ऑफिस में अच्छी खासी चर्चा थी बड़े साहब से लेकर लिपिक और चपरासी तक चिंतित थे ऑफ़िस की अविवाहित 45 वर्षीया महिला लेखपाल ने लोन लेकर अपना छोटा सा घर बनवाया था और उसी घर के गृह प्रवेश की, सत्यनारायण भगवान् की पूजा, वास्तु पूजा और फिर भोजन के लिए आमंत्रित किया था, चर्चा और चिंता इस बात की थी कि कम से कम कीमत पर उन्हें क्या उपहार दिया जाए, व्यक्ति अलग अलग उपहार दे या सामूहिक एक ही उपहार दिया जाये पर दोपहर तक वहा जाने के पहले आम सहमति नहीं बन पायी, फिर बड़े साहब और उनके सहायक साहब ने बाजार से गुजरते हुए साझा करके एक दीवाल घड़ी खरीदी, घडी सुदर थी और सस्ती भी दोनों साहब खुश हुऐ पैसे बचे, उधर एक अन्य साहब व पूरा स्टाफ अलग वाहन में एक उपहार बाजार से खरीदकर खुश होते हुए गए कि पैसे भी बचे और रस्म अदायगी भी हो गयी। गंतव्य में पहुंचकर सबने सत्यनारायन प्रभु का प्रसाद लिया, लेखपाल ने उत्साह से स्वागत कर अपना घर दिखाया, घर छोटा किन्तु सुन्दर था, आत्मीय भी, उसके बाद भोजन के लिए आमंत्रण हुआ, भोजन सुस्वादु व सुरुचि पूर्ण था भोजन करने के बाद सबने बधाई के साथ उपहार देने के पश्चात विदा लेना चाहा तो लेखपाल मैडम के भतीजे ने कहा आईये बुआ ऐसे थोड़े ही जाने देगी आप सब आये हमारा मान बढ़ाया, उनकी तरफ से रिटर्न गिफ्ट है, उन्होंने पूरे कार्यालय के सदस्यों को एक एक अलग उपहार जोर देकर हाथो में दिया, तोहफे काफी महगे और बड़े लग रहे थे, तोहफे लेते समय बड़े साहब, छोटे साहब और सारे स्टाफ के चेहरे पश्चाताप से बुझ गए थे, सज्जनता और संस्कार में कम वेतन किन्तु बड़े दिल वाली लेखपाल महिला सबसे बहुत आगे हो गयी थी, छोटे कद की उस महिला ने पुरे अधिकारिओ के कद को बहुत बौना कर
दिया था। – संजीव ठाकुर