Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

यूपी के माननीय क्यों नहीं चाहते हैं अंग्रेजों के बनाये नजूल भूमि कानून में बदलाव

देश का कोई भी हिस्सा या राज्य हो वहां पड़ी नजूल की जमीन की स्थिति ठीक वैसी ही होती है जैसे किसी एक बच्चे के कई बाप का होना। नजूल की जमीन (सरल शब्दों में सरकारी जमीन) को सब अपनी बपौती समझते हैं। गरीब जनता की तो इतनी हिम्मत नहीं होती है कि वह सरकारी जमीन पर कब्जा कर सके,लेकिन ताकतवर लोगों जिसमें नेताओं से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी और बिल्डर आदि शामिल होते हैं, के लिये यह जमीन सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित होती है। नजूल की जमीन पर कब्जा करने का सबसे आसान तरीका है उसे लीज पर हासिल कर लेना, क्योंकि जमीन का कोई मालिक नहीं होता है इसलिये सरकारी कुर्सी पर बैठे अधिकारी और बाबू ही इसके ‘मालिक’ बन जाते हैं। वह सेटिंग के सहारे नजूल की जमीन का ‘सौदा’ कर देते हैं। इसी लिये जब नजूल भूमि कानून विधान सभा से पास होने के बाद मंजूरी के लिये विधान परिषद पहुंचा तो वहां करीब-करीब सभी दलों के माननीयों ने एकजुट होकर इसे ‘ठंडे बस्ते’ में डाल दिया। यानी माननीय नहीं चाहते हैं कि नजूल जमीन के लिये कोई ऐसा नया कानून बनें जिसके चलते नजूल की जमीन को कौड़ियों के भाव फ्री होल्ड कराने का खेल बंद हो जाये। इस कानून को लेकर सत्ता पक्ष में मनमुटाव की खबरें आने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो योगी सरकार को चुनौती तक दे दी वह नजूल जमीन पर नया कानून बना ही नहीं सकते हैं। वैसे विरोध समाजवादी पार्टी की तरफ से भी कम नहीं हुआ था।

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23 साल पूर्व जब राजनाथ सरकार के ऐसे ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी थी रोक

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने अपने एतिहासिक फैसले में अनुसूचित जातियों को मिलने वाले आरक्षण प्रक्रिया मे बड़ा बदलाव करते हुए अनुसूचित जातियों में अति पिछड़ी अनुसूचति जातियों को चिन्हित करके उन्हें फायदा पहुंचाने के लिये कोटा में कोटा का जो आदेश पारित किया है। वह हिन्दुस्तान में लम्बे समय से चल रही आरक्षण की सियासत में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। अभी इस पर बीजेपी को छोड़कर किसी भी दल के बड़े नेता की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, फिलहाल सिर्फ बीजेपी ही अनुसूचित जातियों को कोटे में कोटा देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले से गद्गद है और उसके शिक्षा मंत्री धमेन्द्र प्रधान द्वारा इसेे सत्य की जीत बताया गया है। सबसे खास बात यह है कि पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण मेें जैसे क्रीमी लेयर को बाहर रखा जाता था, वैसे ही अब एससी/एसटी को मिलने वाले आरक्षण में भी क्रीमी लेयर लागू होगी।
बहरहाल, यूपी में ऐसा ही प्रयास 23 साल पूर्व 2001 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने भी किया था, जिस पर राजनाथ सिंह सरकार में ही राज्य मंत्री और शिकोहाबाद से विधायक अशोक यादव अपनी ही सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गये थे और तब सुप्रीम कोर्ट ने उनके (राजनाथ सरकार) फैसले पर रोक लगा दी थी जिसे अब उसने कानून बना दिया है। अब राजनाथ सिंह मौजूदा केंद्र सरकार में गृहमंत्री हैं।

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कौन ‘लिख’ रहा है केशव के लिए ’स्क्रिप्ट’

