Sunday, May 12, 2024
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लेख/विचार

खबरों के पीछे दौड़ती पत्रकारिता को थोड़ी रेड लाइट की जरूरत

किसी भी मीडिया संस्थान की पहली खबर से अगर लोगों के चेहरे पर मुस्कान न आये तो वह कैसी पत्रकारिता ? आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क लोगों के लिए खबर का स्रोत बन गए हैं, लेकिन इनका कोई पत्रकारिता मानदंड नहीं है।
आज के दौर में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच मीडिया के लिए विश्वसनियता की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ गई है। आज देश भर के चैनलों और अख़बारों में खबर जहां जल्दी पहुंचाने पर जोर है, वहीं समाचार में वस्‍तुनिष्‍ठता, निष्पक्षता और सटीकता बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। इंटरनेट और सूचना के आधिकार (आर.टी.आई.) ने आज की पत्रकारिता को बहुआयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध की और कराई जा सकती है। मीडिया आज काफी सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं, जैसे – अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता और सोशल मीडिया आदि।

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बुनकरों के कल्याण हेतु प्रतिबद्ध सरकार

उत्तर प्रदेश में खेती के बाद अर्थव्यवस्था में हथकरघा उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। हथकरघा क्षेत्र रोजगार और उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। आधुनिक तकनीक और डिजाइन विकास ने इस उद्योग को एक नई पहचान दिलाने में सराहनीय और प्रमुख भूमिका निभाई है। देश में कुल बुनकरों की संख्या में से एक चौथाई बुनकर उत्तर प्रदेश में है, जो प्रदेश की जनता की वस्त्र आवश्यकता में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
अत्यधिक प्रतिस्पद्र्धा वाले बाजार की परिस्थितियों और हथकरघा एवं पावरलूम से अपनी आजीविका का संचालन करने वाले बुनकरों के व्यवसाय को बेहतर बनाने हेतु अनेक कल्याणकारी कदम सरकार ने उठाये है। अनुकूल वातावरण सृजित किया गया है। गरीब बुनकरों के हालातों को सुधारने के लिये अनेक प्रभावी निर्णय लिये गये हैं, जिससे बिचैलिए बुनकरों का शोषण न कर पायें और उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके। बुनकरों को आर्थिक सहायता, कच्चे माल की सहज उपलब्धता, प्रबंधकीय एवं प्रशिक्षण की मदद, कार्यशालाओं का निर्माण, डाई एवं प्रोसेसिंग विपणन एवं ई-मार्केटिंग आदि की सुविधा उपलब्ध कराने की सुचारू व्यवस्था की गई है।

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राजनीति में प्रतिभाशाली युवाओं की कमी लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी

वर्तमान समय चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है जहाँ युवाओं का राजनीति में भाग गिरता जा रहा है| आज हमारी संसद में 35 वर्ष से कम उम्र के मात्र 20% नेता ही है और उनमे से 70 से 90 प्रतिशत केवल पारिवारिक संबंधों द्वारा ही राजनीति में आये हैं| हार्दिक पटेल और कन्हैया कुमार जैसे युवा सक्रिय राजनीति में बहुत कम हिस्सा लेते हैं| 
एक देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह कितना युवा है। 15-24 वर्ष के बीच के सभी युवा, आमतौर पर कॉलेज जाने वाले छात्र होते हैं। उनके करियर विकल्प में इंजीनियर, डॉक्टर, शिक्षक, खेल, रक्षा और कुछ उद्यमी शामिल हैं। विशेष रूप से भारत के संदर्भ में, राजनीति को कैरियर विकल्प के रूप में बहुत कम लिया जाता हैं। इस प्रकार दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को परिभाषित करने और नेतृत्व करने के लिए राजनीति में युवा प्रतिभाशाली दिमागों की भारी कमी है। यह स्थान उन लोगों द्वारा लिया गया है जिनके पास आपराधिक आरोप, निरक्षर धन और बाहुबल हैं, जो सुपर पावर नेशन की लीग का हिस्सा बनने के भारत के दृष्टिकोण को खतरे में डाल रहे हैं।

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क्या वैक्सीन भी प्रभाव हींन होगी, नए करोना 2 पर ?

