Saturday, May 4, 2024
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चीनी आक्रामकता का सामना करेंगे भारत-ताइवान

दो अक्टूबर को ताइवान के अनौपचारिक राजदूत बौशुआन गेर ने एक साक्षात्कार में क्षेत्र में चीन के आक्रामक रुख का जिक्र करते हुए कहा कि भारत और ताइवान दोनो एक अधिनायकवादी चीन का सामना कर रहे हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि उसकी निरंकुशता के खतरे एवं विस्तार को ध्यान में रखकर भारत और ताइवान को न केवल निकट रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की जरूरत है बल्कि आवश्यक है। उन्होंने पूर्व और दक्षिण चीन सागर, हांगकांग और गलवान घाटी में में तनाव को रेखांकित करते हुए कहा कि कि इस खतरे से निपटने के लिए भारत और ताइवान को हाथ मिलाने की जरूरत है। चीन की सैन्य आक्रामकता के मद्देनजर ताइवान की खाड़ी में न्याय, शान्ति और स्थिरता के लिए खड़े रहने के लिए उनका देश भारत की सराहना करता है। इस समय भारत और ताइवान साइबर, समुद्र, अंतरिक्ष, हरित उर्जा, खाद्य सुरक्षा, पर्यटन और पाक कला के क्षेत्र में सहयोग बढ़ा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि भारत और ताइवान के साथ औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं लेकिन दोनों के बीच व्यापारिक संबंध हैं। नई दिल्ली ने 1995 में ताइपे में दोनों पक्षों के बीच बढ़ावा देने के लिए भारत-ताइपे संघ की स्थापना की गई थी। अब उम्मीद है कि ताइवान से सम्बन्ध बढ़ेंगे। गौरतलब है कि ताइवान के मुद्दे को लेकर अमेरिका व चीन की तनातनी बराबर जारी है। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का एक साक्षात्कार टीवी चैनल सीबीएस न्यूज द्वारा 18 सितम्बर को प्रसारित किया गया था। 60 मिनट के इस कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि चीन द्वारा हमले की स्थिति में क्या अमेरिकी सेना, अमेरिकी पुरुष और महिलाएं ताइवान की रक्षा करेंगे। तो इसका जवाब उन्होंने हां में दिया। इस साक्षात्कार के प्रसारण के बाद से अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका और चीन के बीच ताइवान को लेकर तनातनी और गहरी हो गई है। जो बाइडेन के इस ताजा बयान के बाद व्हाइट हाउस ने एक बार फिर दोहराया है कि ताइवान को लेकर अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वैसे ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति हमेशा रणनीतिक अस्पश्टता वाली रही है। ताइवान की रक्षा के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध नहीं है लेकिन विकल्प को खारिज नहीं करता है। इस मुद्दे पर अमेरिका काफी दिनों से कूटनीतिक नरमी बरत रहा है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका एक चीन नीति का पालन करता है जो बीजिंग के साथ उसके संबंधों की मुख्य आधारशिला है।
इसके अगले दिन ताइवान के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी सरकार के ताइवान की सुरक्षा के पक्के वादे की पुष्टि करने के लिए धन्यवाद किया। विदेश मंत्रालय ने साथ में यह भी कहा कि ताइवान क्षेत्रीय स्थिरता की रक्षा के लिए दबंग तरीके से विस्तार एवं हमले का विरोध करेगा और अमेरिका एवं समान सोच वाली अन्य सरकारों के साथ सुरक्षा साझेदारी को गहरा एवं निकट बनाया जाएगा। जो बाइडेन का यह बयान ऐसे समय में आया है जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सरकार ने समुद्र में मिसाइल दागकर और ताइवान के निकटवर्ती इलाकों में लड़ाकू विमान उड़ाकर ताइवान को धमकाने का प्रयास किया है। ऐसे में अब तनाव का बढ़ना स्वाभाविक हो गया है। चीन से तनाव के बीच अमेरिका ने कुछ दिन पहले ही ताइवान को एक अरब डॉलर से अधिक के हथियार देने की घोषणा की है। निश्चित है कि इन हथियारों से ताइवान की ताकत काफी बढ़ जाएगी।
