Sunday, June 8, 2025
Breaking News
Home » लेख/विचार (page 88)

लेख/विचार

शराबबंदी कितनी कारगर…

शराब एक ऐसी चीज है जो व्यक्ति के घर परिवार से लेकर खुद व्यक्ति को भी नर्क के गर्त में ले जाती है ये एक ऐसी बुरी आदत है कि व्यक्ति एक बार बिना औरत के तो रह सकता है लेकिन बिना शराब नहीं। शराब के चलते कितने ही परिवार गरीबी और भुखमरी का जीवन जीने को मजबूर है। आदमी को होश भी तब आता है जब मौत सामने खड़ी होती है। शराब उससे महबूबा की तरह है जिससे मिले बिना रहा नहीं जा सकता और उसे छोड़ने की बात पर मन में पक्का निश्चय करके कि कल मिलने नहीं जाएंगे और ना ना करते हुए फिर से अपनी महबूबा से मिलने चले जाएंगे और मूवी विद पापकार्न का मजा भी लेंगे बस ऐसा ही हाल शराबियों का भी है ना ना करते सीधे ठेके पर जाएंगे और नमकीन के साथ शराब का मजा लेंगे।

Read More »

चमकी की चमक को शीघ्र रोके स्वास्थ्य मंत्रालय

मुजफ्फरपुर में इंसेफिलाइटिस (चमकी) बुखार से सौ से अधिक बच्चे मौत के गाल में समा गए। पिछले पांच साल से यह बीमारी महामारी का रूप धारण कर चुका है। पिछले कई साल इस मौसम में नौनिहालों के मौत का सिलसिला चल रहा है। सरकार की प्राथमिकताओं में बिहार म्यूजियम, ज्ञान भवन, नया विधानमंडल भवन और बुद्ध स्मृति पार्क है। अस्पताल नहीं  क्यों ? पटना म्यूजियम को तो सरकार से संभल नहीं रहा लेकिन एक और म्यूजियम बन गया जबकि बिहार को म्यूजियम की नही अभी अच्छे अस्पतालो की आवश्यकता है। अतिपिछड़ा क्षेत्रों में कोई झांकने वाला नहीं है। विधानसभा भवन बने हुए हैं फिर भी नया बनकर तैयार हो गया जबकि आदिवासी क्षेत्र अभी भी अस्पताल विहीन है।श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल और कई ऐसे हॉल पटना में पहले से मौजूद है जिसकी शायद ही साल में दो सौ दिन भी बुकिंग होती हो। क्या इन नए भवनों में लगे पैसों से मुजफ्फरपुर में सुपरस्पेशलिटी अस्पताल नहीं  बनवाया जा सकता था। एक नहीं कई अस्पताल बन गए होते। सैकड़ों बच्चों की जान बचाई जा सकती थी।

Read More »

राजनीति से परे कुछ सवाल उठाती डॉक्टरों की हड़ताल

आखिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने डॉक्टरों की सभी मांगें मान ली हैं और उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित करने के साथ ही काम पर लौटने के लिए भी कह दिया है। हालांकि पहले डॉक्टरों ने ममता के इस ऑफर को यह कहकर ठुकरा दिया था कि जबतक ममता अपने बयानों के लिए बिना शर्त माफी नहीं मांगतीं हड़ताल जारी रहेगी लेकिन बाद में वे सरकार से बातचीत के लिए तैयार हो गए। इस बीच लगभग एक हफ्ते से न सिर्फ पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हुई हैं बल्कि देश भर में डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन भी जारी हैं। इस हड़ताल की वजह से उपचार नहीं मिलने के कारण पश्चिम बंगाल में अबतक छ लोगों और एक नवजात शिशु की मौत हो चुकी है। एक मुख्यमंत्री के रूप में निश्चित ही यह ममता बनर्जी की विफलता है कि हड़ताली डॉक्टर उनके अल्टीमेटम को भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं और स्थिति दिन ब दिन बिगड़ती ही जा रही है। दरअसल यह शायद देश में पहली बार हुआ है कि एक राज्य के डॉक्टरों की हड़ताल को देश भर के डॉक्टरों का समर्थन मिला हो। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने तो 17 जून को देश व्यापी हड़ताल की घोषणा भी कर दी है।