वैज्ञानिकों के सामने एक नई वैश्विक चुनौती उभर कर सामने आई है उनका कहना है कि ब्रिटेन में फैले करोना के नए वर्शन पर अ नथक मेहनत के पश्चात ईजाद की गई करोना विरोधी वैक्सीन, शायद वर्तमान करोना से पीड़ित लोगों पर कम प्रभावशाली या प्रभाव हीन हीं हो सकती है, ऐसे में वैश्विक स्तर पर नागरिकों की सुरक्षा करना एक नई और बड़ी चुनौती सामने आ गई है, वैज्ञानिकों का यहां तक कहना है कि यह संक्रमण पूर्व संक्रमण से ज्यादा खतरनाक हो सकता है। गौरतलब है की ब्रिटेन में करोना वायरस के नए रूप रंग को देखने के बाद ब्रिटेन सरकार दहशत में आ गई है| इसके साथ ही साथ नये वायरस को लेकर पूरी दुनिया में खौफ तथा चुनौती सामने आई है| और नई महामारी के स्वरूप के चलते भारत के अलावा कनाडा, तुर्की, बेल्जियम, इटली, इजरायल समेत अन्य कई देशों ने ब्रिटेन से आने जाने वाली तमाम हवाई उड़ानों को रद्द कर दिया है| भारत सरकार ने एहतियात के तौर पर ब्रिटेन से आने वाली व्यक्तियों को मंगलवार तक कड़े कोविड-19 परीक्षणों से गुजर कर आइसोलेशन सेंट्रो में रखा जाएगा,साथ ही ब्रिटेन के लिए समस्त उड़ानों पर 31 दिसंबर तक प्रतिबंध लगा दिया गया है|

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बंगाल चुनाव देश की राजनीति की दिशा तय करेगा

बंगाल एक बार फिर चर्चा में है। गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, औरोबिंदो घोष, बंकिमचन्द्र चैटर्जी जैसी महान विभूतियों के जीवन चरित्र की विरासत को अपनी भूमि में समेटे यह धरती आज अपनी सांस्कृतिक धरोहर नहीं बल्कि अपनी हिंसक राजनीति के कारण चर्चा में है।
वैसे तो ममता बनर्जी के बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में दोनों ही कार्यकाल देश भर में चर्चा का विषय रहे हैं। चाहे वो 2011 का उनका कार्यकाल हो जब उन्होंने लगभग 34 साल तक बंगाल में शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी को भारी बहुमत के साथ सत्ता से बेदखल करके राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली हो। या फिर वो 2016 हो जब वो 294 सीटों में से 211 सीटों पर जीतकर एकबार फिर पहले से अधिक ताकत के साथ राज्य की मुख्यमंत्री बनी हों। दीदी एक प्रकार से बंगाल में विपक्ष का ही सफाया करने में कामयाब हो गई थीं।

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बुनकरों के कल्याण हेतु प्रतिबद्ध सरकार

उत्तर प्रदेश में खेती के बाद अर्थव्यवस्था में हथकरघा उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। हथकरघा क्षेत्र रोजगार और उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश देश में तीसरे स्थान पर है। आधुनिक तकनीक और डिजाइन विकास ने इस उद्योग को एक नई पहचान दिलाने में सराहनीय और प्रमुख भूमिका निभाई है। देश में कुल बुनकरों की संख्या में से एक चैथाई बुनकर उत्तर प्रदेश में है, जो प्रदेश की जनता की वस्त्र आवश्यकता में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
अत्यधिक प्रतिस्पद्र्धा वाले बाजार की परिस्थितियों और हथकरघा एवं पावरलूम से अपनी आजीविका का संचालन करने वाले बुनकरों के व्यवसाय को बेहतर बनाने हेतु अनेक कल्याणकारी कदम सरकार ने उठाये हैं। अनुकूल वातावरण सृजित किया गया है। गरीब बुनकरों के हालातों को सुधारने के लिये अनेक प्रभावी निर्णय लिये गये हैं, जिससे बिचैलिए बुनकरों का शोषण न कर पायें और उन्हें उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके। बुनकरों को आर्थिक सहायता, कच्चे माल की सहज उपलब्धता, प्रबंधकीय एवं प्रशिक्षण की मदद, कार्यशालाओं का निर्माण, डाई एवं प्रोसेसिंग विपणन एवं ई-मार्केटिंग आदि की सुविधा उपलब्ध कराने की सुचारू व्यवस्था की गई है।

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इस दुनिया में अगर ये मजदूर ना होते

इस दुनिया में अगर ये मजदूर ना होते
तो अमीरों के ठाट बाट के दस्तूर ना होते
ये तो बस इनकी बुरी है किस्मत
जो आलीशान घर बनाने वालों को
मिलती है टूटी झोपड़ी और टपकती छत
इनको दया ही नहीं, कद्र देने की है जरूरत
ये दुनिया रोशन है इनकी भी मेहनत के बदौलत
न करें गर ये मेहनत तो बड़े लोगों में
आराम, सुख-चैन के गुरूर ना होते
अजी कद्र देना तो हो गयी बहुत बड़ी बात

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वक्त की बेरुखी ने….

