Sunday, June 8, 2025
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लेख/विचार

विवाह की अनमोल भेंट

प्रायः देखा गया है कि अभी भी समाज का कुछ वर्ग दहेज के मायाजाल में उलझा हुआ है। विवाह का मूल उद्देश्य तो खुशहाल जिंदगी में निहित है, जो किसी भी धनराशि पर निर्भर नहीं है, परंतु विवाह की नींव इसी धनराशि को तय करने के बाद रखी जाती है। शंकर के माता-पिता दहेज को लेकर बहुत सारे सपने बुन रखे थे। जब उन्होने शंकर के सामने दहेज की बात रखी तो उसने अपनी उदार सोच उनके सामने रखी। उसने कहा कि मेरी जीवनसाथी की तुलना आप धनराशि से करना चाहते हो। मेरी होने वाली पत्नी भी तो किसी माँ की जिंदगी होगी।

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बुढ़ापा पालतू कुत्ते जैसा होना चाहिए, व्यंग्य नहीं एक हकीकत

किसी ने मुझसे पूछा, बुढ़ापा कैसा होना चाहिए
मैंने कहा पालतू कुत्ते जैसा..वह नाराज़ हो गए बोले वो भला कैसे? ज़रा समझाओ, मैंने कुछ ऐसे समझाया क्या कुछ गलत कहा?
सोचो आजकल लोग शौक़िया तौर पर और खुद को प्राणी प्रेमी समझते कुत्ते पाल लेते है। ना साहब सिर्फ़ पाल नहीं लेते…खुद उनके नौकर हो जाते है। क्या ठाठ होते है उन कुत्तों के। मालिक का सबसे दुलारा, लाड़ला अपने बच्चों से भी ज़्यादा अज़िज और प्राण से प्यारा होता है। असीम प्यार लूटाते मालिक अपने हाथों से गोद में बिठाकर बड़े चाव से खिलाते है, दूध पिलाते है। एक चीज़ नहीं खाता तो दूसरी मंगवाते है।

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जिस पर हमे नाज हैं वो हैं हरनाज

७० वीं मिस यूनिवर्स स्पर्धा जो इजराइल में हुई उसमे पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में अनुस्नातक, २१ वर्षीय हरनाज़ संधू ने २०२० का मिस यूनिवर्स का ताज पहना हैं। १९९४ में ये ताज सुष्मिता सेन ने जीता था और २००० में ये ताज लारा दत्ता ने जीता था।ये वही साल था जब संधू ने जन्म लिया था।आज २१ साल बाद फिर उसे संधू ने  प्राग्वे की नदिया फरीरा और दक्षिण अफ्रीका की ललेला मेसवा से कड़ी प्रतियोगिता के बाद जीत ही लिया हैं।गुरदासपुर के छोटे से गांव में जन्मी हरनाज़ संधू जैसे ही मिस यूनिवर्स( विश्व सुंदरी)बनी सब जगह संधू संधू ही छाई हुई हैं।सौंदर्य और बुद्धि मत्ता की धनी पूरी दुनियां में छा गई हैं।आज २१ सालों के बाद भारत को इस खिताब उसिकी वजह से लाने का सदभाग्य मिला हैं।अब जब ये नायब कामयाबी  पाई हैं तो सभी को हरनाज़ के बारे में जानने की उत्सुकता होना स्वाभाविक बात हैं।

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संतानों को इन्वेस्टमेंट समझने वाले मां-बाप इसे न पढ़ें

सभी मां-बाप से मेरा एक सवाल यह है कि मानलीजिए कि आप का शादीशुदा बेटा अचानक एक दिन सुबह आप से कहे कि ‘मेरी आमदनी कम है, मैं पूरे घर का खर्च नहीं चला सकता। इसलिए मैं अपनी पत्नी को ले कर अलग रहने आ रहा हूं।’ उस समय आप का पहला रिएक्शन क्या होगा? आप उसे अलग रहने के लिए जाने देंगे या ‘मैं ने अपनी पूरी जिंदगी तुम्हारे पीछे खपा दी, अब हमरा कौन है’, यह कह कर रोक लेंगें? या पत्नी के आते ही मां-बाप को किनारे लगाने का आरोप लगाएंगें?

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राजनेता कैसा होना चाहिए

यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए सियासती घमासान मचा है, हर पार्टी के कार्यकर्ता अपने लीडर की तारीफ़ों के पूल बाँधते जनता के दिमाग को धोने की कोशिश कर रहा है। जब जब किसी भी राज्यों में चुनावी माहौल होता है तब परिस्थिति युद्ध वाली बन जाती है।
अवाम को एक बात समझ लेनी चाहिए की उनको कैसा नेता चाहिए? अपनी सोच और पसंद से अपना नेता चुनना चाहिए। न चंद पैसों के बदले वोट देने चाहिए, न एक बोतल दारु के बदले, न धर्म के नाम पर, न जात-पात के नाम पर। धर्म और जात-पात पर वोट बटोरने वालों को जनता को एकमत होकर बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए।

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किसान आंदोलन क्या वाकई समाप्ति पर?