उत्तर प्रदेश की राजनीति भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और अब डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य आजकल सबके आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। पिछड़े समाज से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक पुराने और समर्पित कार्यकर्ता हैं। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के समय केशव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे और बीजेपी की जीत के बाद उनके सीएम बनने की चर्चा काफी जोरों से चली थीं, लेकिन ऐन मौके पर वह सीएम की रेस से बाहर कर दिये गये, जो कारण सामने आये उसमें उनके ऊपर चल रहे आपराधिक मुकदमें अहम थे। मोदी और शाह की जोड़ी नहीं चाहती थी कि केशव प्रसाद को सीएम बनाकर वह विपक्ष को हमलावर होने का मौका दें, इसके बाद बीजेपी आलाकमान की पोटली से अप्रत्याशित रूप से योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आया और उन्हें सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया गया। उस समय तक योगी की पहचान एक कट्टर हिन्दूवादी नेता की होती थी और हिन्दू वाहिनी नाम से वह एक संगठन भी चलाते थे, जो काफी एग्रेसिव होकर हिन्दुत्व को प्रखरता प्रदान करता था।

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राहुल ही नहीं, कोई भी अपनी जाति बताने में शर्मसार क्यों हो ?

हिन्दुस्तान की राजनीति में क्या राहुल गांधी होना ही काफी है। वह जो सवाल सबसे पूछते हैं, वही सवाल जब उनसे कोई पूछ लेता है तो इसमें उनका अपमान कैसे हो जाता हैं? कहीं ऐसा तो नहीं वह अभी भी मध्यकालीन सामंतवादी सोच से बाहर नहीं निकल पाये हैं। यह सच है कि राहुल ऐसे परिवार से आते हैं जिसने आजादी के बाद दशकों तक सामंतवादी सोच के साथ देश पर राज किया है, जिनकी ताकत इतनी हुआ करती थी कि देश में इनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था। इनके एक इशारे पर प्रदेश की सरकारों की तकदीर बनती बिगड़ती थी। मुख्यमंत्री और सरकारें रातोंरात बदल और गिरा दी जाती थीं। इनके द्वारा राजशाही तरीके से देश को आपातकाल में झोंक दिया जाता था, जिनके द्वारा अपने हिसाब से देश की आजादी का इतिहास लिखवाया गया, जिसको चाहा अपमानित किया गया और जिसे चाह सिर आंखों पर बैठा दिया गया। इसी लिये वीर सावरकर जैसे स्वतंत्र सेनानी को यह लोग अपमानित करते हैं। सुभाष चन्द्र बोस को परेशान किया गया।

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कोचिंग सेंटर के कारनामों का काला चिट्ठा देश के सामने आना चाहिए

आखिर हत्यारी कोचिंग की जरूरत क्या है? कोचिंग तो किसी व्यक्ति का निजी होगा। यह गर्वनमेंट का तो लगता नहीं। तो इसके लिए कोई घटना इतने बड़े देश में कहीं किसी का भी लापरवाही से हो, सिस्टम कैसे दोषी हो गया ? सिस्टम इस घटना का जांच करवायेगा। और जो भी दोषी होंगे उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो। सरकार और कोचिंग संस्थान वालो को केवल पैसा चाहिए और कुछ नहीं कोई मारे या जीए उससे उनका कोई लेना देना नहीं है। कई दूसरे कोचिंग सेंटर भी बेसमेंट में चला रहे जानलेवा लाइब्रेरी। अगर ऐसे गैर कानूनी तरीके से कोचिंग सेंटर चल रहे हैं तो उस पर कार्रवाई हो और अधिकारी पर भी कार्रवाई हो। ऐसे समय में हमें आरोप-प्रत्यारोप नहीं करना चाहिए बल्कि कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार कोचिंग इंस्टीट्यूट्स को रेगुलेट करने के लिए कानूनी लाए और कोचिंग में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स से भी इस पर सुझाव लिया जाए। रेगुलेटर द्वारा कोचिंग संस्थानों की फीस पर भी नजर रखी जाए।

