कोरोनावायरस महामारी का महिलाओं के काम पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। खासकर अकेली महिलाओं, विधवाओं, दैनिक मजदूरी करने या असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा कानूनों के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिली है। उनके सामने कामकाज के दोहरे बोझ के साथ ही वित्तीय संकट भी आ खड़ा हुआ है। सबसे दुखदायी बात ये कि उन्हें दूर-दूर तक आशा की कोई किरण भी नज़र नहीं आ रही।
इस पुरुषवादी दुनिया में आम तौर पर घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चौका, बच्चों की देख-रेख और कपड़े धोने के साथ रसोई का काम महिलाओं के जिम्मे होता है। हालांकि अब कामकाजी दंपतियों के मामले में यह सोच बदल रही है। लेकिन फिर भी ज्यादातर परिवारों में यही मानसिकता काम करती है। नतीजतन इस लंबे लॉकडाउन में ज्यादातर महिलाएं कामकाज के बोझ तले पिसने पर मजबूर हैं। भारतीय महिलाएं दूसरे देशों के मुकाबले रोजाना औसतन छह घंटे ज्यादा ऐसे काम करती हैं जिनके एवज में उनको पैसे भी नहीं मिलते। जबकि भारतीय पुरुष ऐसे कामों में एक घंटे से भी कम समय खर्च करते हैं और ज्यादा रुतबा रखते हैं।
लेख/विचार
भारतीय सेना की तरह पुलिस पर भरोसा क्यों नहीं है? -प्रियंका सौरभ
देश भर में हम आये दिन पुलिस द्वारा हिरासत में लिये गए लोगों की मृत्यु और यातना की घटना को सुनते हैं जिसके फलस्वरूप पुलिस की छवि पर दाग लगते है। यही नहीं अपराधी प्रवृति के लोगों में पुलिस के प्रति क्रूरता जन्म लेती है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अभी-अभी पुलिस वालों के साथ हुई मुठभेड़ और पुलिस वालों का इस तरह शहीद होना भारत की विघटित होती आपराधिक न्यायिक प्रणाली की ओर इशारा करते हुए देश में पुलिस सुधार की आवश्यकता को उजागर करता है। देश में अधिकांशतः राज्यों में पुलिस की छवि तानाशाहीपूर्ण, जनता के साथ मित्रवत न होना और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने की रही है।
रोज़ ऐसे अनेक किस्से सुनने-पढ़ने और देखने को मिलते हैं, जिनमें पुलिस द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया जाता है। पुलिस का नाम लेते ही प्रताड़ना, क्रूरता, अमानवीय व्यवहार, रौब, उगाही, रिश्वत आदि जैसे शब्द दिमाग में कौंध जाते हैं। देश भर में आज पुलिस व्यवस्था में सुधार के साथ ही न्यायिक प्रक्रियाओं के उचित उपयोग का मुद्दा भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रायः यह देखा जाता है कि रिमांड के संदर्भ में याचिका स्वीकार करते हुए न्यायिक दंडाधिकारी उसकी प्रासंगिकता पर विचार नहीं करते हैं और वे पुलिस के प्रभाव से प्रभावित होते हैं।
पशुपालन से बेरोजगार बन सकते हैं आत्मनिर्भर -डॉo सत्यवान सौरभ
कोरोना संकट के कारण बाहरी प्रदेशों से बहुत से लोग वापस आए हैं और उन्हें रोजगार उपलब्ध करवाना देश के सामने बड़ी चुनौती है ऐसे में पशु पालन स्वरोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हाल ही में आत्मनिर्भर भारत अभियान प्रोत्साहन पैकेज के अनुकूल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने 15,000 करोड़ रुपये के पशुपालन बुनियादी ढांचा विकास फंड (एएचआईडीएफ) की स्थापना के लिए अपनी मंजूरी भी दी है । डेयरी सेक्टर के लिए पशुपालन आधारभूत संरचना विकास निधि के तहत 15,000 करोड़ रुपए का बजट पेश किया गया है। डेयरी क्षेत्र में प्रोसेसिंग मे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को बढ़ावा दिया जाएगा। डेयरी प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और मवेशियों के चारे के लिए के बुनियादी ढांचे में निजी निवेशकों को जगह दी जाएगी। पशुपालन में निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए 15,000 करोड़ रुपए का एनीमल हसबेंडरी इंफ्रास्ट्र्रक्चर डेवलपमेंट फंड जारी किया गया है।
प्रतिभाओं का हनन–एक चर्चा
