Thursday, May 9, 2024
Breaking News
Home » सम्पादकीय » विकृतियों का खतरा

विकृतियों का खतरा

ऐसा महौल बनता सा जा रहा है कि भारतीय समाज हिंसक एवं असभ्य होता जा रहा है। सुर्खियों पर अगर विचार करें तो ऐसा महसूस हो रहा है कि एक ऐसा हिंसक समाज बन रहा है, जिसमें कुछ लोगों को दिन भर में जब तक किसी ना किसी तरह का अपराध कारित कर देते है तब तक उन्हें बेचैनी-सी रहती है। हालांकि ऐसे कृत्य कोई नये नहीं हैं। इतिहास में ऐसे कुछ विकृत दिमागी लोग हुए हैं, जिन्हें यातना देकर या परेशान करके किसी को मारने में आनंद आता था। उन्हें एक अलग तरह की अनुभूति हो थी, लेकिन आधुनिक सभ्य समाजों में ऐसी प्रवृत्ति का कायम रहना गहन चिन्ता का विषय है। यह समझना मुश्किल होता जा रहा है कि शिक्षा का स्तर आधुनिक होने के बावजूद वर्तमान के लोगों में असहिष्णुता, असहनशीलता और हिंसा की प्रवृत्ति इतनी कैसे बढ़ रही है कि जिन मामलों में उन्हें कानून की मदद लेनी चाहिए, उनका निपटारा भी वे खुद करने लगते हैं और कानून हांथ में ले रहे हैं।
ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति का चरित्र देश का चरित्र है। जब चरित्र ही बुराइयों की सीढ़ियां चढ़ने लग जाये तो भला कौन निष्ठा के साथ देश का चरित्र गढ़ सकता है और लोक तंत्र के आदर्शों की ऊंचाइयां सुरक्षित कैसे रह सकती हैं? सवाल यह भी उठता है कि जिस देश की जीवनशैली हिंसाप्रधान होती है, उनकी दृष्टि में हिंसा ही हर समस्या का समाधान है ? अनेक उदाहरण सामने आ चुके हैं और लोगों ने मामूली बात पर या कहा-सुनी होने पर खुद इंसाफ करने की नीयत से कानून को अपने हांथ में ले लिया और किसी की हत्या करके अफसोस की बजाय कई लोग गर्व का अनुभव करते दिखे हैं। ऐसा देखने को मिला है कि मानो किसी की जान ले लेना अब खेल जैसा होता गया है।ऐसे में सवा ठना लाजिमी है कि क्या लोगों में पुलिस और न्याय व्यवस्था के प्रति भरोसा कमजोर हुआ है?
ऐसा भी दिखाई देता है कि सरकारों की आलोचना के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता या असहनशीलता का रुझान अब आम आदमी तक पहुंच रहा है। हम एक समाज के तौर पर उन लोगों के प्रति और अधिक असहिष्णु बन रहे हैं जो विरोधी विचार रखते हैं और यहां तक कि ऐसे लोग भी जो अलग मत का पालन करते हैं। अनेक जघन्य अपराधों के मामले बढ़-चढ़ कर सामने आ रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि आपराधिक मानस वाले लोग एक बार फिर बेखौफ होने लगे हैं। वहीं किसी को सबक सिखाने का यह तरीका तो नहीं हो सकता कि उसे जान से ही मार डाला जाए।
पिछले कुछ सालों से जिस तरह उन्मादी तत्व समाज को सुधारने के नाम पर हिंसा को हथियार के रूप में इस्तेमाल करते देखे जाने लगे हैं। वह विचारणीय है। वहीं अनेक अपराधियों को समाज के कई लोग सम्मानित करते दिखे हैं ऐसे कृत्यों से सामाजिक मूल्यों को गहरा आघात लगा है। यह बड़ी चिंता का विषय है। इससे समाज में विकृतियां पनपने का खतरा पनप रहा है।