स्कूल में हिजाब पहनकर आने की ज़िद्द सरासर गलत है, मुद्दा इतना बड़ा नहीं जितना खिंचा जा रहा है। आप कुछ भी पहनने के लिए आज़ाद हो। बुर्का, हिजाब, सलवार-कमीज, या फटी हुई जीन्स कहीं पर कुछ भी पहनिए किसीने कभी नहीं रोका, पर स्कूल का एक अनुशासन होता है, स्कूली बच्चो के लिए यूनिफॉर्म बहुत जरूरी है। सभी की यूनिफॉर्म एक जैसे होती है तो बच्चो के अंदर हीन भावना जन्म नहीं लेती। सभी बच्चे जब यूनिफॉर्म में होते है तो यह पता नहीं चलता है की कौन अमीर का बेटा है कौन गरीब का। कौन हिन्दु, कौन मुसलमान सब एक समान लगते है। जिस स्कूल के जो नियम हो उसे हर छात्रों को मानकर चलना चाहिए। स्कूल में आप अपना मज़हबी पहनावा पहनकर आने की ज़िद्द नहीं कर सकते। अब स्कूल में आना है तो यूनिफॉर्म में तो आना होगा और क्यूँ अभी से धर्मं का चोला चढ़ाकर घुमना है आपको? माँ बाप के घर हो जब तक अपनी मनमानी से जी लो बाद में तो उम्र भर आपको उस घरेड़ का हिस्सा बनना ही है। तो ऐसे मुद्दों में न पड़ते स्कूली नियमों का पालन करों और शांति से पढ़ाई की ओर ध्यान दो, वरना ऐसी स्कूलों में जाकर पढ़ो जहाँ ऐसी बंदीशें न हो।
वैसे भी घूँघट प्रथा, हिजाब, सती प्रथा, और विधवाओं के लिए नीति नियम ये सब किसी महिला की पसंद नहीं होती, परंपरा और संस्कृति के नाम पर जबरदस्ती थोपी गई रिवायतें है। हिजाब और भगवा स्कार्फ़ के विवाद पर प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके लिखा की लड़कियाँ बिकिनी पहनें, घूंघट पहनें, जींस पहनें या फिर हिजाब, यह महिलाओं का अधिकार है कि वह क्या पहनें और यह अधिकार उसे भारत के संविधान से मिला है। भारत का संविधान उसे कुछ भी पहनने की गारंटी देता है। इसलिए महिलाओं को प्रताड़ित करना बंद करें।
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला ने महिलाओं को पढ़ने से वंचित नहीं करने की अपील की है। उधर, अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान ने भी इस पर अपनी राय प्रकट की है। अफ़घानिस्तान में महिलाएं पर्दे के विरोध में उतरी है उस पर तालिबान का कहना है कि अफगानिस्तान में महिलाओं को पर्दे में रहना होगा।
इस मामले में हर कोई अपना पक्ष रखते आग को हवा देने की कोशिश कर रहे। प्रियंका जी बिकनी चॉइस हो सकती है, बुरखा या हिजाब पसंद नहीं लड़कियों पर थोपी गई इस्लामिक रवायत मात्र है। क्यूँकि स्त्री को अमुक-तमूक परिस्थिति में बिकनी पहनकर घूमना चाहिए ये किसी धार्मिक या मज़हबी ग्रंथ में नहीं लिखा गया। पर कुछ एक परिस्थिति में मुस्लिम महिला को बुरखा पहनना चाहिए ये इस्लामिक मज़हब में लिखा है। दोनों की तुलना ही गलत है आज़ादी और पसंदगी की वैल्यूएशन एक ही पलड़े में मत तोलिए। फसाद किसी चौपाटी पर रंग रैलियां मनाने का नहीं है। विद्या की देवी सरस्वती के मंदिर में कैसे जाए उस पर है।
बिकनी किसी खास इवेंट या स्विमिंग का हिस्सा है। लेकिन बुरखा थोपा गया रिवाज़ है, तभी तो कुछ देशों में मुस्लिम महिलाएं इसका विरोध प्रदर्शन कर रही है। जैसे हिन्दु परंपरा में घूँघट प्रथा थोपी गई थी। मज़हब कोई भी हो किसीकी आज़ादी पर पाबंदी नहीं लगा सकता। स्कूलों में यूनिफार्म एकता का और समभाव का प्रतीक होता है, हर छात्रों को उस नियम का पालन करते अनुसरण करना चाहिए, ना कि अपनी मज़हबी परंपरा की तरफ़दारी करते सांप्रदायिक सोच को भड़काना चाहिए।
हिजाब या घूँघट कोई गर्व लेने वाली बात नहीं है, महिलाओं के दमन का हिस्सा है। हर थोपी गई मान्यताओं का विरोध करते अपनी आज़ादी के लिए सर उठाना लाज़मी है, जो लड़कियाँ इस बात को समझ चुकी है वह विद्रोह की लाठी चला भी रही है। हिजाब को पसंद करने वाली लड़कियां बहुत कम होती है। कौन पसंद करता है 40/42 डिग्री गर्मियों में सर से पाँव तक ढ़के रहना। ये महज़ सदियों से चली आ रही परंपरा का अनुकरण है। इसीलिए पहले तय कर लीजिए की जिस चीज़ का आप विरोध कर रहे है वो आपकी पसंद है, या थोपी गई रिवायतें। बहकावे में न आकर अपनी सोच के आधार पर तय कीजिए की आप क्या चाहती है।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलोर, कर्नाटक)