Read More »

पानी का महत्व

पानी सफेद सोना है और यह सोना इस समय भारत के अधिकांशत: गांवों में सडकों और नालियों में बुरी तरह से बहाया अथवा फैलाया जा रहा है। इसी सफेद सोने की बूंद – बूंद के लिए भारत के कुछ हिस्सों में प्राणी तरस रहे हैं। लेकिन जहाँ यह अभी भी उपलब्ध है, वहाँ लोग इसे बचाने की तरफ कोई खास ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। उन्हें भी जल्द पता चलने वाला है कि एक बूंद कितनी कीमती है। जबसे गांवों में समरसेबिल बोरिंग पम्प (इलैक्ट्रॉनिक) लगना शुरु हुई हैं तबसे लोग पानी को बहुत बुरी तरह से बर्बाद करने लगे हैं। एक आदमी नहाने में ही सैकड़ों लीटर पानी सड़कों पर, नालियों में बहा देता है वो भी पूर्णतः स्वच्छ मिनरल वाटर। शहरों में जिसकी कीमत बहुत अधिक होती है और शायद ही ऐसा पानी मिलता हो।
भारत में बढती जनसंख्या के साथ संसाधनों की जरूरत भी बढ रही है। लेकिन कुछ प्राकृतिक संसाधनों को हम अपनी मर्जी से बढा भी नहीं सकते। कुछ पदार्थों के बगैर जिआ जा सकता है परन्तु पानी के बगैर कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता।

Read More »

करना होगा ऐसे दरिंदों का सामाजिक बहिष्कार

हमें खुद पहल करनी होगी। इस समाज का नव निर्माण करना होगा। देश की सीमाओं की रक्षा तो हमारे वीर सैनिक कर ही रहे हैं नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए आज समाज के हर व्यक्ति को सैनिक और हर माँ को मदर इंडिया बनना होगा।
हर आँख नम है हर शख्स शर्मिंदा है क्योंकि, आज मानवता शर्मसार है इंसानियत लहूलुहान है।
एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने इंसान होने का गुरूर था लेकिन आज का मानव तो खुद से ही शर्मिंदा है। क्योंकि आज उस पिशाच के लिए न उम्र की सीमा है न शर्म का कोई बंधन। ढाई साल की बच्ची हो या आठ माह की क्या फर्क पड़ता है। मासूमियत पर हैवानियत हावी हो जाती है।

Read More »

बढ़ते प्रदूषण का जन जीवन पर प्रभाव चिंताजनक

आज विश्व पर्यावरण दिवस पर सोशल मीडिया पर पेड़ पौधे लगाते लोगों की तस्वीरें खूब पोस्ट हुई। क्या ये सभी लगाए पेड़ बच जाएंगे। जवाब में आओ यही कहेंगे नहीं। क्योंकि आज हम कोई भी दिवस आता है उसे औपचारिक तौर पर मना लेते हैं। दिवस की सार्थकता तभी होती है जब धरातल पर काम होता है। मात्र अखबार में फ़ोटो व न्यूज़ देना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए। आज धरती का तापमान कितना बढ़ता जा रहा है। पेड़ कटते जा रहे हैं। सड़कों का जाल बिछ रहा है मगर साथ ही हज़ारो पेड़ काट दिए जाते हैं। धूल धुंआ के सिवाय क्या बचा है अब। हर ओर प्रदूषण ही प्रदूषण। वायु प्रदूषण ,ध्वनि प्रदूषण असहनीय हो गया है। बढ़ते वाहनों की रेलमपेल ने जीवन नारकीय कर दिया है। वायु प्रदूषण बढ़ते कल कारखानों की चिमनियों से निकले जहरीले धुएं ने बस्तियों में अनेक रोग फैला दिए हैं। प्लास्टिक प्रदूषण से सब दुखी है। मूक पशु इन्हें खाकर मर रहे हैं। पवित्र नदियां गंगा यमुना क्षिप्रा नर्मदा आदि सभी मैली हो गई है। कचरे के ढेर ही ढेर हैं नदियों के किनारे बसे बड़े महानगरों के बुरे हाल हैं। करोड़ो रूपये जिन नदियों को साफ करने के लिए खर्च किये लेकिन आज भी ये गंदी ही है।
लगातार अनावश्यक रूप से वनों की कटोती व बढ़ता शहरीकरण औधोगिकरण से प्रदूषण बढ़ा है। इससे विषैला कचरा मिट्टी हवा व पानी सभी प्रदूषित हो गया है। सार्वजनिक स्तर पर आज सामाजिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।

