Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

अभिनंदन अभिनंदन है नववर्ष तेरा

हुजूर 2024 में क्या वक्त रहा, कुछ साथ रहा कुछ गया छूट।
माना तुम सबसे दूर चला जा रहा,यारों यह दस्तूर पुराना है खूब।
कभी ग़म दिया कभी कूल रखा, तुम जैसे भी थे हमें थे मंजूर।
अच्छा किया कुछ बुरा भी रहा, तेरी हाजिरी में रहा मैं भी हाजिर।
रही मेरी कोई शिकायत ना शिकवा, यह आना जाना पुराना है दस्तूर।
सीखाता भी ये सब को अवसर देना, सहर्ष करें नव वर्ष अभिनंदन शुरू।
खुशियों का उपहार नव वर्ष दे रहा, नव प्रभात बेला हो सबको स्वीकार।
अभिनंदन अभिनंदन है नव वर्ष तेरा, तू जीवन में सबके भर दे बहार।

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2025 में आख़िर कैसा रहेगा राजनीतिक मतभेदों का पारा?

2025 में भारत का राजनीतिक पटल गरमा गरम रहेगा। दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों के साथ-साथ बीएमसी के चुनाव भी होंगे। कांग्रेस संगठनात्मक बदलावों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जबकि भाजपा और संघ अपने 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बड़े आयोजन करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी 75 वर्ष के हो जाएंगे और भाजपा को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष भी मिलेगा। 2024 भारतीय राजनीति के लिए एक महत्त्वपूर्ण साल था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सत्ता बरकरार रखी, लेकिन विपक्षी दलों ने भी अपनी चुनौती पेश की। राज्य चुनावों, किसान आंदोलनों, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक मुद्दों ने राजनीति को नया मोड़ दिया। यह साल यह दिखाता है कि भारतीय राजनीति अब केवल दो प्रमुख दलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि क्षेत्रीय और समाजवादी दल भी राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 2024 ने यह साबित किया कि भारतीय राजनीति में 2025 में और अधिक बदलाव और संघर्ष देखने को मिल सकता है।
-डॉ सत्यवान सौरभ
वर्ष 2025 चुनावों से परे देखने का एक अवसर प्रदान करता है। 2024 में, भारत, में राजनीति ने आश्चर्यजनक मोड़ लिया। ये घटनाक्रम कुछ जगहों पर अभूतपूर्व थे, दूसरों में तेज़ या अप्रत्याशित थे। इसने दिखा दिया कि भारतीय राजनीति में अब क्षेत्रीय दलों की ताकत लगातार बढ़ रही है और भविष्य में ये दल राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। 2025 में चुनावों से परे देखने का मौका मिलेगा। यह शायद ऐसा साल होगा जिसमें शासन केंद्र में होगा। 2024 के लोकसभा चुनाव का एक संदेश यह था कि लोग संयम के साथ निरंतरता को प्राथमिकता देते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ने जानबूझकर जनादेश को ग़लत तरीके से पढ़ने का विकल्प चुना है। उनकी राजनीतिक स्थिति सख्त हो गई है और उन्होंने अपनी कटु प्रतिद्वंद्विता को रोज़मर्रा की राजनीति, संसद और उससे परे तक ले गए हैं।

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नया साल सिर्फ़ जश्न नहीं, आत्म-परीक्षण और सुधार का अवसर भी

