Friday, April 26, 2024
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भाजपा में हाथरस लोकसभा प्रत्याशी के चयन पर अब स्थानीयता के मुद्दे ने पकड़ा जोर

बाहरी पर रार बरकरार, स्थानीय ही स्वीकार
– पार्टी हाईकमान के साथ ही जिला टीम के भी बदले सुर
– अब भाजपा से हाथरस के चुनावी समर में उतरेगा स्थानीय प्रत्याशी?
हाथरस, नीरज चक्रपाणि। जहाँ देशभर में मोदी लहर चल रही है, वहीं लोकसभा क्षेत्र हाथरस में भाजपा के दावेदार कुकुरमुत्तों की तरह रोजाना उग रहे हैं। बकौल जिलाध्यक्ष इस लोकसभा क्षेत्र पर दावेदारों की संख्या पचपन को पार कर गई है। इनमें अनेक ऐसे दावेदार हैं जो दो-चार-छः महीने पहले सांसद बनने का सपना लिये टिकिट की खातिर ही पार्टी में शामिल हुए हैं एवं पार्टी की रीति-नीति से अनजान हैं और यदि इनको टिकिट नहीं मिला तो इनकी शक्ल यहाँ से ऐसे गायब होगी जैसे गधे के सिर से सींग। ऐसे भी अनेक दावेदार हैं जिन्होंने पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी प्रत्याशी की खिलाफत की या फिर नगर पालिका के चुनाव में जिन्होंने भाजपा प्रत्याशी के स्थान पर अन्य प्रत्याशियों को खुलेआम चुनाव लड़ाया। बहरहाल, अब यहाँ की स्थिति यह है कि आम जनता से लेकर भाजपा का प्रत्येक छोटे से छोटा कार्यकर्ता स्थानीय प्रत्याशी चाहता है और ऐसा न होने की दशा में वह विरोध का हर तरीका अख्तियार करने पर अमादा है, जिसकी बानगी पिछले दिनों पार्टी के एक बड़े कदधारी नेता के टिकिट फाइनल होने की खबर से शुरू हुए विरोध के रूप में हमें देखने को मिली। भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं आम जनता तक में नरेन्द्र मोदी को लेकर खासा उत्साह है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं द्वारा जन-भावनाओं का सम्मान नहीं किया गया और यहाँ से किसी बाहरी उम्मीदवार को चुनाव लड़ाया तो देश भर में चल रही मोदी की आँधी भी हाथरस से भाजपा की नैया पार नहीं लगा पायेगी।विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व द्वारा हाथरस लोकसभा क्षेत्र पर उम्मीदवारी को लेकर जिन नामों पर गम्भीरता से मंथन चल रहा था उनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री अशोक प्रधान,बागला महाविद्यालय के प्रोफेसर डा. चन्द्रशेखर रावल, पूर्व पालिकाध्यक्ष पुत्रवधु संध्या आर्य ,स्वरुप सिंह बंजारा ,अनुसूचित मोर्चा के रमेशचन्द्र रत्न, पूर्व पालिकाध्यक्ष प्रतिनिधि वासुदेव माहौर, रामवीर सिंह भैयाजी, श्वेता दिवाकर,निर्मल धनगर ,नंदनी देवी ,महेश खटीक , आगरा की अंजुला माहौर एवं विधायक हरीशंकर माहौर के नाम प्रमुख थे। लेकिन अब सूत्र बताते हैं कि भाजपा कार्यकर्ताओं एवं आम जनता की निरन्तर चल रही स्थानीय प्रत्याशी की माँग के मद्देनजर पार्टी हाईकमान भी स्थानीय उम्मीदवार उतारने का मन बना चुका है। यही कारण है कि अशोक प्रधान ने यहाँ की अपनी दावेदारी से तौबा कर ली है। पार्टी ऐसे किसी विवादास्पद व्यक्ति को चुनावी मैदान में नहीं उतारना चाहेगी जिससे पार्टी में स्थानीय स्तर पर विद्रोह के हालात पैदा हों। स्थानीयता के मुद्दे ने बाहरी लोगो की दावेदारी को भी अन्य बाहरी उम्मीदवारों की तरह ही बेदम कर दिया है।फिलवक्त का सूरतेहाल यह है कि भाजपा से चुनावी समर में प्रत्याशी स्थानीय ही उतरेगा। इस बात का संकेत जिलाध्यक्ष के बयान से भी मिलता है जिसमें उन्होंने स्थानीय प्रत्याशी के मसले पर कार्यकर्ताओं एवं जनता की भावनाओं का सम्मान करने एवं इससे शीर्ष नेतृत्व को अवगत कराने की बात कही। शायद जिला नेतृत्व को भी अब यह ऐहसास हो चुका है कि बाहरी प्रत्याशी के साथ जनता के बीच वोट माँगने में जो थुक्का-फजीहत होगी उसका सामना करने का साहस वह नहीं जुटा पायेंगे। चर्चा तो यह भी है कि जब से एक बाहरी उम्मीदवार के समर्थन में जिले व नगर के महत्वपूर्ण पदाधिकारी पार्टी हाईकमान के समक्ष दिल्ली गये तभी से भाजपा के समर्पित एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने जिले व नगर की टीम के ऐसे लोगों पर सौदेबाजी करने और पार्टी प्लेटफार्म को निजी हितों को साधने का जरिया बनाये जाने के आरोप लगाते हुये विरोध शुरू कर दिया।ऐसी दशा में स्थानीय प्रत्याशियों के जो नाम हैं वह डा. चन्द्रशेखर रावल, संध्या आर्य, स्वरुप सिंह बंजारा, निर्मल धनगर, श्वेता दिवाकर के हैं। लेकिन सूत्रों की मानें तो हाथरस लोकसभा क्षेत्र में गठबंधन के घोषित उम्मीदवार जाटव समाज से हैं, इसलिये भाजपा हाईकमान जाटव समाज के किसी भी प्रत्याशी को यहाँ से चुनावी मैदान में उतारने के मूड में नजर नहीं आ रहा है। कुल मिलाकर नतीजा यही निकलता है कि भाजपा की टिकिट स्थानीय एवं गैर जाटव को मिलने की सम्भावना सर्वाधिक प्रबल है। अब यह किस्मत का खेल है कि इसमें बाजी किसके हाथ लगेगी? और भाजपा के प्रत्याशी चयन से ही यह तय होगा कि हाथरस की सियासत का ऊँट किस करवट बैठेगा?