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Daily Archives: 19th November 2018

किसान दिवस का आयोजन 22 नवम्बर को विकास भवन में

कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में विकास भवन सभागार में 22 नवम्बर 2018 को पूर्वान्ह 10 बजे से अपरान्ह 2 बजे तक किसान दिवस का किया जायेगा। किसान दिवस में सिंचाई, ऊर्जा एवं कृषि उत्पादन शाखा से जुडे विभाग कृषि, उद्यान, सहकारिता, मत्स्य, पशुपालन, एवं रेशम विभागों के अतिरिक्ति कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक, लीड बैंक मैनेजर तथा इंश्योरेन्श कम्पनी के प्रतिनिधि प्रतिभाग करेंगे। यह जानकारी मुख्य विकास अधिकारी केदारनाथ सिंह ने दी है।

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देशद्रोहियों के लिए हर भारतवासी हो अदालत

भारत दुनिया का सबसे बड़ा गणतन्त्र है जिसमें सवा अरब से अधिक आबादी निवास करती है। एक हिम शैल, तीन सागर, छः ऋतुएँ, तीन दर्जन राज्य, दर्जनों धर्म/पंथ, सैकड़ों भाषायें, हजारों बोलियाँ, साठ डिग्री सेल्सियस के रेंज में तापमान, हजारों त्यौहार, संस्कृति, रहन-सहन तथा मरुस्थल व मेघालय यहाँ की विशेषतायें हैं। मतभेद एवं वैचारिक विविधता किसी व्यक्ति, क्षेत्र, सम्प्रदाय या विधान के लिए होना स्वाभाविक है। रोष तब पैदा हो जाता है जब मतभेद अपनी मातृभूमि भारत के लिए उत्पन्न होता है। जिन पाठशालाओं से विकास पुरुष निकलने की अपेक्षा की जाती है वहाँ से ’कन्हैया’ निकलता है। जहाँ बंदेमारम् गूँजना चाहिए वहाँ श्भारत तेरे टुकड़े होंगेश् गूँजता है। ’इन्कलाब जिंदाबाद’ की जगह ’हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ का नारा लगता है और आजादी के इकहत्तर साल बाद भी हम बेशर्म होकर यह तय करने में दशकों गुजार देते हैं कि ये सारे प्रायोजित नारे एवं कृत्य ’देशद्रोह’ के अन्तर्गत आते हैं या नहीं। हम उन कपूतों की तरह हैं जिनकी माँ को सरेआम-सरेराह गाली दी जाये और हम मन में मत्रोच्चार का अंदेशा पाले रहें।
जनमत से बनी हुई सरकारें सदैव जनमत के नफे-नुकसान की गणित में उलझी रहती हैं इसलिए सरकारों से ज्यादा उम्मीद करना खुद को छलने जैसा है। आजादी के आठवें दशक का दौर चल रहा है। जनता को अब तय करना ही होगा कि श्देशद्रोहश् क्या है! जिस तरह ’हत्या’ शब्द सुनते ही धारा 302 और फाँसी या आजीवन कारावास की सजा दिलो-दिमाग में तत्क्षण आ जाती है वैसे ही ’देशद्रोह’ से सम्बंधित धारणा शीशे की तरह साफ होनी चाहिए। देशद्रोह से सम्बंधित नारे, स्लोगन, तख्तियाँ या किसी भी तरह के मौखिक, सांकेतिक या भौतिक कृत्य इतना स्पष्ट होने चाहिए कि करने वाला, सुनने वाला या देखने वाला पूर्णतया परिचित हो। कहने का आशय यह है कि भारत की समस्त आबादी इसको जानती हो, समझती हो।

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