31 दिसम्बर की आधी रात को हम 2024 को अलविदा कह देंगे और कैलेंडर 1 जनवरी यानी 2025 के नए साल के दिन के लिए अपना नया पन्ना खोलेगा। उतार-चढ़ाव, मजेदार पल और कुछ ख़ास नहीं-यह सब अब अतीत की बात हो जायेंगे। हम एक नए साल के मुहाने पर खड़े हैं, जो हमारे सामने आने वाली हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है। हवा में उत्साह और चिंतन की गूंज है, जैसे पुरानी यादों और उम्मीदों का एक बेहतरीन मिश्रण। बुद्धिमान लोग कहते हैं कि जीवन विरामों के बीच में ज़िया जाता है-जैसे कि सांस छोड़ने के ठीक बाद और सांस लेने से पहले। हर अंत बस एक और शुरुआत है। वास्तव में इसे महसूस करने के लिए साल के पहले दिन से बेहतर कोई समय नहीं है।
-प्रियंका सौरभ
एक नया साल एक नई शुरुआत है। यह एक नए जन्म की तरह है। नया साल शुरू होते ही हमें लगता है कि हमें अपने जीवन में बदलाव करने, नई राह पर चलने, नए काम करने और पुरानी आदतों, समस्याओं और कठिनाइयों को अलविदा कहने की ज़रूरत है। अक्सर हम नई योजनाएँ और नए संकल्प बनाने लगते हैं। हम उत्साहित, प्रेरित और आशावान महसूस कर सकते हैं, लेकिन कभी-कभी आशंकित भी होते हैं। कवियों और दार्शनिकों ने अक्सर दोहराया है कि भविष्य में जो कुछ भी करना है, उसमें जीवन ने जो सबक हमें सिखाया है, उसे लागू करना ज़रूरी है। लेकिन यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल है।

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लिव इन

कुछ बातों का ग्लैमर इतना ज्यादा रहता है कि हम अंधे हो जाते हैं और जब आंख खुलती है तब तक सब कुछ खत्म हो चुका होता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि अनिरुद्ध के साथ मेरे रिश्ते ऐसे हो जाएंगे कि हमारा एक दूसरे को देखना भी नागवार गुजरेगा। मैं अनिरुद्ध के प्रेम में बिल्कुल अंधी हो चुकी थी। मुझे उसकी हर बात, हर अदा, हर अंदाज पसंद आता था। वो बात करता था तो उसके चेहरे से नजर हटाने का मन नहीं होता था। उसका…उसका ड्रेसिंग सेंस गजब का था। कौन से मौके पर क्या पहनना है, उसे बखूबी पता था। हर समय वो हंसता खिलखिलाता रहता था। बातों का जादूगर था वो। वो छोटी-छोटी सी बातों पर मेरी तारीफ करते रहता था। कुल मिलाकर बात यह थी कि मुझे उसका साथ बहुत अच्छा लगता था। हमलोगों के ख्यालात अलग थे मगर फिर भी हम दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत अच्छा लगता था। हम दोनों ही आईटी सेक्टर में काम करते थे लिहाजा वक्त भी साथ में ज्यादा गुजरता था।

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कितना उचित है धार्मिक आराध्यों का उपहास ?

भारत की व्यवस्था का संचालन भले ही संवैधानिक है लेकिन धार्मिकता का भी अपना एक अनूठा स्थान है क्योंकि भारतीय संविधान, किसी भी नागरिक को किसी भी धर्म की आस्था अथवा उनके आराध्यों के साथ खिलवाड़ अथवा उनका उपहास उड़ाने की अनुमति कतई नहीं देता है। बावजूद इसके कानपुर शहर के कुछ प्रतिष्ठानों में ऐसे नजारे प्रकाश में आये हैं जिनको देखकर आश्चर्य हुआ कि अपने प्रतिष्ठानों में गलियारों एवं सीढ़ियों को गंदगी से बचाने के लिये धार्मिक चित्रों को स्थापित करवा दिया गया है। खास पहलू यह है कि प्रतिष्ठानों के मालिकों की नजर में ऐसा कृत्य किसी भी नजरिये से अनुचित नहीं है जबकि सनातन ही नहीं अपितु हर धर्म के आस्थावान लोगों के नजरिये से ऐसा कृत्य उनकी आस्था के साथ खिलवाड़ है। उनका मानना है कि ऐसा करने वाले लोगों ने यह कृत्य अनजाने में नहीं बल्कि जानबूझ कर किया है क्यों कि बड़े-बड़े प्रतिष्ठान चलाने वाले ये लोग, अनपढ़ अथवा नासमझ नहीं बल्कि उच्च शिक्षित व विधिक जानकारी रखने वाले लोग हैं।
बिगत दिनों एक मामला कानपुर शहर के स्वरूपनगर में प्रकाश में आया, जहाँ मोतीझील मेट्रो स्टेशन के निकट स्थित नादरी कार्नर मार्केट में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को उन स्थानों पर स्थापित किया गया था, जिन स्थानों पर लोग मौका पाते ही पान-तम्बाकू की ‘पीक’ थूक देते थे। ऐसे में गन्दगी होना स्वाभाविक सी बात है लेकिन खेदजनक नजारा यह रहा कि उन स्थानों पर लोग न थूकें, इस लिये हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के चित्रों को स्थापित करवा दिया गया था!!

