Friday, March 29, 2024
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डेवलपमेंट चार्ज के नाम पर वसूल रहे हैं हजारों रूपये

कमाई को हर साल बदल देते हैं किताब
आरटीई के नियमों की अनदेखी, जमकर मनमानी
शिकोहाबाद, नवीन उपाध्याय। सीएम योगी आदित्यनाथ की सख्ती के बावजूद निजी स्कूलों की मनमानी थम नहीं रही है। किताबें, यूनीफाॅर्म और कनवेंस के नाम पर मोटे मुनाफे का खेल चल रहा है। अब डेवलपमेंट चार्ज के नाम पर अतिरिक्त फीस वसूलने का नया प्रचलन सुनाई और दिखाई देने लगा है। जिसने पहले से परेशान अभिभावक की कमर तोड़ कर रख दी हैै। आर्थिक बोझ ने उनका बजट बिगाड़ दिया है, वह मानसिक तनाव में है। इधर आला अफसर और जनप्रतिनिधि भी चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। अभिभावकों की शिकायत है कि स्कूल प्रबंधन द्वारा हर वर्ष डवलपमेंट चार्ज के नाम पर उनकी जेब काटी जा रही है। स्कूलों में एडमीशन के समय एक बार ही शुल्क लिया जाता है, लेकिन स्कूल संचालकों ने इसे डवलपमेंट का चार्ज का नाम दिया है। जिसके नाम पर अभिभावकों से हर वर्ष मोटी रकम वसूली जाती है। ऐसे अभिभावक जो इस का विरोध करते हैं, उनके बच्चों को स्कूल प्रबन्धन द्वारा अनुशासनहीनता के आरोप में निष्कासन कर दिया जाता है। लिहाजा दूसरे अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य को देख विरोध करने की जगह चुप्पी साध लेते हैं। गौरतलब है कि आरटीई के तहत लागू किए गए नियमों में स्कूल संचालकों को तीन वर्ष में दस फीसदी फीस में बढोत्तरी करने की अनुमति है। इसके लिए संबंधित शिक्षा विभाग के अधिकारियों और गठित स्कूल मैनेजमेंट कमेटी से एनओसी ली जाती है, इसके साथ ही छात्र-छात्राआंे को मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने का मानक है। आलम यह है कि नियमों को दरकिनार कर स्कूल संचालकों की मनमानी बेखौफ जारी है। सूत्र बताते हैं कि नगर के प्रतिष्ठित स्कूल संचालकों ने काॅपी किताबों पर लाखों रुपया प्राइवेट पब्लिसर्स बुक वालों से लिया है। अभी तक इन की बुक न लगने पर एक स्कूल में तो विवाद के हालात तक पैदा हो गए। मामला बमुश्किल शांत हो पाया है।
इनकी झलकी पीड़ा
मुन्नेश कुमार कहते है मेरी बेटी एलकेजी में पढ़ रही है, जिसकी नर्सरी की फीस 5600 रुपये है, वहीं महीने की फीस 600 रुपये है जबकि मेरी सालाना इनकम काफी कम है। ऐसी महंगाई में बच्चों को पढ़ाना मुश्किल है। देवेन्द्र मोहन की एक बेटी है स्टेशन रोड़ स्थित एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में कक्षा एक की छात्र है। उनकी प्राइवेट सर्विस है। प्रवेश की फीस दे चुके हैं, लेकिन स्कूल डेवलपमेंट  के नाम पर 500 रुपये मांगे जा रहे हैं। आलोक कुमार बताते हैं प्राइवेट स्कूल में बच्चे का एडमीशन कराया है, जिसमें किताब, बैग, ड्रेस एक ही दुकान से खरीदनी है। जबकि दुकानदार मनमानी कर रहे हैं।