निर्बाध गति से बढ़ती जनसंख्या किसी भी देश के विकास की सबसे बड़ी बाधा है| भारत भी ऐसा हीएक देश है| संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है|जबकि जनसंख्या वृद्धि दर सम्बन्धी आकंड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाईट वर्ल्डोमीटर के अनुसार भारतकी आबादी अब तक 139 करोड़ हो चुकी है| देश में जनसंख्या नियन्त्रण की महती आवश्यकता बहुत
पहले से महसूस की जा रही है| अधिक जनसंख्या के चलते सरकारी सिस्टम कैसे धड़ाम होता है, इसकाकटु अनुभव कोरोना की दूसरी लहर में हम सब देख चुके हैं| इससे सबक लेते हुए उत्तर प्रदेश की योगीसरकार जनसंख्या नियन्त्रण कानून बनाने जा रही है| इस हेतु राज्य के विधि आयोग द्वारा ‘उत्तर प्रदेशपॉपुलेशन (कण्ट्रोल, स्टेबलाइजेशन एण्ड वेलफेयर) बिल का प्रारूप तैयार किया गया है| इस प्रारूप केउजागर होते ही पूरे देश में इसको लेकर बहस छिड़ गयी है| क्योंकि इसके कुछ प्रावधान बहुत अधिकसख्त हैं| यहाँ तक कि भाजपा की प्रमुख घटक विश्व हिन्दू परिषद् को भी इसके कई प्रावधानों पर आपत्तिहै| परिषद् के प्रमुख अलोक कुमार का कहना है कि दो बच्चे रखने पर इंसेंटिव दिये जाने वाली बात से राज्य की डेमोग्राफी प्रभावित हो सकती है| इससे समाज में आबादी का असन्तुलन पैदा होने की भी सम्भावना है| वहीँ मुस्लिम शिक्षण संस्था दारुल देवबन्द इस नीति को समाज के सभी वर्गों के खिलाफ बता रही है| देवबन्द के कुलपति मुफ़्ती अबुल कासिम नौमानी के अनुसार जिनके दो से अधिक बच्चे हैं|उन्हें सुविधाओं से वंचित करने का मतलब उन बच्चों के साथ नाइंसाफी होगी| योगी सरकार का तर्क है
कि राज्य की जनसंख्या जिस गति से बढ़ रही है उससे लोगों को स्वास्थ्य सहित अन्य सेवाएँ देने में समस्या आ रही है| इसलिए जनसंख्या पर नियन्त्रण लगाना आवश्यक है| इससे आम जन को सुविधाएँदेने और संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल में मदद मिलेगी| राजनीतिक विश्लेषक इस बिल को भाजपा का चुनावी स्टंट बता रहे हैं| उनके अनुसार यदि यह बिल कानून का रूप लेता है तो भाजपा मुस्लिम औरदलित वोटरों का ध्रुवीकरण करने में सफल हो जायेगी| जिसका लाभ उसे 2022 के चुनाव में मिल सकताहै| प्रस्तावित कानून में दो से अधिक बच्चों वाले दम्पत्ति को स्थानीय निकाय तथा पञ्चायत चुनाव लड़ने,सरकारी नौकरी में आवेदन करने और यदि पहले से सेवारत हैं तो प्रमोशन लेने पर रोक लगाने की बातकही गयी है| साथ ही ऐसे लोगों को अन्य अनेक सरकारी योजनाओं तथा सुविधाओं से वंचित रखने का भी प्रस्ताव बिल में रखा गया है| साथ ही राशन सिर्फ घर के चार सदस्यों को मिलेगा| वहीँ दो बच्चों केनियम का पालन करने वालों को सरकारी सेवा में दो अतिरिक्त इन्क्रीमेंट दिये जायेंगे| महिलाओं को माँबनने पर और पुरुषों को पिता बनने पर पूरे वेतन और भत्तों के साथ 12 महीने की छुट्टी मिलेगी| नेशनल पेंशन स्कीम के तहत नियोक्ता के अंशदान में तीन प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी| जो दम्पत्ति एक बच्चे केबाद ही नसबन्दी करा