Saturday, May 11, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार » विवाह की बढ़ती उम्र से जूझता युवा वर्ग, समाज की खामोशी पर सवालियाँ निशान !

विवाह की बढ़ती उम्र से जूझता युवा वर्ग, समाज की खामोशी पर सवालियाँ निशान !

आज हर वर्गों एक चिंताजनक दौर साफ़ नजर आ रहा है; अधिक उम्र तक युवक-युवतियों की शादी न होना। इसको लेकर आज सभी समाज काफी चिंताग्रस्त है। लड़के की उम्र 30 के पार जाने लगी है परन्तु शादी की बात करे तो इस उम्र तक उनकी शादी न होना एक सामाजिक समस्या बनकर उभर रही है। यह समस्या इतनी विकराल होती जा रही है कि लड़के एवं लड़कियों की उम्र 30-35 पार करने पर भी वे कुँवारे बैठे है; यही कारण है कि लड़के-लड़कियों में एक अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। इसका एक मुख्य कारणों में तेजी से समाज में परम्पराओं का बदलता दौर शामिल है। हर माँ-बाप अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैर पर खड़ा करने के लिए अपना सारा जीवन लगा देते है, बेटा-बेटी को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देने के लिए हर संभव कोशिश करता है। यह सब उपक्रम बच्चों की कवलियत हो बढ़ा रहा है परन्तु कावलियत और सरकारी नौकरी की अंधी दौड़ में सभी युवा वर्ग इस तरह दौड़ लगा रहा है कि उनके जीवन के सुन्हेरे पल की कुर्वानी देकर यह लक्ष्य हासिल करने के लिए बहुत सी सामाजिक परम्पराओं को आड़े हाथ लेने से नहीं चूकते। आज मध्यम वर्गीय परिवार से लेकर उच्च वर्गीय परिवारों में ऐसी होड़ सी लग गई है जिसमे सब अपनी बेटियों को सरकारी नौकरी पेशा के घर शादी करना चाहते है। किसी सरकारी नौकरी के लड़के को देखकर उसके घर लड़की देने की जैसे होड़ लग जाती है सरकारी नौकरी नहीं उसके पास अलादीन का चिराग हो जो हर आदेश पर आपने आका की मन मुराद इच्छा पूरी करने के लिए तैयार बैठा हो। सरकारी नौकरी वाले लड़के-लडकियाँ वाले भी सरकारी नौकरी रुपी मैजिक छड़ी से अपने आपको दूसरे से अलग छबी एवं दायरा बना लिए है। क्या कम पढ़ा लिखा होना, या किसी प्रकार का निजी व्यवसाय, निजी संस्थानों में जॉब करने वालो की जीवन शैली सरकारी नौकरी वाले से हमेशा कम होती है ? पता नहीं लोगो के मन में क्या चल रहा है!
“हर राजा जनक अपनी अपनी बेटी को दसरथ जैसे महान वैभवशाली राजा के घर राम जैसे वर के साथ विवाह करवाना चाहते है। परन्तु मेरी समझ में इस वैभव का उस समय कोई मूल्य नहीं होता जब किस्मत में वनवास ही लिखा हो। स्थिति एवं परिस्थिति विपरीत होने पर मनुष्य के धन, वैभव, प्रतिष्ठा, पद ये कुछ काम नहीं आते।”
बढती उम्र में शादी न होना एक अवसाद की स्थिति – कहने का अभिप्राय एकदम सीधा है अच्छे से जीवन जीवन-यापन करने का कौशल एवं प्रतिभाशाली लड़के को अपनी कन्या का जीवन साथी चुन सकते है, रही बात उनकी जीवन शैली में परिवर्तन लाना; आपको अपने आप पर विश्वास होना चाहिए कि जिस बेटी को आपने अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी है वह अपने इस कौशल से अपने जीवन को सवारने की शक्ति रखती है। बढती उम्र तक बेटियों की शादी न होना उसमें सामाजिक रूप से सभी को एक मत होकर सोचना होगा कि जीवन का एक महत्वपूर्ण पुरुषार्थ को समय पर पूर्ण करना एक सामाजिक धर्म है। आज की परिस्थितियों को देखकर यह स्पष्ट नजर आने लगा है कि लड़के-लड़कियों के जवां होते सपनों पर न तो किसी समाज के कर्ता-धर्ताओं की नजर है और न ही किसी रिश्तेदार और सगे संबंधियों की। हमारी सोच एवं मानसिकता; हमें क्या मतलब है में; उलझ कर रह गई है। निसंदेह