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सूखा हुआ गुलाब

काश कि कोई मुझे देखकर मेरी कसक, मेरी टीस और मेरी मोहब्बत को समझ पाता कि मेरे सूखने के बाद भी मेरा रंग और खूबसूरती अभी भी बाकी है, बिल्कुल उसी तरह जब तुमने मुझे अपने प्रेम के हवाले किया था। उस वक्त मुझे बस एक ही बात खटक गई थी कि तुम्हारा हाथ लगते ही एक पंखुड़ी मेरे तन से जुदा हो गई थी। मुझे दर्द हुआ था जुदाई का, टूटने का, तड़प का, मगर तुमने मुझे जिसके हवाले किया था उसने तुम्हारे प्रेम को संभाल लिया था। मैं अभी भी लिफाफे में बंद हूं तुम्हारी पुरानी मोहब्बत की तरह लेकिन मैं उसे सूखी हुई मोहब्बत नहीं कह सकती इसीलिए तो तुमसे कह रही कि तुम्हारा प्रेम अभी भी जिंदा है। मैं खुद भी न जाने कितने अर्से से तुम्हारी बाट जोह रही हूं, सिर्फ तुम्हें बताने के लिए कि तुम टूटना मत, तुम भरोसा मत खोना मेरी मौजूदगी प्रेम पर भरोसा साबित करती है।
नीलम:- “अरे तुम यह किससे बातें कर रहे हो? इस सूखे हुए गुलाब से बात कर रहे हो? पगला गए हो का?
(हंसने की आवाज)
राजन:- ” हां मोतरमा! कभी-कभी दार्शनिक बनने को दिल चाहता है। सोच रहा था इस गुलाब के बारे में जो कभी तुमने मुझे दिया था।”
नीलम:- (मुस्कुराकर) “तुमने अभी तक संभाल कर रखा है? अरे! कभी मेरी भी मदद कर दिया करो? मेरे फूल पर कविता कर रहे हो?”
राजन:- “ये पत्नियों वाली बातें मत किया करो! मैं रोमांटिक हो रहा हूं और तुम सारा मजा किरकिरा किये दे रही हो।”
नीलम:- ” ठीक है, चाय भिजवा रही हूं। अभी तो तुम्हें उसी की जरूरत है।”

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देश विरोधी ताकतों का अड्डा बन गये हैं जन सुविधा केन्द्र

उत्तर प्रदेश में जन सुविधा केन्द्र अराजकता के अड्डे बनते जा रहे हैं। इन पर सरकारी नियंत्रण नहीं के बराबर नजर आता है। इनके कामकाज की कभी समीक्षा भी नहीं होती है,जिसके चलते यह खूब मनमानी और फर्जीबाड़ा करते रहते हैं। नकली जन्म प्रमाण पत्र से लेकर फर्जी आधार कार्ड, दिव्यांगों, वृद्धजनों, विधवा पेंशन जैसे तमाम सरकारी योजनाओं का फार्म भराने, सब में यहां धांधली का बोलबाला रहता है। आज भले ही यूपी के रायबरेली जनपद का सलोन कस्बा अवैध जन्म प्रमाण पत्र बनाने का केन्द्र बनने के कारण सुर्खियां बटोर रहा हो,लेकिन यूपी में ऐसे कई ‘सलोन कस्बे’ हैं जिन पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया है। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि बड़ी संख्या में जन सुविधा केन्द्र राष्ट्र विरोधी कृत्यों का ठिकाना बने हुए हैं।
रायबरेली के सलोन कस्बे में दूसरे प्रांतों से आए लोगों का फर्जी जन्म प्रमाणपत्र बनाने का मामला न सिर्फ गंभीर है बलिक आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है। जिस कस्बे की आबादी ही लगभग 20 हजार हो वहां एक ग्राम विकास अधिकारी की आइडी से 19 हजार से अधिक जन्म प्रमाणपत्र बना दिए गए और किसी का इस ओर ध्यान ही नहीं गया। अब यह मामला सामने आया है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि कुछ को छोड़कर सब के सब जन्म प्रमाण पत्र बंग्लादेश और रोहनिग्यां मुसलमानों के बनाये गये हैं। खास बात यह है कि यह सब थे तो घुसपैठिये मुसलमान लेकिन इनका जन्म प्रमाण पत्र हिन्दू नामों से बनाया गया था।

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डिजिटल अटेंडेंस जरूरी क्यों?

“गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर:।
गुरुदेवो परमेश्वर: गुरुदेवो भव:”।।
गुरु के सम्मान में कहे हुए यह वाक्य गुरु की महिमा को दर्शाते हैं। ज्ञान की कल्पना गुरु के बिना संभव नहीं है। एक शिक्षक ही होता है जो बच्चों को संसार की तमाम विभिन्नताओं और देश देशांतर की विभिन्नताओं से अवगत कराता है। शिक्षक बच्चों की नींव मजबूत करता है और उनका मार्गदर्शक होने के साथ-साथ उन्हें अनुशासित भी करता है। बच्चों का कक्षा में देर से आने पर वह उन्हें दंड देता है साथ ही उन्हें समय का पाबंद होना सिखाता है लेकिन आज यही समय की पाबंदी शिक्षकों के लिए मुसीबत बन गई है। आज शिक्षा पद्धति के साथ-साथ शैक्षणिक व्यवस्था में भी बहुत बदलाव आया है। आज शिक्षकों की डिजिटल हाजिरी पर तमाम सवाल खड़े हो गए हैं ऐसे कई कारण है जिसके चलते शिक्षकों का डिजिटल हाजिरी देना संभव नहीं हो पाता है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने यह मामला स्थगित कर दिया है लेकिन विचार करने जैसी बात है कि शिक्षक आखिर समय पर डिजिटल हाजिरी क्यों नहीं दे पा रहे हैं? ग्रामीण अंचलों की बात करें तो वहां स्कूल होने के बावजूद शिक्षक समय पर नहीं पहुंच पा रहे क्योंकि उनके आवास दूर-दराज इलाकों में होते हैं साधन न होने पर यातायात संसाधनों की भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है

