Sunday, May 5, 2024
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » महिलाओं के स्वास्थ्य उल्लंघन पर लामबन्द होना आवश्यक-बिन्दु सिंह

महिलाओं के स्वास्थ्य उल्लंघन पर लामबन्द होना आवश्यक-बिन्दु सिंह

पन्द्रह दिवसीय अभियान का आगाज
चन्दौली, दीपनारायण यादव। 28 मई को विकास खण्ड़ चकिया के हाल में ग्राम्या संस्थान द्वारा महिला स्वस्थ्य पर अन्तराष्ट्रीय कार्य दिवस के उपलक्ष्य में पत्रकार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें ग्राम्या संस्थान की निदेशक बिन्दु सिंह ने कहा कि पिछले 30से अधिक वर्षों से प्रजनन व यौन स्वास्थ्य एवं अधिकार के आन्दोलन से जुड़ी महिलाओं के अधिकारों की पैरोकारी करने वालों और सहयोगी दलों ने विश्व स्तर पर विभिन्न तरीकों से इसे मनाया है। साल दर साल, महिलाओं, लड़कियों और सहयोगियों ने प्रजनन और यौन स्वास्थ्य अधिकारों के लिए कार्य जारी रखा है, और इन अधिकारों के मूल मायनों, जो मानव अधिकारों का एक अंग है,के लिए खड़े रहे हैं।
उन्होंने कहाकि आज ऐसे समय में जब महिलाओं के मानवाधिकारों और विशेष रूप से यौन और प्रजनन अधिकारों का दुनिया भर में व्यवस्थित रूप से उल्लंघन जारी है, तो हमारे समुदायों के सभी लोगों का भी लामबंद होना आवश्यक है, ताकि हमारे अधिकारों को वापस लिए जाने की स्थिति में संम्वाद किया जा सके। कहा गया कि हम महिलाओं के अधिकारों को हानि पहुँचाने वाले किसी भी प्रयास की निंदा करें ताकि हम अपने शरीर के सभी पहलुओं, हमारी यौनिकता और हमारे जीवन के बारे में निर्णय ले सकें, जो कि दबाव भेदभाव व हिंसा से मुक्त हो। उन्होंने कहा कि भारतीय जन स्वास्थ्य मानक राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत मानकों का एक वह ढांचा है, जो स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की दूरदर्शिता रखता है। यह मानक जन-स्वास्थ्य सुविधाओं जैसे – उप स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व जिला अस्पताल के लिए मुख्यतःमानव संसाधनआवश्यक दवाईयों, उपकरणों व आधारभूत सुविधाओं आदि जिनकी स्वस्थ्य केन्द्रों पर जरूरत होती है,उनके लिए न्यूनतम मापदंड तय करता है।
उत्तर प्रदेश में कई सरकारों के स्वास्थ्य मंत्रियों का कहना रहा है कि उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जायेगा | इसके लिए सरकार के द्वारा कई प्रयास किये गए है जैसे – सबसे निचले पायदान पर वी०एच०एन०डी० और इसके बाद उप- स्वास्थ्य केंद्र, पी०एच०सी०, सी०एच०सी० व अन्य कार्यक्रम और योजनाएं भी चलाई गई – जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम व जननी सुरक्षा योजना आदि। लेकिन आज भी भारतीय जनस्वास्थ्य मानक के आधार पर देखा जाये तो सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति सोचनीय है, और साथ ही संसाधनों की कमी भी दिखती है।
वहीं संस्था की नीतू सिंह ने बताया कि भारत सरकार द्वारा लागू किये गए 2005 में जननी सुरक्षा योजना के तहत अस्पतालों में प्रसव हेतु प्रोत्साहन राशि(शहरी क्षेत्र में 1000 व ग्रामीण क्षेत्र में1400 रु०) देने की घोषणा की गयी थी। इसके कुछ समय बाद प्रसव के दौरान व बाद में होने वाले सभी प्रकार के खर्चो को कम करने के लिए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम की घोषणा की गई, जिसमे सभी मातृ स्वास्थ्य की सेवाएं सरकार द्वारा मुफ्त दी जानी थी।
जबकि गरीब व पिछड़े क्षेत्र की महिलाएं विशेष तौर पर प्रसव के लिए जाती है तो अस्पतालों में उनसे या उनके घरवालों के साथ ख़राब व्यहवार होना, समय पर सही इलाज न मिलाना, बिना कारण व दस्तावेजों को रेफर करना और सबसे अधिक अनावश्यक पैसों की मांग की जाती है | गांवों में सबसे ज्यादा पैसों की मांग मरीज को अस्पताल में भर्ती कराने व उनके खाने के लिए किया जाता है | उन्होंने बताया कि इसके अलावा ओ.ओ.पी.ई. एक बड़ा मसला है, जिसमे दवाई, जाँच, दस्ताना आदि पर भी काफी खर्च करना पड़ता है,और इसमें 500 रु0 से ऊपर तक खर्च करने पड़ते है, और जिसके लिये उन्हें कई बार कर्ज भी लेना पड़ जाता है | हर साल भारत में लगभग 4 करोड़ लोग स्वास्थ्य में इस तरह के खर्च की वजह से गरीबी रेखा के नीचे चले जाते है।
उन्होंने कहा कि “महिला स्वास्थ्य अधिकार मंच ” जमीनी स्तर का महिलाओ का फोरम है,जिसमें उत्तर प्रदेश की 11000 गरीब, ग्रामीण व वंचित महिलाएं जुडी है। यह मंच पिछले 13 सालों से महिला स्वास्थ्य व विभिन्न जुड़े मुद्दों पर माहिलाओ के अधिकारों की निगरानी व उनकी पैरोकारी करता आ रहा है। कार्यक्रम का संचालन नीतू सिंह द्वारा किया गया,इस दौरान कई लोग मौजूद थे।