विश्व इतिहास में यदि एक नजर डालें तो वैश्विक परिदृश्य में जर्मनी का सिद्धहस्त कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क के बारे में यह कहा जाता है| कि वह विदेश नीति के मामले में हमेशा पांच गेंदों से खेला करता था जिसमें तीन गेंदे हवा में तथा दो गेंदे हाथ में रखता था।और वह इस राजनैतिक कूटनीति में समय काल में सिद्धहस्त सफल राजनीतिज्ञ माना गया है। वह सदैव फ्रांस, ऑस्ट्रिया, इटली, रूस और इंग्लैंड को विदेशी मामलों में उलझाए रखने में जादूगर की तरह माहिर था।वह देश भक्त होने के साथ.साथ अपने देश को आत्मविश्वास तथा आत्म गौरव दिलाने में विश्वास रखता था और उसके पड़ोसी देश तत्कालीन समय में बड़े ही सशक्त एवं ऐश्वर्यावान थे,उन परिस्थितियों में बिस्मार्क ही ऐसा चतुर चालाक एवं बुद्धिमान राजनेता थाए जो अपने देश की तरक्की के साथ.साथ विदेशियों को भी यह एहसास दिलाता रहा है कि फ्रांस एक शक्तिशाली राष्ट्र है, वर्तमान परिपेक्ष में यदि भारत की अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बनाए रखने की नीति है वह भी इसी दिशा में जाने वाली होगी, भारत अब 1961 और 1972 वाला राष्ट्र नहीं रह गया है। जो अपने पड़ोसी देशों को मुंह तोड़ जवाब न दे सके। भारत देश की विदेश नीति में बड़े परिवर्तन हुए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने से भारत की विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन किए गए हैं। फिर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हो या एस जयशंकर प्रसाद हों। प्रधानमंत्री ने आगे बढ़कर विदेश नीति को अपना नेतृत्व प्रदान किया है और संभवत यह उनके बुद्धि कौशल का ही कमाल है की विदेश नीति में जिस तरह अमेरिका की दादागिरी या वर्चस्व रहा है। उसको समझ बूझ कर प्रधानमंत्री ने लगभग अर्ध शतक राष्ट्रों के प्रमुख लोगों से स्वयं मिलकर उनसे गहरी मित्रता कर ली है। और इस बात को वे बखूबी समझते हैं की वैश्विक स्तर पर किस देश की कितनी अहमियत है। और इसी के चलते अपने परंपरागत मित्र रूस के अलावा उन्होंने सीमा क्षेत्र में पड़ोसी राष्ट्र चीन ने 40 वर्षों में सबसे ज्यादा हानि पहुंचाने की कोशिश के परिपेक्ष में अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जापान और दक्षिण पूर्व के एशियाई देशों के शक्तिशाली देशों से अपने संबंध प्रगाढ़ एवं मजबूत बनाने की कूटनीति सफलतापूर्वक की है। इस रणनीति के चलते भारत ने चीन की विस्तार वादी नीति खिलाफ जबरदस्त तथा समयानुकूल कूटनीति को विस्तार देकर एक बुद्धिमानी पूर्वक कदम उठाया है।
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