Read More »

दल्लों की भेंट चढ़ता किसान..

कहा जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है या भारत गांवों में बसता है। वैसे ये बात सही है कि भारत गांवों में ही बसता है। देश का मजबूत आधार किसान है और यही किसान अब राजनीति की भेंट चढ़ गए हैं। उनकी समस्याएं और उनसे जुड़े मुद्दे सियासी भट्टी में तप रहे हैं। उनके नाम पर योजनाएं तो बनती है लेकिन उसका लाभ किसानों को नहीं मिलता। कर्जमाफी के नाम पर सरकारें बदलती रहतीं है। आज भी 70% किसानों को दो वक्त की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है और जो 30% किसान हैं वे नौकरीपेशा या धनी किसान होते हैं जो सुविधा संपन्न होते हैं। इन 70% गरीब किसानों को चुनावी मुद्दा बनाकर घोषणा पत्रों में जगह तो मिल जाती है लेकिन उनकी हालत ज्यों की त्यों रहती है। वोट का मोहरा बनते किसान लोकलुभावन वादों के आसरे रह जाते हैं।

Read More »

क्यों नहीं छू पा रहा है सत्तर की सीमा को मतदान का प्रतिशत डॉ॰दीपकुमार शुक्ल

चुनाव आयोग तथा विभिन्न सरकारी एवं गैरसरकारी संगठनों के लाख प्रयास के बावजूद भी मतदान का प्रतिशत सत्तर की सीमा को नहीं छू पा रहा है। क्या देश के तीस प्रतिशत से भी अधिक मतदाता लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अपनी सहभागिता के प्रति अभी तक जागरूक नहीं हो पाये हैं या फिर इसका कारण कुछ और है? इस तीस प्रतिशत में वे मतदाता शामिल नहीं हैं जिनका नाम चुनाव कर्मियों की कृपा से मतदाता सूची में शामिल नहीं हो पाया है या फिर हटा दिया गया है। यदि इन सबको भी जोड़ लिया जाये तो पूरे देश में चालीस प्रतिशत से भी अधिक मतदाता किसी न किसी कारणवश मतदान से वंचित रहते हैं। सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव के अब तक चार चरण समाप्त हो चुके हैं। पांचवें चरण का भी चुनाव शीघ्र ही सम्पन्न हो जाएगा। बीते चार चरणों के मतदान का प्रतिशत 62 से 68 के बीच ही रहा है। जो कि 2014 के सभी नौ चरणों के औसत मतदान प्रतिशत 66.38 के आसपास ही है।

Read More »

क्या है सुन्दरता का मापदण्ड?