हमारे देश में प्रतिभाओं की भरमार है किंतु विडम्बना यह है कि प्रतिभाएं कराह रही है कई कई कुरीतियों, सरकारी नीतियों, समाज में व्याप्त विसंगतियों, राजनैतिक दखलंदाजी, दबाव, अनैतिक व्यवहार, दुराचार, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी व भाई-भतीजावाद के अनुचित दबाव से। यह उन प्रतिभाओं व हमारे देश समाज के लिए शुभ संकेत नीं है। दुर्भाग्यशाली हैं हम कि स्वार्थ व स्वान्तः सुखाय की अति के वशीभूत हो इन विसंगतियों को आंख मूंदकर स्वीकार कर रहे है, अपनी अंतरात्मा की अनसुनी करते हुए इसे अपने स्तर पर उचित भी ठहरा रहे हैं।
सबसे पहली विडम्बना देखिए कि किसी विशेष सामाजिक उद्देश्य-दुर्बल, पिछड़ी जाति की समता- को लेकर बनाई गई समयबद्ध सरकारी सुविधाजनक रोजगार आरक्षण व्यवस्था की उद्देश्य प्राप्ति व समय सीमा समाप्त हो जाने के उपरांत भी वह व्यवस्था राजीनीतिक व सियासी हथकंडों में फंसी समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही।कोई भी सरकारी तंत्र सत्तामोह या कहें निहितस्वार्थी सामाजिक विरोध के चलते यह कदम उठाने से कतरा रही है। जबकि सरकारी रोजगार में यह विषमता आज पूर्णतयः समाप्त ही नहीं हो गयी है बल्कि अब तो इसने सामान्य प्रतिभाओं का अतिक्रमण तक कर लिया है। प्रारम्भिक स्तर से उच्च स्तर तक सरकारी सुविधाएं प्राप्त यह वर्ग अब प्रतिभा हनन की आंख की किरकिरी बनता जा रहा है।
योगी, विकास के मामले में न्यायपालिका की भूमिका में क्यों..
दिखावे की राजनीति बंद कर ईमानदार पहल करें
भारतीय लोकतंत्र में आजकल एक नए तरह के चलन या रिवाज पैदा हो गया है। जो काम जिसका है वो काम वो न करके कोई दूसरा करने लगा है। कैसे लगता है जब कोई एक दूसरे के कार्यो में हस्तक्षेप करें। पर अब ऐसा ही होता है। कार्यपालिका के रहनुमा न्यायपालिका की भूमिका का निर्वहन कर रहे है और कार्यपालिका के ही कर्ताधर्ता न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाने का कुत्सित प्रयास करने लगे है।
दरअसल यहां बात कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे द्वारा पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद प्रदेश सरकार की जवाबी कार्रवाई के संदर्भ में हो रही है। कानपुर के चौबेपुर में हुई मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस कर्मियों की शहादत का बदला लेने के लिए योगी सरकार के आदेश पर कानपुर प्रशासन ने कुख्यात अपराधी विकास दुबे के घर को गिराने के साथ कार्रवाई शुरू कर दी है।
चीनी उत्पाद का बहिष्कार आसान नहीं…

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सन् 2020, बीस शहादत, बीस दिन, बीस बड़े झटके : चीन चारों खाने चित्त
चीन की एक बड़ी गलती उसे अभी और कितनी महंगी पड़ने वाली है, यह चीन सपने में भी नहीं सोच सकता। १९६२ के उस सीधे-सादे, शांति प्रिय भारत को दिमाग में रख चीन जो हिमाकत की, उसे २०२० का भारत जो सीधा भी है, शांति प्रिय भी मगर उसकी शांति में खलल डालने वालों को वह छोड़ता भी नहीं। शायद उसे यह मालूम न था कि यह २०२० का भारत आज विश्व पटल पर एक चमकता सितारा है, उसके साथ चालबाजियां उसे बर्दाश्त नहीं। यह चाणक्य का देश है, जिन्होंने पूरे विश्व को राजनीति व कूटनीति के गुर सीखाए हैं, उसी से कूटनीति कर बहुत बड़ी गलती कर दी खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा। बीस दिन पहले चीन की अवैधानिक प्रतिक्रिया के खिलाफ भारतीय सेना के विरोधी कार्यवाही में दोनों देशों की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद हमारे बीस जवानों की शहादत पर पूरा देश चीन का खात्मा चाहता है। दोनों देशों के बीच तब से अभी तक तनाव जारी है। किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए भारत हर तरह से, चीन के खिलाफ हर मोर्चे पर पुख्ता तैयारी कर रहा है, फिर चाहे वो आर्थिक हो, सामरिक हो या फिर कूटनीतिक, सबमें चीन पर भारी पड़ता जा रहा है। ऐसे में पूरे चीनी खेमे में भारत से उलझने की गलती के कारण यह डर व्याप्त हो चुका है कि अगली सुबह भारत की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी या यों कहें कि जबसे यह हिंसक झड़प हुई है, तब से हर दिन चीन के ऊपर किसी न किसी प्रकार का हमला भारत के द्वारा जारी है।
