Saturday, April 27, 2024
Breaking News
Home » युवा जगत » लता जी के जीवन से सीख : भावी पीढ़ी के लिए

लता जी के जीवन से सीख : भावी पीढ़ी के लिए

माँ शारदे की वृहद पुत्री स्वर कोकिला लता जी के जीवन का विश्लेषण हमें जीवन के बहुत सारे पक्षों पर सोचने और सीखने को प्रेरित करता है। वह लता जी जो सबके दिलों में चीर-स्थायी विराजमान रहेंगी। आइये हम उनके जीवन के कुछ पक्षों को उजागर कर उनसे सीखने का प्रयास करते है।
ज़िम्मेदारी उठाना सीखे:- लता जी के पिताजी ने अपने अंतिम समय में उन्हें घर की बागडोर दी थी। उस तेरह वर्ष की किशोरी ने छोटे-छोटे चार भाई-बहनों के पालन की ज़िम्मेदारी को सहज स्वीकार किया। जीवन पर्यंत अविवाहित रही और अपना पूरा जीवन उन चारों को समर्पित किया। आज उनके परिवार की जगह समाज के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। यह भी उनकी सफलता का एक महत्वपूर्ण आयाम है।
कला की अनूठी साधक:- सरस्वती स्वरूपा लता जी कभी भी संगीत गायन के समय चप्पल नहीं पहनती थी। उनका गायन माँ शारदे की आराधना था। शायद देवी का आशीर्वाद तो उनकी इसी सम्मान भावना का परिणाम था जो उन्हें अनवरत सफलता के मार्ग पर प्रशस्त करता गया।
दार्शनिक भाव:- लता जी के जीवन में धर्म का उच्च स्थान था। जब कोई उनके घर जाता तो वे उसे अपने आराध्य का मंदिर दिखलाती। सत्यम-शिवम-सुंदरम का भाव तो स्वयं जीवन में उतार ही चुकी थी। वह नश्वर शरीर और चिरंतन प्रेम को भली-भाँति समझती थी। वह जानती थी की शेष सभी चीजे अस्थायी है और ईश्वर ही इस नियामक सृष्टि का संचालक है।
मृत्यु के पश्चात भी अमरत्व को प्राप्त:- मृत्यु जीवन की पूर्णता भी है और जीवन का कड़वा सच भी, पर लगभग पाँच पीढ़ियों को अपने स्वर से मंत्रमुग्ध कर देना और अपने गीतों से अमरत्व का पान करना, यह सौभाग्य विरलों को ही प्राप्त है। हम अपने प्रयासों से सफलता के सोपान प्राप्त कर सकते है।
हर मनोभावों को अपनी आवाज दी:- भारतवासी लगभग 80 वर्षों से उनके स्वर के आनंद को अभिभूत कर रहे थे। राष्ट्रभक्ति, सादगी, धर्म, हर्ष-विषाद, ईश्वरीय भक्ति, प्रेम, परिहास, मातृत्व इत्यादि हर परिप्रेक्ष्य में लता जी का स्वर जीवंत और अमर हुआ है। अतः जीवन में हर मनोभाव के साथ आगे बढ़ना हमें और बेहतर करने को प्रेरित कर सकता है और अपने प्रशंसको के बीच कामयाब बना सकता है।
मायानगरी में भी सादगी की मूरत:- लता जी की एक और खासियत उनकी साधारण जीवन शैली है। मायानगरी में रही जरूर पर माया के प्रपंच से कोसो दूर रही। संघर्ष का पाठ भी सबको सीखा गई। चकाचौंध और तड़क-भड़क को पीछे छोडते हुए हमेशा सादगी और शालीनता ने ही उन्हें सुशोभित किया। लता जी एक ऐसे व्यक्तित्व की धनी थी जो उन्हें बचपन की जिम्मेदारियों के साथ विरासत में मिली थी।
दर्द की गहराई की तीव्रता:- कुछ समय पहले जब उनसे यह प्रश्न पूछा गया की क्या वे फिर अगले जन्म में लता मंगेशकर बनना चाहेंगी तो उन्होने कहा “नहीं” क्योंकि लता मंगेशकर की अपनी तकलीफ़े है जिनसे केवल वह ही जूझ सकती है। हमें अकसर ही दूसरों का जीवन खुशहाल दिखाई देता है, पर हम यह भूल जाते है की सबके जीवन में कठिनाइयों का रूप अलग-अलग है। ऊँचाई की चरम सीमा पर पहुँच कर भी बहुत कुछ ऐसा था जो केवल उनके दर्द की गहराई में छुपा था।
