मौदहा, हमीरपुर। इस्लाम में सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले कैलेंडर वर्ष पहले महीने की दशवीं तारीख को निकलने वाले ताजिया जुलूस हालकिं कोरोना के चलते लगातार दूसरे वर्ष भी नहीं निकल सके।लेकिन गाईडलाईन का पालन करते हुए करबला में देररात तक ताजिया ठण्डे(जलसमाधि)करने का सिलसिला चलता रहा।हालकिं इस दौरान लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से सभी इमाम चौकों सहित करबला में पुलिस व्यवस्था चुस्त दुरुस्त रही और जिले के आलाधिकारी भी मानीटरिंग करते रहे। कोरोना के कहर के चलते सरकार द्वारा जारी गाईडलाईन के अनुसार जहां मोहर्रम में ताजिया जुलूस के साथ ही अन्य किसी प्रकार के जुलूस निकालने और भीड़ इकट्ठा करने पर प्रतिबंध लगाया गया था जिसके चलते कस्बे के लगभग डेढ दर्जन ताजियादारों सहित क्षेत्र के आधा सैकड़ा से अधिक ताजियादारों ने अपने घरों पर ही हजरत इमाम हुसैन की याद में ताजिया बनाया और घरों में ही कोविड गाईडलाईन के चलते फातेहा पढ़ी गई।और भीड़ इकट्ठा नहीं होने पर विशेष ध्यान दिया गया। बताते चलें कि शुक्रवार दस मोहर्रम को देरशाम से करबला में ताजिया ठण्डे करने का सिलसिला शुरू हुआ जो देररात तक चलता रहा।जिसमें ताजियादारों ने ताजिया में बांधा गया सेहरा और तुरबत के अतिरिक्त अन्य सामान को ठण्डा किया| जिसके साथ दस दिन तक चलने वाले मोहर्रम का औपचारिक समापन हो गया।हालकिं इस्लाम में मोहर्रम का विशेष महत्व है और मोहर्रम की दसवीं तारीख को अधिकांश युद्धों में इस्लाम की विजय होने के साथ ही अन्य बड़े काम भी हुए हैं जिसके चलते कुछ लोग दसवीं मोहर्रम को खुशी मनाने की बात कहते हैं।जबकि दस मोहर्रम को करबला के मैदान में हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने पारिवारिक और करीबी 72 लोगों के साथ तत्कालीन जालिम बादशाह यजीदी फौज के हाथों शहीद कर कर दिए गए थे।जिसके कारण अधिकांश मुसलमान इस दिन रोजा रखकर गम हुसैन मनाते हैं।और उसी सिलसिले में उनकी याद में उनके मजार की हूबहू कापी ताजिया बना कर उसकी ज्यारत कर फातेहा आदि पढ़ते हैं।उसी ताजिया को देररात तक ठण्डे करने का सिलसिला चलता रहा। हालाकिं मुसलमान चेहल्लुम तक हजरत इमाम हुसैन की याद मनाते हैं और घरों घरों में फातेहा, लंगर, मजलिस और सबील लगाने का सिलसिला चलता रहेगा।