पत्रकार जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, कहा इसलिए जाता है कि पत्रकारिता मे आज सच कम और चाटुकारिता के मायने ज्यादा है। अब पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय बन गया है। अब गलत को सही और निजी हितों को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है अगर कुछ समय बाद पत्रकारिता का अस्तित्व खतरे में हो तो कोई आश्चर्य नहीं है और यही आजकल देखने में भी आ रहा है। गंभीर अपराधों पर भी आज मीडिया चुप्पी लगाए रहती है। धर्म की राजनीति और राजनेताओं की जी हुजूरी करती खबरें तो यही दर्शाते हैं कि चाटुकारिता करिए और प्रभु के गुण गाइए।आज यदि कोई पत्रकार सच के लिए आवाज उठाता है तो वह देशद्रोही हो जाता है। अभी कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश और यूपी के कानपुर में एक पत्रकार को वस्त्रहीन करके पिटाई और पूछताछ की गई। पत्रकार के गले में किसी चैनल का आई कार्ड था। यह अत्यंत निंदनीय कृत्य था लोकतंत्र के चौथे स्तंभ कहे जाने वाले जगत के लिए। पिटाई किस आधार पर की गई और आरोप क्या था? पूछताछ करने के लिए वस्त्रहीन करना जरूरी था क्या? जो वीडियो वायरल हुआ है उसमें इन बातों का जिक्र नहीं है। इस तरह का वीडियो वायरल करके भला पुलिस ने अपनी कौन सी मर्दानगी साबित कर दी। लेकिन, पत्रकारिता की इस दुर्दशा के लिए सिर्फ सत्तातंत्र ही नहीं खुद पत्रकार भी जिम्मेदार है। वास्तविक पत्रकारिता मे उस बात की अभिव्यक्ति मिलनी चाहिए, जिसे जनता सोचती है। इसी कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनता का मूल अधिकार माना गया है। प्रेस वास्तव मे ही जन-विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। इसी संदर्भ में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था,” समाचार-पत्र का एक उद्देश्य जनता की इच्छाओं-विचारों को समझना और उन्हें व्यक्त करना है, दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जाग्रत करना और तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भयतापूर्वक प्रकट करना है।” नैपोलियन का यह कथन कि पत्रकारिता के क्षेत्र मे कार्य करने वाले लोग शिकायतखोर, टीकाकार, सलाहकार, बादशाहों के प्रतिनिधि और राष्ट्र के शिक्षक होते है। चार विरोधी अखबार हजार संगीनों से अधिक खतरनाक माने गये है। प्रसिद्ध शायर अकबर इलाहाबादी का यह शेर अखबार के महत्व को प्रतिपादित करता है, “खींचो न कमानों को न तलवार निकालों, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालों”। यदि निजी स्वार्थों और चाटूकारिता को दरकिनार नहीं किया गया तो इस तरह की दबंगई भी झेलनी तो पड़ेगी ही।