वक्त की बेरुखी ने मुसलसल रुलाया
हमें तीरगी ने बहुत कुछ दिखाया
मुझको यूं जो अज़ाबे घड़ी में छोड़ा
उसने झूठे भरम से है पर्दा हटाया
वो जो खुद को ही वतने अमीं कह रहे हैं
ख्वाहिशों ने उन्हीं के चमन था जलाया
ठंड और भूख की अब न उसको पड़ी है
बेटियों के फिकर ने है जिसको सताया
इन जुनूने जुलूसों में कुछ ना रखा है
बेकसूरों का इसने लहू है बहाया

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खेत छोड़ सड़कों पर क्यों उतरें है देश भर के किसान?

केंद्र को इस तथ्य पर अधिक संज्ञान होना चाहिए कि किसान और कृषि क्षेत्र दोनों इसके संरक्षण में हैं, और वे मुक्त बाजार अभिनेता नहीं हो सकते। बड़े निगमों के साथ बातचीत में अपने हित की रक्षा के लिए उनके पास पर्याप्त लाभ नहीं है। कृषि क्षेत्र में मौजूदा विकृतियों को सुधारने का कोई मतलब नहीं है जो किसानों के बीच विश्वास को प्रेरित नहीं करता है। – प्रियंका सौरभ
जयपुर और आगरा के लिए दिल्ली के राजमार्गों की नाकाबंदी के लिए किसान संगठनों के आह्वान के बाद पूरे भारत में तनाव बढ़ गया है। तीन विवादास्पद फार्म विधेयकों के सवाल पर नरेंद्र मोदी सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच समझौता मायावी प्रतीत होता है। राष्ट्रीय राजधानी के पड़ोसी राज्यों के किसानों की एक बड़ी संख्या आस-पास के स्थानों पर डेरा डाले हुए है।
कई दौर की बातचीत के बाद, केंद्र ने अब लिखित आश्वासन दिया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद जारी रहेगी, साथ ही राज्य द्वारा संचालित और निजी मंडियों, व्यापारियों के पंजीकरण के बीच किसानों की चिंताओं से निपटने के लिए कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव भी शामिल होंगे। ये आश्वासन किसानों द्वारा उठाए जा रहे चिंताओं के जवाब में हैं, लेकिन वे उन्हें अपर्याप्त और आधे-अधूरे लगते हैं।

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तो क्या सरकार कांग्रेस का एजेण्डा आगे बढ़ा रही है -डॉ. दीपकुमार शुक्ल

नये कृषि बिल को लेकर जहाँ पूरे देश के अन्दर बबाल मचा हुआ है वही कई विदेशी नेताओं का भी इस ओर ध्यान केन्द्रित है| भारत सरकार कृषि बिल की विशेषताएं बताकर नहीं थक रही है तो आन्दोलनरत किसान इसे वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं| किसानों के सुर में सुर मिला रही विपक्षी पार्टियाँ आपसी भेदभाव भुलाकर एकता और अखण्डता के सूत्र में बंध चुकी हैं| कनाडा के प्रधानमन्त्री सांसद तनमनजीत सिंह ने भारतीय किसानों का मुद्दा उठाकर अपने भारत प्रेम को प्रस्तुत किया है| भारत सरकार के मन्त्री भी किसी से कम नहीं हैं| केन्द्रीय मन्त्री राव साहब दानवे किसान आन्दोलन को चीन और पाकिस्तान की साजिश बता रहे हैं| कानून मन्त्री रवि शंकर प्रसाद सहित अन्य सभी भाजपा नेता इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरते हुए आरोप लगा रहे हैं कि 2019 के चुनावी घोषणा-पत्र में जिस कांग्रेस ने कृषि कानूनों में संशोधन को शामिल किया था वही कांग्रेस अब नये कृषि विधेयक का विरोध कर रही है| निश्चित रूप से इससे कांग्रेस का दोहरा चरित्र उजागर होता है|

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