करीब एक साल के लंबे अंतराल के बाद किसान आंदोलन का स्वर धीमा पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने तीन विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की है और एमएसपी से जुड़े मुद्दे पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की है। हालांकि किसानों ने आंदोलन को अभी समाप्त नहीं किया है और यह जीत किसानों की अभी अधूरी ही है क्योंकि जब तक एमएसपी पर कोई कानून नहीं बन जाता है तब तक उनका संघर्ष अधूरा ही है।

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सोशल मीडिया : संबंधों का सबसे बड़ा दुश्मन

प्रकृति का नियम है, जो पैदा होता है, वह मरता है। यह तमाम संदर्भों में सच साबित होता है। थोड़ा दूर तक सोचें तो यह भी कहा जा सकता है कि मोबाइल भी कुछ ऐसा ही है। समझबूझ कर उपयोग करें तो मोबाइल बहुत काम की चीज है। पर बुद्धि को ताक पर रख कर इसका धड़ाधड़ उपयोग करें तो पतन के लिए यह काफी है। अभी कुछ दिनों पहले ह्वाटसएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम 7-8 घंटे बंद रहा तो हाहाकार मच गया। थोड़ी देर के लिए लोगों को लगा कि जैसे ऊनका सर्वस्व लुट गया है। मजा तो तब आया, जब वह फिर से चालू हुआ। उसके बाद जो मिम्स फैलने लगा, वह मजेदार था। पर कुछ हद तक सटीक भी था।

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चिंताजनक है जीका वायरस का हमला

उत्तर प्रदेश का कानपुर जिला जीका वायरस और डेंगू का हॉटस्पॉट बना है। कानपुर के अलावा पिछले कुछ दिनों में कन्नौज, लखनऊ, मथुरा सहित कई जिलों में जीका वायरस के मामले सामने आ चुके हैं और अब फतेहपुर में भी जीका का केस सामने आने के बाद वहां स्वास्थ्य विभाग अलर्ट मोड में है।
देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में भले ही लगातार कमी देखी जा रही है लेकिन पिछले कुछ महीनों से देश के कई राज्यों में डेंगू के बढ़ते मामलों के साथ कुछ दिनों से जीका वायरस ने भी नई चिंता को जन्म दिया है। उत्तर भारत और खासकर उत्तर प्रदेश में जीका वायरस के मामले जिस तेजी के साथ सामने आए हैं, उससे चिंता का माहौल बनना स्वाभाविक है। उत्तर प्रदेश के कानपुर, कन्नौज, लखनऊ, मथुरा सहित कई जिलों में जीका वायरस के मामले सामने आए हैं और अब फतेहपुर जिले में भी जीका वारयस का केस सामने आने के बाद वहां स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा है।

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बच्चों को संस्कारित करना माता-पिता की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी

“बच्चों में संस्कार, नैतिक शिक्षा, अनुशासन और व्यावहारिक ज्ञान समाज में उनको एक अच्छे इंसान बनने के लिए अहम भूमिका निभाता है।”
जब बच्चा जन्म लेता है तो एक अबोध बालक होता है और जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसके परिवार का अनुशरण करते हुए हुए वह अपना आचरण करता है। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा एवं शुरुवाती सीख अपने घर एवं आस-पड़ोस के वातावरण से ही सीखता समझता है। बच्चे का परिवार ही पहली पाठशाला होती है सबसे ज्यादा बच्चा अपने घर पर ही सीखता है। माता-पिता एवं परिवार के लोग ही उनके प्रथम गुरु होते हैं; इसलिए बच्चों को पुस्तकीय शिक्षा के साथ के साथ-साथ संस्कार, अनुशासन एवं नैतिक शिक्षा बहुत ज्यादा जरूरी हो जाती है।

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नाटक, रंगमंच, थिएटर और साहित्य उत्सव को पुनर्जीवित करना समय की मांग

सरकारी संरक्षण, निजी संगठनों, निजी टीवी चैनलों, नागरिक समाज को आगे आने की ज़रूरत
समाज में व्याप्त कई बुराइयों, भेदभावपूर्ण प्रथाओं से उबारने, जागरूकता लाने तथा वर्तमान आधुनिक अभियानों का लाभ पहुंचाने में नाटकों, रंगमंच, थिएटर की महत्वपूर्ण भूमिका – एड किशन भावनानी
भारत को आदि-अनादि काल से ही संस्कृति, सांस्कृतिक, साहित्य और नाटकों का अनमोल गढ़ माना जाता है। जो हजारों वर्षों से भारत में परंपरा चली आ रही है परंतु पिछले एक-दो दशकों से हम देख रहे हैं कि पाश्चात्य संस्कृति युवाओं पर भारी होते जा रही है। हजारों वर्ष पूर्व की संस्कृति को पुराना ज़माना कहकर नज़रअंदाज किया जा रहा है और इसे अपनाने वालों को ओल्डमैन का दर्ज़ा देकर किनारे करने की प्रथा चल पड़ी है।

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