पर बैठकर मन को बहुत शांति मिलती है।

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बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां

छठ पर्व पर एक भयावह तस्वीर यमुना नदी दिल्ली की सामने आयी, जिसमें सफेद झाग से स्नान वा अर्क देते श्रद्धालु दिखे।
यह बात तो जगजाहिर है कि समूचे विश्व में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां नदियों को माँ की उपमा दी गई है, पवित्र माना गया है। लेकिन वर्तमान समय में जितनी दुर्दशा हिन्दुस्तान में नदियों की है शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में हो। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग-अलग राज्यों की निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारे महत्वपूर्ण सतही जल स्त्रोतों का लगभग 92 प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने लायक नही बचा है। वहीं रिपोर्ट में देश की अधिकतम नदियों में प्रदूषण की मुख्य वजह कारखानों का अपशिष्ट गंदा जल, घरेलू सीवरेज, सफाई की कमी व अपार्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन तथा साफ – सफाई के लिए नीतियों की गैरमौजूदगी को माना गया है।

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15 नवंबर 2021 भारत नें पहला जनजातीय गौरव दिवस मनाया

जनजातीय शिल्पकारों, कारीगरों और महिलाओं के उत्पादों के लिए पर्याप्त विपणन मार्ग तैयार करने रणनीतिक रोडमैप बनाना ज़रूरी
भारत की संस्कृति को मज़बूत करने में जनजातीय समाज का महत्वपूर्ण योगदान – जनजातीय लोगों के प्राकृतिक कौशल को निखारने, उनके आय के स्रोतों में सुधार करना ज़रूरी – एड किशन भावनानी
भारतीय संस्कृति में शिल्पकारों, भाषा, रीति-रिवाजों, कारीगरों, प्रथाओं परंपराओं, व्यंजनों इत्यादि अनेकउपलब्धियों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जानकारों का कहना है कि यह संस्कृति 5 हज़ार ईसवी से भी पुरानी है। याने इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हमारी संस्कृति सोलह सौ से भी अधिक वर्ष पुरानी है, जो कि आज की पीढ़ी के नवयुवक सुनेंगे तो हैरान रह जाएंगे। साथियों इस हमारी अणखुट संस्कृति, अनोखी परंपराओं मेंसे अनेक विलुप्त भी हो चुकी है और अनेक विलुप्तता की और भी हैं, जिन्हें हमें सभी को साथ मिलकर बचाना होगा। साथियों बात अगर हम जनजातीय समुदाय की करें तो भारतीय संस्कृति में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

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