यह सच किसी को कड़वा लग सकता है, लेकिन हर समाज की हकीकत यही है। यह बात से सभी बाकिफ है कि पूर्ण मानसिक रूप से परिपक्यता 25-30 वर्ष तक लड़कियों में आ जाती है, लड़कियों में 18-25 के बीच का दौर ससुराल के वातावरण, परिस्थिति, रिश्ते-नाते एवं सम्रद्धि की सोच विकसित करने का दौर होता है, उसे यहाँ कई जिम्मेदारियों एवं अवसर को सीखने का मौका मिलता है जो जीवन को खुशहाल एवं जीवन शैली को परिपक्यता लाने में मददगार होता है; वही इस उम्र तक शादी न होना इस पक्ष को कमजोर बनता है एवं अधिक उम्र में शादी ससुराल में सामंजस को संघर्षमय बनाता है; क्योंकि उनकी आदतें पक्की और मजबूत हो जाती हैं अब उन्हें मोड़ा या झुकाया नहीं जा सकता जिस कारण घर में बहस, वाद विवाद, तलाक जैसे परिस्थिति हो जाती है, जिससे लड़का-लड़की में अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती है।
आधुनिक जीवन शैली का प्रभाव – आधुनिक जीवन शैली एवं अधिक शिक्षा-दीक्षा के चलते अभी सरकार ने शादी के लिए लड़की की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल का करने का फैसला लिया है। यहाँ तक ठीक है कि शादी कम से कम 21-22 वर्ष तक हो जानी चाहिए। यह लड़के के लिए भी लागू हो कि उनकी शादी 25 तक हो ही जाये वह अपने जीवन का लक्ष्य इसके बाद भी पूरा कर सकते है। ससुराल के लोग बहु को बेटी जैसी सुविधायें एवं अधिकार दे, शादी के बाद भी उसकी शिक्षा एवं अवसर को हासिल करने का मौका प्रदान करें तो यह चुनौती कभी चिंता नहीं बनेगी। एक समय था जब संयुक्त परिवार के चलते सभी परिजन अपने ही किसी रिश्तेदार व परिचितों से शादी संबंध बालिग होते ही करा देते थे। मगर बढ़ते एकल परिवारों ने इस परेशानी को और गंभीर बना दिया है। अब तो स्थिति ऐसी हो गई है कि एकल परिवार प्रथा ने आपसी प्रेम व्यवहार ही खत्म सा कर दिया है। अब तो शादी के लिए जांच पड़ताल में और कोई तो नकारात्मक करें या न करें अपनी ही खास सगे संबंधी नकारात्मक विचार से संबंध खराब कर देते है।
उच्च शिक्षा एवं रोजगार के चलते बढती उम्र – वैसे हम सब को भलीभांति ज्ञात है कि शिक्षा शुरू से ही मनुष्य के लिए एक मूल आवश्यकता रही है, इसके वदौलत ही हमें अपने जीवन को निखारने के नये आयाम मिलते है लेकिन पिछले दो दशक से इस आवश्यकता को उच्च शिक्षा एवं भरण-पोषण वाली डिग्री के तरफ बढ़ते अंधाधुंध प्रभाव देखा जा सकता है। इस कारण से लगभग सभी लड़के-लड़कियों की उम्र 25 पार हो रही है, 25 के बाद 2-3 साल जॉब, बिजनेस करने के बाद शादी की बात का नम्बर लगता है। इसके चलते लड़के-लड़कियों की उम्र 30 के आसपास हो जाती है, इस समय तक रिश्ता हो गया तो ठीक नहीं तो इसके बाद लोगो का नजरिया बदल जाता है और अधिक उम्र के लड़के-लड़कियों से रिश्ता ज़माने में कई सबाल उठने लगते है।
एकांकीपन से हटकर मिडएटर बनना होगा – उम्र का इस पड़ाव में आने के बाद न केवल लड़का-लड़की बल्कि उनके माता-पिता, भाई-बहिन, घर परिवार और सगे सम्बंधियो की चिंता बढ़ता है वल्कि सभी की तमाम कोशिशे भी असफल हो जाती है, यदि कभी इन कोशिशों से बात जम भी गई तो यह बात कहना मुश्किल है कि यह रिश्ता कितना सफल होगा। हम सभी जानते है कि शादी-विवाह के लिए किसी न किसी मिडएटर की जरुरत पड़ती है परन्तु इस उम्र में कोई मिडएटर की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता। परन्तु रिश्ता ज़माने में मिडएटर का एक बहुत बड़ा योगदान होता है; इसलिए सभी को निःस्वार्थ यह दायित्व निभाने के लिए अवश्य आगे आना चाहिए। यदि हम किसी के लिए मिडएटर नहीं बनेंगे तो हमारे लिए कौन मिडएटर बनेगा? यह भी देखा गया है कि बड़ी उम्र में शादी न जुड़ने की वजह से कई परिवार को अपनी मनोकामना के लिए मंदिर, पूजा -पाठ, भगवान को मनाने के लिए दान दक्षिणा में उलझ जाते है और अपना पैसा व समय बर्वाद करते है। बगैर मिडएटर के कोई मेट्रोमोनी व बायोडाटा से सम्बन्ध होना मुश्किल ही होता है। मिडएटर का सामाजिकता से हटकर एकांकीवाद का शिकार होते जा रहे है।