लेंगे, उन्हें बेटे के लिए 80 हजार तथा बेटी के लिए एक लाख रुपये की आर्थिकसहायता प्रदान की जायेगी| ऐसे अनेक प्रावधान बिल के मसौदे में समाहित हैं| परन्तु प्रारूप के पृष्ठ 12से 15 में बहु-विवाह करने वालों के लिए कानून की शर्तों को काफी विस्तार से समझाया गया है| भारत में इस्लाम के अतिरिक्त अन्य किसी भी धर्म के व्यक्ति को एक से अधिक विवाह करने की कानूनी इजाजतनहीं है| अतः स्पष्ट है कि बहु विवाह को लेकर बिल में दी गयी शर्तें मुस्लिम समुदाय को ध्यान में रखकर ही बनायी गयी हैं| इसी कारण समाजवादी पार्टी सहित विभिन्न राजनीतिक दल बिल की मंशा पर
सवाल उठा रहे हैं| परन्तु इन शर्तों को पूर्णतया अनुचित कहना सही नहीं है| हिन्दू विवाह अधिनियम एकपत्नी या पति के रहते दूसरे विवाह की इजाजत नहीं देता है परन्तु पति या पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद दूसरे विवाह की अनुमति सभी के लिए है| अतः प्रस्तावित प्रारूप में बहु विवाह की शर्तें अन्य धर्मों पर स्वतः लागू हो जायेंगी| उत्तर प्रदेश विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ए.के. मित्तल के अनुसार अगस्त माह में विधेयक को अन्तिम रूप देकर सरकार को सौंपने का प्रयास किया जा रहा है| उनका कथन है कि प्रस्तावित कानून लाभार्थी की स्वेच्छा से ही लागू किया जायेगा| अर्थात यदि आप कानून का पालन नहीं करते हैं तो आप पर कोई आपराधिक वाद नहीं चलेगा| बस आपको विधेयक में वर्णित लाभों से वंचित कर दिया जायेगा| यह बात जितनी सरलता से कही जा सकती है क्या उतनी ही सरलता से व्यावहारिक धरातल पर भी खरी उतरेगी?यह अपने आप में यक्ष प्रश्न है| पहला तथ्य यह है कि जिन माता-पिता के पहले ही दो से अधिक बच्चे हैं उन पर यह कानून भला कैसे और क्यों लागू होगा? क्योंकि उनके तीसरे या चौथे बच्चे के जन्म के समय इस तरह का कोई कानून ही नहीं था| दूसरा सबसे अहम पहलू यह है कि यदि यह कनून लागू हुआ तो कन्या भ्रूण हत्या के मामले तेजी से बढ़ेंगे| जिसे रोकने के लिए अब तक किये गये सभी प्रयास लगभग विफल ही कहे जा सकते हैं| इससे देश का लिंगानुपात और भी अधिक घटेगा| 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रति 1000 पुरुषों पर 912 स्त्रियाँ हैं| अर्थात उत्तर प्रदेश का लिंगानुपात 912 है| जबकि पूरे देश का लिंगानुपात 879 है| जो पहले ही चिन्ता का विषय है| लोग सरकारी नौकरी तथा अन्य सुविधाओं के लालच में अधिक से अधिक गर्भपात करायेंगे| उसमें भी पुत्र की कामना के चलते कन्या भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध करने से भी गुरेज नहीं करेंगे| लाख जागरूकता के बावजूद आम आदमी पुत्र-पुत्री के बीच भेद करने वाली मानसिकता का परित्याग नहीं कर पा रहा है| यदि कुछ जागरूक हो भी तो दहेज़ की बढ़ती कुवृत्ति तथा बेटियों के प्रति बढ़ते अपराध उसे अजन्मी पुत्री के प्रति निष्ठुर बना देते हैं| प्रस्तावित कानून लागू होने के बाद पुत्र की कामना, सरकारी नौकरी तथा विभिन्न सुविधाओं का मोह आम जन को और अभी अधिक निष्ठुर बनायेगा|