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कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का प्रतिबंध

पहुँच को प्रतिबंधित करने से माता-पिता और अभिभावकों को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों को बेहतर ढंग से निर्देशित करने और यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि वे पर्यवेक्षित तरीके से तकनीक से जुड़ें। हमें बच्चों और युवाओं को ऑनलाइन स्पेस को बेहतर तरीके से नेविगेट करने में मदद करने की भी आवश्यकता है, यह सुनिश्चित करके कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन सुरक्षा सिखाने पर विशेष ध्यान दिया जाए। युवाओं को इस बारे में गंभीरता से सोचना सिखाया जाना चाहिए कि वे ऑनलाइन क्या देखते हैं और वे सोशल मीडिया से कैसे जुड़ते हैं। माता-पिता और शिक्षकों को उचित मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करने में मदद करने के लिए बेहतर उपकरणों और संसाधनों की भी आवश्यकता है।

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समाज में नैतिकता और अनुशासन : शिक्षा व तकनीकी संतुलन की जरूरत

आज का समाज नैतिक मूल्यों, अनुशासन और पारिवारिक संस्कारों के पतन की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। विशेषकर युवाओं में हिंसा, अनुशासनहीनता और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो चिंता का विषय है। हाल ही में हुई विद्यालय की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि नैतिक शिक्षा, पारिवारिक मूल्यों और तकनीकी संसाधनों के अनुशासनात्मक उपयोग पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य हो गया है। लिखा भी गया है कि
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थात्- विद्या विनय सिखाती है, विनय से योग्यता आती है, योग्यता से धन और धन से धर्म व सुख प्राप्त होता है।
श्लोक के भावार्थ को ध्यान में रखते हुए कहें तो विद्यालय केवल शिक्षा देने का स्थान नहीं है, बल्कि यह बच्चों में नैतिकता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने का केंद्र भी है। शिक्षक और अभिभावक बच्चों को सही और गलत के बीच फर्क समझाने में एक प्रमुख भूमिका निभाएं। नई शिक्षा नीति (2020) में भी नैतिक शिक्षा और जीवन कौशल को प्राथमिकता दी गई है। छात्रों के नैतिक और व्यावहारिक विकास के लिए यह दिशा दिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल करियर निर्माण नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण भी होना चाहिए।

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विपक्ष संभल पर आक्रमक तो बांग्लादेश पर खामोश क्यों ?

उत्तर प्रदेश के जिला संभल में जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसकी आहट सुप्रीम अदालत से नेताओं के विवादित बयानों से लेकर राजनैतिक गलियारों तक में सुनाई दे रही है। बीजेपी को छोड़कर सभी राजनैतिक दलों के नेता जामा मस्जिद और पत्थरबाजों के पैरोकार बनकर खड़े हो गये हैं। हाथ में पत्थर और तमंचे लेकर पुलिस पर हमला करने वालों के पक्ष में खड़े यह नेता लगातार योगी सरकार और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ हमलावर हैं। सभी दलों के नेताओं ने संभल को अपना पिकनिक स्पाट बना लिया है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हों या फिर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव जैसे तमाम नेता कभी संभल कूच करने का नाटक करते हैं तो कभी अफवाह फैलाकर माहौल खराब कर रहे हैं। संभल के बिगड़े हालात को संभालने के लिये स्थानीय प्रशासन ने 10 दिसंबर तक जिले में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंद्ध लगा रखा है,लेकिन बीजेपी विरोधी नेताओं को जिले में शांति बरकरार हो इससे ज्यादा चिंता अपनी राजनीति चमकाने की है। इस समय संभल में सियासी नजरा ठीक वैसे ही नजर आ रहा है जैसा कभी अयोध्या प्रभु श्रीराम लला के मंदिर निर्माण आंदोलन, मथुरा में श्री कृष्ण भगवान की जन्म स्थली एवं वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद बनाम साक्षात विश्वनाथ मंदिर मामले में देखने को मिला था और मिल रहा है। संभल विवाद और इसको लेकर हिंसा का मामला लोकसभा तक में गंूज चुका है।
कुल मिलाकर संभल विवाद के सहारे सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के अलावा ओवैसी जैसे नेता भी अपनी सियासत चमकाने में लगे हैं। मगर अफसोस की बात यह है कि संभल मामले में मोदी-योगी सरकार को घेरने में लगे दल और नेता बांग्लादेश में हिन्दुओं के साथ जारी हिंसा को लेकर अपने होंठ सिले हुए हैं,मानो यदि इन नेताओं ने बांग्लादेश के हिन्दुओं के पक्ष में कोई बयान दे दिया तो उनका मुस्लिम वोट बैंक उनसे खिसक जायेगा।