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मिट्टी में मिलते जा रहे, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के अरमान

मिट्टी के बर्तन बनाने के अलावा इनके पास और कोई दूसरा रोजगार नहीं है, न ही कृषि करने के लिए इनके पास भूमि है। और न अन्य साधन, जिससे आय का आवक हो पाए। यह जैसे-तैसे करके अपने परिवार को पाल रहे हैं। मौजूदा दौर में एल्युमीनियम, थर्माकोल व प्लास्टिक बर्तनों का खूब चलन चला है, जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। हमारे पूर्वज अपने समय में मिट्टी, लोहे व काँसे के बने बर्तनों का उपयोग करते थे। इसलिए उन्हें मौजूदा दौर की बीमारियाँ नहीं हुईं। यदि आप भी, अपने पूर्वजों की भाँति स्वस्थ्य जीवन-यापन करना चाहते हैं तो, मिट्टी के बने बर्तनों का उपयोग भोजन बनाने के लिए करें, ताकि आपके स्वस्थ्य के साथ ही इन कुम्हारों की माली हालत में सुधार हो सके।
आधुनिक फ्रिज और एसी ने मिट्‌टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है। ये मिट्टी के बर्तन बनाकर रखतें हैं लेकिन बिक्री न होने की वजह से खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। परिवार कैसे चलेगा। कोई भी मटके खरीदने नहीं आ रहा है। धंधे से जुड़े लोगों ने ठेले पर रखकर मटके बेचने भी बंद कर दिए हैं। देश भर में प्रजापति समाज के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। कुम्हार अपना पुश्तैनी काम छोड़ नहीं सकते. इसलिए उनके पास मिट्टी के बर्तन और गर्मी के दिनों में घड़े बेचने के अलावा कमाई का दूसरा विकल्प नहीं है. हालात ये हैं कि अब कुम्हार परिवार अपने काम को जिंदा रखने के लिए कर्ज लेकर व्यवसाय कर रहे हैं।

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सरकारी स्कूल की बदहाली और गुणवत्ताउक्त शिक्षा पर सवालिया निशान!

बच्चे हमारे कल की तस्वीर है, आज हम उनके जीवन में जैसे रंग भरेंगे भविष्य में वैसी ही उनकी एक परिपक्य तस्वीर नजर आयेगी। बच्चों का उन्नत पालन-पोषण एवं उनकी शिक्षा उनका भविष्य निर्माण करती है। घर में बच्चों को जीवन कौशल, संस्कार, और सामाजिक एवं भावनात्मक विकास की शिक्षा मिलती है। समाज, दोस्त, पड़ोस बच्चों को बहरी ज्ञान एवं सामाजिकता सीखता है स इसके आलावा स्कूल ऐसा स्थान है जहाँ बच्चों को मानसिक रूप से ससक्त करने एवं जीवन कौशल का ज्ञान दिया जाता है। किसी भी बच्चे का व्यक्तित्व निखारने और उसका भविष्य संवारने में स्कूल की भूमिका सर्वाधिक होती है। स्कूल एक ऐसी जगह है, जहां बच्चों का सामाजिक विकास तेजी से होता है। हम उम्र बच्चों के साथ वे घुलमिलकर चीजों को बेहतर तरीके से समझते हैं। वैसे तो समाजीकरण के मामले में घर को सबसे बड़ा स्कूल माना जाता है। जहां पर बच्चा प्राथमिक स्तर पर सबकुछ सीखने लगता है, लेकिन इसके बाद स्कूल उसे ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में मिलता है, जिसके जरिए उसका विकास होता है।

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