दीपक का मयूख प्रतीक है आस ,सूक्ष्म तरणि का अनुपम विश्वास।
वसुंधरा का नूतन ज्योति से श्रृंगार, विभावरी में आलोक का प्रसार।
दीपावली का पर्व अपूर्व आशा, उत्साह और जगमग प्रकाश से आलौकित तम का विनाशक पर्व है। दीपावली पर्व हमें दीपक की तरह प्रकाशवान होने का संकेत देती है। दीपक अपने न्यून प्रकाश के साथ अंधेरे को चीरने का संकेत देता है अर्थात स्वयं के अस्तित्व को कभी नहीं भूलना चाहिए। प्रयास छोटा ही सही परंतु पूर्ण आत्मविश्वास के साथ होना चाहिए। जीवन में छोटे प्रयास के साथ भी विजय की शुरुआत की जा सकती है। दीपक के साथ हमें एक और चीज सीखने को मिलती है जिसमें तेल और बाती निरंतर जलते है और पूरा श्रेय दीपक को मिलता है अर्थात जीवन में कभी भी श्रेय के लिए कर्म न करें और यश न मिलने पर भी दूसरों के सहयोग को तत्पर रहें।
करें कर्मो का अनूठा दीप प्रज्वलन, तम रूपी दनुज का उन्मूलन।
महीप सीतापति का आगमन, मुमुक्षु और वैभव का आह्वान।
हम सभी को समाज में प्रसन्नता के दीप प्रज्वलित करने होंगे जोकि प्रत्येक परिस्थिति में साहस और मुस्कान के साथ उजला होने को प्रेरित करता है। कोरोना त्रासदी के बाद हमें समाज में व्याप्त कष्ट और पीड़ा को दूर करने का मिलकर भरसक प्रयास करना होगा। इस कष्ट रूपी अंधकार का क्षय करके छोटे-छोटे सार्थक प्रयासों से आशा और उत्साह के दीप प्रज्वलित करने होंगे। हमारा प्रयास सभी के हृदय में प्रेम का प्रकाश आलोकित करने का होना चाहिए। प्रफुल्लित हृदय से आलोक और तम को समान रूप से स्वीकार करें। जीवनदायनी इस धरा को मनोहर और प्रकाशवान रूप दे। थोड़े से प्रयास से यदि औरों के जीवन में भी खुशी के दीप जला सके तो निश्चित ही प्रकाश पर्व पूर्णतः सार्थक सिद्ध होगा। मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के आगमन पर सभी प्रजाजन ने हृदय से आलौकित होकर खुशियों के दीप प्रज्वलित किए थे। दीपोत्सव का त्यौहार हमें हर्षउल्लास के साथ प्रसन्नता के दीपक प्रज्वलित करने की ओर अग्रसर होने का संदेश देता है। इस प्रकाशपर्व में हमें अपने नकारात्मक विचारों अर्थात ईर्ष्या, जलन, दंभ, दर्प, अहंकार, मोह-माया, संत्रास इत्यादि तम को विनाशित करना होगा। इस दीपोत्सव वैचारिक सुदृढ़ता के साथ नवीन, ऊर्जावान और सकारात्मक विचारों के साथ दीप पर्व का आह्वान करें।
अल्पना के विपुल बहिरंग, इहलोक में हरिवल्लभा के आविर्भाव के संग ।
डॉ. रीना कहती, आस्था का प्रकाशवान,आनंदमय पर्व उत्तरोत्तर विकास के संग।।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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