बचपन से ही संघर्ष को प्राथमिकता:- लता जी ने 05 वर्ष की उम्र से ही काम करने की शुरुआत की थी। बच्चों के खेलने-कूदने की उम्र में तो वह घर की ज़िम्मेदारी निभाना सीख गई। अपने भाई-बहनों की परवरिश की खातिर ही अविवाहित रहने का निश्चय किया। घर चलाने के लिए उन्होने अभिनय करना भी शुरू किया। संघर्ष की पाठशाला भी व्यक्ति को सफलता दिलाने में सहायक होती है।
त्वरित सफलता नहीं मिलती:- जब लता जी अपने प्रारम्भिक दौर में गायन कर रही थी तो उनकी आवाज को पतली बताकर उनको फिल्मों में काम देने से मना कर दिया गया। उन्होने ने भी अपने जीवन में कई बुरे दौर देखे है। यहाँ तक भी कहा जा रहा था की वे आगे नहीं गा पाएँगी, पर सारी निराशाओं को पीछे छोड़ लता जी ने साहस का मार्ग अपनाया। आज मिल रही उपमाओ और उपलब्धियों के पीछे एक संघर्ष की कहानी भी छिपी है।
अकेलेपन की लड़ाई:- ऐसा नहीं है की अकेलेपन का सफर बहुत आसान रहा होगा। अनुभव की इस पाठशाला ने बहुत से अरमानो का कत्ल किया होगा। जिसके गायन में इतना श्रंगार, प्रेम, अपनत्व, सहजता, ममत्व और मस्ती भी थी क्या यह सच में उसके जीवन में विद्यमान रही होगी। क्या यह मनोभाव उनके मन में जाग्रत नहीं हुए होंगे। उनके एकाकी जीवन की तपस्या कभी उनके गायन में नहीं झलकी। पर यकीकन यह अकेलापन तकलीफदेह तो रहा होगा। इसलिए अगली बार यदि आप किसी अविवाहित से मिले तो उसे कोई भी उपमा या ताना देकर उसका मनोबल और साहस कम न करें क्योंकि वह अपने आप से लड़कर जी रहा है।
उदार सोच की जनक:- जब लता जी लगातार अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से अलंकृत हो रही थी तब उन्होने कई पुरस्कारों के लिए कुछ और नाम और व्यक्तित्व को आगे बढ़ाने के लिए बल दिया। उनका कहना था की नए लोगों को भी मौका मिलना चाहिए। यही बात उनके गायन में भी लागू थी। यह उनकी उदार सोच को परिलक्षित करता है। वे जानती है की कला जगत में अपना एक मुकाम बनाना सहज नहीं है इसलिए वे औरों के संघर्ष को भी एक मुकाम देना चाहती थी।
दुनिया के दिखावे का पीछा न करें:- लता जी ने अपनी कलासाधना के संघर्ष से ही नाम और दाम कमाए इसलिए कभी भी दूसरों को देखकर अपने केरियर का चुनाव न करें। आपकी योग्यता के अनुरूप ही आपको अपने केरियर का चुनाव करें जिससे एक सफल मंजिल को प्राप्त किया जा सकें है।
यह तो उस महान विभूति की सफल यात्रा के कुछ ही अंश है। क्या पता उनके जीवन का अध्ययन कितनी नई प्रेरणा हमें दे सकता है। इसलिए जब भी उनके स्वर को स्पर्श व नमन करें तो उनके संघर्षों से भी सीखे और सदैव जीवन में सकारात्मक रहकर नई उड़ान भरने के लिए प्रयास करें। अपनी क्षमता अनुरूप अपनी खूबियों को पहचान कर काम करें क्योंकि लता जी ने अपने स्वर के साथ स्वयं को सदैव के लिए अमर बनाया है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)