Sunday, September 22, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार » बदतर होते हालातों में श्रीलंका

बदतर होते हालातों में श्रीलंका

चीन के कर्ज में फंसे श्रीलंका के हालात दिन प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। पूरे देश में खाद्य सामग्री का संकट इतना गहरा हो गया है कि जनता के लिए अपना पेट भरना मुश्किल हो गया है। गौरतलब यह है कि चीन सहित अनेक देशों के कर्ज तले दबा श्रीलंका अब दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार काफी अधिक घट गया है। इस कमी के कारण देश में ज्यादातर सामानों सहित दवाइयां, पेट्रोल व डीजल आदि का विदेशों से आयात नहीं हो पा रहा है। इस कारण मंहगाई की मार से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। ताजा हालातों की बात करें तो एक ब्रेड का पैकेट 0.75 डॉलर यानि कि 150 रुपये में खरीदना पड़ रहा है। इसी तरह सब्जियों के दाम भी आसमान पर पहुंच गए हैं। श्रीलंका में इन दिनों एक किलोग्राम चीनी 290 रुपये, एक किलोग्राम चावल 500 रुपये, 400 ग्राम मिल्क पाउडर 790 रुपये, एक लीटर पेट्रोल 254 रुपये, एक लीटर डीजल 176 रुपये एवं रसोई गैस का सिलेन्डर 4149 रुपये में मिल रहा है।

नवीनतम आंकड़ों से यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि देश में रसोई गैस और बिजली की कमी के कारण तकरीबन एक हजार बेकरी बंद हो चुकी हैं और जो बची हैं उनमें भी उत्पादन ठीक से नहीं हो पा रहा है। बिजली का उत्पादन भी लगभग बंद होने की स्थिति में है। खाने पीने के सामान पर आयात की पड़ी मार से मंहगाई चार गुना तक बढ़ चुकी है। इस बीच कई श्रीलंकाई नागरिकों ने भारत की ओर रुख कर लिया है। श्रीलंका में अभूतपूर्व आर्थिक संकट के बीच 22 मार्च को तकरीबन 16 शरणार्थी दो जत्थों में तमिलनाडु पहुंचे थे जिन्हे अगले दिन रामनाथपुरम की एकअदालत में पेश किया गया था। तमिलनाडु इंटेलीजेंस की माने तो 2000 श्रीलंकाई शरणार्थी किसी भी समय भारत में दाखिल हो सकते हैं। इससे पहले 1989 के गृहयुद्ध के समय कुछ इसी तरह का पलायन हुआ था। कहीं श्रीलंका अब उसी संकट की तरफ तो नहीं बढ़ रहा है।