जो बाइडेन के बयान के बाद चीन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि वह ताइवान के शांतिपूर्ण एकीकरण के लिए पूरी इमानदारी से प्रयास करेगा और देश को विभाजित करने के उद्देश्य से की गई किसी भी गतिविधि को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने बाइडेन के साक्षात्कार पर कहा कि उन्होंने ताइवान से संबंधित तीन संयुक्त शासकीय परिपत्रों का गंभीर उल्लंघन किया है। बाइडेन की टिप्पणी ने ताइवान की स्वतन्त्रता का समर्थन नहीं करने की अमेरिकी प्रतिबद्धता का गंभीर रूप से उल्लंघन किया है। इससे ताइवान की स्वतन्त्रता की मांग करने वाली ताकतों को एक गलत संकेत दिया है।
23 सितम्बर को न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच तकरीबन 90 मिनट तक चली प्रत्यक्ष एवं ईमानदार वार्ता में ताइवान पर ध्यान केन्द्रित किया गया। इस वार्ता में चीन ने अमेरिका पर ताइवान के मसले पर बहुत गलत एवं खतरनाक संकेत भेजने का आरोप लगाया। जबकि अमेरिकी विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि हमारी लम्बे समय से चली आ रही चीन नीति में फिर से कोई बदलाव नहीं किया गया है। ताइवान जल डमरूमध्य में शान्ति और स्थिरता बनाए रखना अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। दोनों विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अमेरिका ताइवान पर गलत व खतरनाक संकेत दे रहा है और ताइवान की स्वतन्त्रता गतिविधि जितनी अधिक उग्र होगी, उतना ही शान्तिपूर्ण समझौता होने की उममीद कम होगी। विदेश मंत्रालय ने यह भी दोहराया कि ताइवान का मसला चीन का आंतरिक मामला है और अमेरिका को इसे हल करने के लिए इसमें हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है।
चीन व अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव से युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। इस कारण साउथ चाइना सी में जंग की तैयारियां बढ़ रहीं हैं। अमेरिका के ताइवान स्टेट में आने से चीन बुरी तरह से बौखलाया हुआ है और उसने वहां विनाशक हथियारों को तैनात कर दिया है। ताइवान स्टेट में जैसे ही अमेरिका का डेस्टर घुसा वैसे ही चीन ने अपने वारषिप पीछा करने के लिए भेज दिए। इसके बाद चीन ने ताइवान में अपने जंगी जेट और जहाजों को भेज दिया। कुल मिलाकर ताइवान सीमा में चीन के 50 से ज्यादा लड़ाकू विमान तथा 10 से अधिक युद्धपोत तैनात कर रखे हैं।
इस तरह चीन ने ताइवान स्टेट में युद्ध का मोर्चा तैयार कर दिया है। चीन ने जो यौद्धिक चक्रव्यूह बनाया है उसके तहत साउथ चाइना सी में दो नए पनडुब्बी बेस बना लिए हैं। ये पनडुब्बी बेस हेनान द्वीप के यूलिन नेवल बेस पर बनाए गए हैं। यहां पर चीन के चार बेस पहले से ही बने हुए हैं। अब यह संख्या 6 हो गई है। युद्धपोतों के मामले में चीन की नौसेना दुनिया की नंबर वन नौसेना है। अब वह अपनी नौसैन्य ताकत बढ़ाने के उद्देश्य से नए युद्धपोतों का निर्माण कर रहा है। दूसरी तरफ ताइवान भी शान्त नहीं बैठा है और 10 नए कार्बेट तैयार कर रहा है। इनमें से ष्यंग फेंग द्वितीय एवं श्यंग फेंग तृतीय एंटी मिसाइलों से लैस होंगे। ये चीन के जहाजों की जल समाधि बनाने में सक्षम हैं।
चीन प्रशान्त महासागर में भी नए सुरक्षा समझौते कर रहा है और कृत्रिम टापुओं का निर्माण कर रहा है। चीन असैन्य नौकाओं और पोतों के जरिए ऐसे काम करने की कोशिश कर रहा है जो सीधे तौर पर सेना की मदद से नहीं किए जा सकते हैं। चीन ऐसा इसलिए करता है जिससे वह विवादित द्वीप समूहों पर अपने कब्जे का दावा कर सके। इस तरह चीन अपनी समुद्री क्षमता बढ़ाने में लगा हुआ है। – डॉ0 लक्ष्मी शंकर यादव
(लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक रहे हैं)