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केजरीवाल का सुरक्षा मुद्दा बीजेपी के लिए बन सकता है चुनावी संकट?

दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी जंग इस बार एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, जो अब तक मुफ्त बिजली, पानी और शिक्षा जैसे वादों के साथ दिल्ली के चुनावी मैदान में उतरते रहे थे, इस बार एक नई रणनीति के साथ चुनावी दंगल में हैं। दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की उनकी कोशिश अब केवल मुफ्त योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इस बार वह दिल्ली की कानून व्यवस्था, सुरक्षा और बढ़ते अपराध को चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हुए हैं। उनकी रणनीति साफ है बीजेपी की कमजोर नस पर हाथ रखना, और यह कमजोर नस है दिल्ली की बिगड़ती कानून व्यवस्था।

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शारीरिक संतुष्टि के लिए मौत को गले लगाते युवा

यह आम कहावत है कि लोग बुरी आदतों को शीघ्र सीख लेते हैं जबकि अच्छी आदत सीखने में उन्हें देर लगती है। एक नए अध्ययन में बताया गया है कि आजकल लोग अजीबो गरीब हरकतें करके खुशी मनाने के चक्कर में मौत के मुंह में चले जाते हैं । इनमें नदी, समुद्र या बांध के किनारे सेल्फी लेने, सड़कों पर मोटरसाइकिल पर कलाबाजियां करते समय जीवन से हाथ धो बैठते हैं। एक अध्ययन में कुछ नये खुलासे भी हुए हैं । ताजातरीन अध्ययन यह है कि आजकल पंजाब में नौजवान हस्तमैथुन करते हुए अपनी जीवन लीला समाप्त कर बैठते हैं। यद्यपि पंजाब सरकार के पास इसके सही आंकड़े मौजूद नहीं है परंतु शहरों में सेक्स विशेषज्ञों से बातचीत करने के पश्चात कई कटु सच्चाइयां सामने आई है । लुधियाना में एक 19 वर्षीय बच्चा हस्तमैथुन का इतना आदि हो गया कि उसके शरीर की शक्ति क्षीण हो गयी और उसकी मृत्यु हो गई।
ऐसा ही एक व्यक्ति और मृत पाया मिला जिसने बिजली के करंट के माध्यम से अपने शरीर में कामोत्तेजना पैदा करने के लिए लाइटों को अपने शरीर से जोड़ा हुआ था।
सेक्स विशेषज्ञ डॉक्टर सतीश गोयल का कहना है कि पंजाब में लोग नई-नई जुगाड़ लगाते रहते हैं। नशेड़ी लोग भी सेक्स का चरम सुख प्राप्त करने के लिए ऐसी अजीबोगरीब हरकतें करते रहते हैं। कामोत्तेजना की अभिलाषा से हुई इन मौतों का कारण बताते हुए फॉरेंसिक परीक्षक सुखदेव सिंह का कहना है कि ऐसे लोग शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम करके चरम कामोत्तेजना का आनंद उठाते हैं।

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