श्रीलंका को पर्यटन से 3.6 अरब डॉलर की कमाई होती है लेकिन यह भी बंद चल रहा है। श्रीलंका में 30 प्रतिषत पर्यटक रूस, यूक्रेन, पोलैण्ड एवं बेलारूस से आते हैं। यूक्रेन युद्ध का असर श्रीलंका के पर्यटन को डुबो चुका है। इससे पहले कोरोना का असर भी इस पर था। इसलिए पर्यटन से होने वाली इनकम घट गई है। संकट का एक कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी का होना भी है। इन स्थितियों के चलते श्रीलंका के सामने दोहरी चुनौती आ खड़ी हो गई है। एक तरफ उसे अपनी जनता को मुश्किल से उबारना है तो वहीं दूसरी तरफ विदेशी कर्ज का भुगतान करना है। श्रीलंकाई संकट के पीछे उसकी सरकारी नीति भी कुछ हद तक जिम्मेदार है। वहां की सरकार ने कुछ समय पहले रासायनिक खाद पर प्रतिबंघ लगाकर शत प्रतिशत जैविक खेती करने का निर्णय लागू किया था। सरकार के इस फैसले से कृशि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ। ऑकलन है कि इस निर्णय के कारण कृशि का उत्पादन शीघ्र ही आधा रह गया। जब चावल और चीनी की किल्लत हुई तो जमाखोरों ने इस कमी को और विकराल बना दिया। श्रीलंका सरकार के सामने अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोश से मदद लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।श्रीलंका में नवम्बर 2021 में मंहगाई दर 9.9प्रतिशत थी, जो दिसम्बर में 12.1 फीसद पहुंच गईं। अब यह और ज्यादा है। इसीलिए वहां की जनता त्राहिमाम कर रही है। यह सब उसके बढ़ते चीनी कर्ज के कारण हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ चीन अपने कर्ज का शिकंजा लगातार बढ़ाता जा रहा है और श्रीलंका को इस संकट से निपटने का कोई रास्ता सूझ नहीं रहा है। इसका मुख्य कारण है श्रीलंका का चीन पर अधिक निर्भर हो जाना और अब वह इस जाल से निकल नहीं पा रहा है। दरअसल चीन ने भारत को घेरने की ’’स्ट्रिंग्स आफ पल्स’’ रणनीति के तहत श्रीलंका को एक महत्वपूर्ण मोती मानकर अपने साथ ले लिया। यही नहीं चीन की अत्यन्त महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भी श्रीलंका को एक विशेष हिस्सा बना लिया। चीन की इस चाल को श्रीलंका समझ नहीं सका और उसके जाल में फंसता चला गया। श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट के बीच एक अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा है कि श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए फिर से विचार करने की जरूरत है।श्रीलंका पर चीन का कर्ज इस तरह बढ़ा कि उसका हंबनटोटा जैसा महत्वपूर्ण बन्दरगाह लीज पर चीन के हाथों में चला गया। श्रीलंका को चीनी फर्टिलाइजर कंपनी के भुगतान को खारिज करने पर उसके पीपुल्स बैंक को भी ब्लैक लिस्ट में डाला गया। इस तरह चीन के कर्ज जाल में फंसकर श्रीलंका काफी परेशान है। इसी परेषानी से निपटने हेतु भारत ने गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका को खाद्य उत्पादों, दवाओं एवं अन्य जरूरी चीजों की खरीद के लिए एक अरब डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान करने की घोषणा 17 मार्च को की है। इसी दिन दोनों देशों के बीच इस पर हस्ताक्षर भी किए गए। इस ऋण सुविधा के समझौते पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और श्रीलंका सरकार ने हस्ताक्षर किए। यह जानकारी विदेश मंत्री एस जयशंक रने ट्वीट करके दी और कहा कि भारत के लिए पड़ोसी प्रथम है और भारत श्रीलंका के साथ खड़ा है।

इससे पहले 15 जनवरी को वर्चुअल वार्ता में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और श्रीलंका के वित मंत्री बासिल राजपक्षे के बीच आर्थिक स्थिति पर चर्चा हुई थी। इस चर्चा में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने राजपक्षे को आश्वस्त किया कि भारत हर स्थिति में श्रीलंका के साथ है और हरसंभव तरीके से मुश्किल हालातों से उबरने में उसकी मदद करेगा। इस वार्ता में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोनों देशों के प्राचीन संबंधों का हवाला देते हुए कहा कि भारत उन संबंधों कोहमेशा कायम रखेगा। इस दौरान भारत के सहयोग वाली परियोजनाओं पर भी बातचीत हुई जिन्हें मजबूती देकर श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है। इस वार्ता में बासिल राजपक्षे ने भारत के हमेशा से रहे सहयोगी रुख की प्रशंसा की और उसके लिए आभार भी व्यक्त किया। इस दौरान उन्होंने बन्दरगाह, बुनियादी सुविधाओं, उर्जा, वैकल्पिक उर्जा और औद्योगिक क्षेत्र में श्रीलंका में भारत के निवेष की विषेश आवश्यकता बताई।

 ‘डॉ0 लक्ष्मी शंकर यादव’

{ लेखक सैन्य विज्ञानविषय के प्राध्यापक रहे हैं }