हाल ही में आइआइटी में पढने वाली एक लड़की के आत्महत्या करने की खबर आई कारण कि वो मोटी थी उसे अपने मोटा होना इतना शर्मिंदा करता था की वो अवसाद में चली गयी उसका अपनी परीक्षाओं में अव्वल आना भी उसे इस दुःख से बहार नहीं कर पाया यानी उसकी बौधिक क्षमता शारीरक आकर्षण से हार गयी दरअसल। आज हम जिस युग में जी रहे हैं वो एक ऐसा वैज्ञानिक और औद्योगिक युग है जहाँ भौतिकवाद अपने चरम पर है। इस युग में हर चीज का कृत्रिम उत्पादन हो रहा है। ये वो दौर है जिसमें ईश्वर की बनाई दुनिया से इतर मनुष्य ने एक नई दुनिया का ही अविष्कार कर लिया है यानी कि वर्चुअल वर्ल्ड। इतना ही नहीं बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशल इनटेलीजेंस ने भी इस युग में अपनी क्रांतिकारी आमद दर्ज कर दी है। ऐसे दौर में सौंदर्य कैसे अछूता रह सकता था। इसलिए आज सुंदरता एक नैसर्गिक गुण नहीं रह गया है अपितु यह करोड़ों के कॉस्मेटिक उद्योग के बाज़रवाद का परिणाम बन चुका है। कॉस्मेटिक्स और कॉस्मेटिक सर्जरी ने सौंदर्य की प्राकृतिक दुनिया पर कब्ज़ा कर लिया है। आज नारी को यह बताया जा रहा है कि सुंदरता वो नहीं है जो उसके पास है। बल्कि आज सुदंरता के नए मापदंड हैं और जो स्त्री इन पर खरी नहीं उतरती वो सुंदर नहीं है। परिणामस्वरूप आज की नारी इस पुरुष प्रधान समाज द्वारा तय किए गए खूबसूरती के मानकों पर खरा उतरने के लिए अपने शरीर के साथ भूखा रहने से लेकर और न जाने कितने अत्याचार कर रही है यह किसी से छुपा नहीं है। सबसे बड़ी विडम्बना तो यह है कि खूबसूरत दिखने के लिए महिलाएं उन ब्यूटी पार्लरस में जाती हैं जिनका संचालन करने वाली महिलाओं का सुंदरता अथवा सौंदर्य के इन मानकों से दूर दूर तक कोई नाता ही नहीं होता।

Read More »

जनता की अदालत में फैसला अभी बाकी है

कुछ समय पहले अमेरिका के एक शिखर के बेस बॉल खिलाड़ी जो कि वहाँ के लोगों के दिल में सितारा हैसियत रखते थे, उन पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप लगा। लेकिन परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आभाव में वो अदालत से बरी कर दिए गए जबकि जज पूरी तरह आश्वस्त थे कि कत्ल उसने ही किया है क्योंकि फैसला “कानून के दायरे” में ही किया जाता है। अदालत या फिर कोई संवैधानिक संस्था चाहे कहीं की भी हो, विश्व में उनके द्वारा इस प्रकार के फैसले दिए जाना कोई नई या अनोखी बात नहीं है। लेकिन अदालत के इस फैसले के बाद जो अमेरिका में हुआ वो जरूर अनूठा था। क्योंकि कोर्ट से “बाइज़्ज़त बरी” होकर ये सितारा खिलाड़ी जब अपने महलनुमा घर पहुंचे, तो उनके चौकीदार ने उन्हें घर की चाबियाँ देते हुए कहा कि उनके दर्जन भर सेवक अदालत के फैसले से आहत होकर त्यागपत्र दे चुके हैं और वह खुद भी केवल उन्हें ये चाबियां सौंपने के लिए ही रुका हुआ था। इतना ही नहीं जब उन्होंने अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट में टेबल बुक करनी चाही तो उन्हें मना कर दिया गया। जब वो स्वयं रेस्टोरेंट पहुंच गए जो लगभग खाली था, तो भी उन्हें टेबल नहीं दी गई। वैसे तो यह प्रसंग पुराना है लेकिन वर्तमान चुनावी दौर में प्रासंगिक प्रतीत होता है।

Read More »