निजी स्कूल संचालकों और शिक्षा माफियाओं के दबाव से हटकर ले स्कूल खोलने का फैसला
कोरोना संकट के बीच में शिक्षा मंत्रालय ने आदेश जारी किया है कि राज्य सरकार चाहे तो जुलाई से स्कूलों को खोल सकती है। इसी बीच करीब 5 से ज्यादा राज्य सरकारों ने जुलाई से स्कूलों को खोलने के आदेश भी जारी कर दिए हैं मगर प्रश्न और चिंता की बात ये है कि क्या स्वास्थ्य मानकों को पूरा करते हुए स्कूल प्रबंधन स्कूल खोलने को तैयार है और पूरे देश भर में क्या जुलाई से खुलने वाले स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को भेजने को तैयार भी है या फिर वो इस वक्त अपने बच्चों के भविष्य और जान को लेकर असमंजस कि स्थिति में है.स्कूल खुले तो कोरोना वायरस संक्रमण पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अभी लगातार कोरोना पॉजिटिव केस बढ़ रहे हैं। ऐसे बिगड़े हालात में अगर स्कूल खुले और बच्चों को विद्यालय भेजा गया तो संक्रमण फैलाव पर काबू पाना और भी मुश्किल हो जाएगा। अधिकांश सरकारी और निजी विद्यालयों के अंदर प्रत्येक बच्चे के लिए अलग से शौचालयों का प्रबंध कर पाना मुश्किल है और सामुदायिक दूरी के नियमों का अनुपालन भी संभव नहीं है।
मोर्चे पर महिलाओं के बढ़ते कदम -डॉo सत्यवान सौरभ
भारत में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमांडिंग ऑफिसर के स्तर तक उठने के समान अवसर के लिए रास्ता साफ कर दिया तो उधर पाकिस्तान में पहली महिला जनरल की खबर सुर्ख़ियों में है। दुनिया में आज हर क्षेत्र में महिलायें आगे बढ़ रही है और ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कर रही हैं. भारतीय इतिहास नारी की त्याग-तपस्या की गाथाओं से भरा पड़ा है। किसी युग में महिलाएं पुरुषों से कमतर नहीं रहीं। वैदिक युग में महिलाएं युद्ध में भी भाग लेती थीं।
हालांकि, मध्यकाल के पुरुषवादी समाज ने नारी को कुंठित मर्यादाओं के नाम पर चार-दीवारी में कैद कर रखने में कोई कसर नहीं छोडी, परन्तु तब भी महिलाओं ने माता जीजाबाई और रानी दुर्गावती की तरह न केवल शास्त्रों से, अपितु शस्त्रों का वरण कर राष्ट्र की एकता और संप्रभुता की रक्षा की। वर्तमान में केवल भारतीय वायुसेना ही लड़ाकू पायलट के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है। वायुसेना में 13.09% महिला अधिकारी हैं, जो तीनों सेनाओं में सबसे अधिक हैं। आर्मी में 3.80% महिला अधिकारी हैं, जबकि नौसेना में 6% महिला अधिकारी हैं।
विश्व पटल पर ‘योगी मॉडल’ की धूम
आज कल बहुचर्चित मुद्दा योगी मॉडल सोशल मीडिया से लेकर विश्व पटल पर ट्रेंड कर रहा है। उत्तर प्रदेश के योगी मॉडल की गूंज लखनऊ से 12346 किलोमीटर दूर अमेरिकी ह्वाइट हाउस में भी सुनाई पड़ रही है। अब आपके मन में एक सवाल होगा कि योगी मॉडल का अमेरिका से क्या लेना-देना ?, आखिर इस योगी मॉडल से अमेरिका को क्या फायदा ? मगर हकीकत तो यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को योगी मॉडल खूब पसंद आ रहा है। गौरतलब हो कि पिछले साल 2019 में जब देश में नागरिकता कानून बिल पेश हुआ था तक इस नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में दंगाइयों ने खूब हिंसा फैलाई, जगह-जगह आगजनी, तोड़फोड़, गाड़ियों, पुलिस चौकियों व सरकारी सम्पत्ति को जमकर नुकसान पहुंचाया गया था जिससे उत्तर प्रदेश भी अछूता नहीं रहा मगर उत्तर प्रदेश के योगी सरकार ने इन दंगाइयों को सबक सिखाने के लिए एक अनोखी व अद्वितीय पहल की, जिसमें एक नए योगी मॉडल का जन्म हुआ इस योगी मॉडल के अंतर्गत योगी सरकार ने लगभग 100 से ज्यादा स्थानों पर 57 दंगाइयों के पोस्टर लगवाए, जिस पर उन दंगाइयों का नाम, पता , उनसे वसूली जाने वाली रकम (जो इन दंगाइयों ने सरकारी सम्पत्ति का नुकसान किया था ) लिखी हुई थी।