युवा मन की उलझन – इस उम्र में अपनी व्यथा सुनाने के लिए कहाँ जाए युवा मन? बस युवा अपने भाग्य के भरोसे अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगता है। अपने उम्र के किसी लड़का या लड़की को अपने जीवन साथी के साथ देखकर उसके मन में अपने-आपके प्रति आपमान का महसूस करने लगता है। ऐसे समय में युवा मन आपनी आत्मग्लानी से परिपूर्ण होने लगता है, मन में अवसर का कडवा घूट पीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस स्थिति में कई बार लड़के-लडकियाँ गलत कदम उठाने को मजबूर हो जाते है जिसका एक सभ्य समाज कल्पना भी नहीं करता।
आसमानों और सपनो की चाहत – हर परिवार अपने और अपनी लड़की की चाहत का ख्याल रखते हुए जीवन साथी की तलाश में जुटे होते है।बेटी के ससुराल में जीवन के विलासिता से जुडी सारी सुविधायें खोजते-खोजते लड़की की बढती उम्र का भान भी नहीं रहता। लड़के पक्ष की तगड़ी कमाई एवं सपने पूरे करने का हर समान का होना; जैसे शादी की मुख्य शर्त हो, कई बार उसके कौशल एवं संस्कार को परे रखकर हैसियत पर आकर बात अटक जाती है। परन्तु जिस चीज को हम लड़के में एवं उसके परिवार में खोजते फिरते है; क्या इस चीज के लिए अपना स्वयं का बेटा पूर्ण करने में समर्थ है या दूसरे की बेटी लाने के लिए यह शर्त पर हम स्वयं खरे उतरते है; आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। शायद ही कोई परिवार होगा जो आदिकाल से अमीर रहा हो, सभी अपने जीवन में संघर्ष करते हुए इस मुकाम तक पहुँचे है। जब हम एक अच्छा मुकाम तक पहुच गए है, संघर्ष से डरने की क्या बात! अपने कौशल से सभी अपने लक्ष्य तक पहुँचे है, इसके लिए हमें अपने बेटा-बेटी को तैयार करने की आवश्यकता है।
समाज को आगे आना होगा – हर वर्ग बेटा-बेटियों की शादी के लिए जूझते हुए देखा जा सकता है; हर परिवार किसी न किसी प्रकार से इस समस्या का सामना कर रहा है। लोग आज समाजसेवा के लिए व समाज में नाम कमाने के लिए लाखो रूपये खर्च करने से नहीं कतराते है लेकिन अवसाद यह है कि हर समाज में बढती उम्र में शादी के विषय में चर्चा करने के लिए समय ही नहीं है। “जिसका दोना ढरकेगा वही रुखा खायेगा” इससे समाज को क्या लेना-लेना। यह भावना बहुत चिंताजनक है। समाज की ऐसी सोच से समाज विकास संभव नहीं है उन्हें अपने दायित्वों से दूर न होकर इस और अपना ध्यान आकर्षण कर इस चिंता से निलकने के विषय में घोर चिंतन करने की आवश्यकता है। हो सकता है कि इस मुद्दे में बहुत से सामाजिक संस्थाओं ने काम किया भी होगा; परन्तु यह मिशन के रूप में सभी समाज में चलाने की आवश्यकता है जिससे इस मुद्दे का एक सकारात्मक समाधान नजर आयें। हम सब को एक मंच में आकर सकारात्मक सोच के साथ ऐसे लडको-लड़कियों व परिवार की सोच को बदलने हेतु सभी को मजबूत पहल के साथ लड़का-लड़कियों की यथासंभव रिश्ता करवाने का प्रयास करे। यह छोटी सी पहल एक बड़ी चिंता एवं चुनौती से मुक्त करने के लिए एक उज्वल कदम साबित हो सकता है।
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार है)
लेखक/ सामाजिक विचारक श्याम कुमार कोलारे, छिन्दवाड़ा, (मध्यप्रदेश)