Wednesday, January 22, 2025
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लेख/विचार

तनाव है तो होने दे, इसमें बुरा क्या है?

स्ट्रेस यानी तनाव। पहले इसके बारे में यदा कदा ही सुनने को मिलता था। लेकिन आज भारत समेत सम्पूर्ण विश्व के लगभग सभी देशों में यह किस कदर तेज़ी से फैलता जा रहा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज हर जगह स्ट्रेस मैनेजमेंट अर्थात तनाव प्रबंधन पर ना सिर्फ अनेक जानकारियाँ उपलब्ध हैं बल्कि इस विषय पर अनेक रिसर्च भी की जा रही हैं। कहा जा सकता है कि आज तनाव ने एक ऐसी  महामारी का रूप ले लिया है जो सीधे तौर पर भले ही जानलेवा ना हो लेकिन कालांतर में अनेक बीमारियों का कारण बनकर हमारे जीवन को जोखिम में अवश्य डाल देती है। हमारे बुजुर्गों ने भी कहा है, “चिंता चिता समान होती है”। लेकिन दिल थाम कर रखिए तनाव कितना भी बुरा हो लेकिन इस लेख के माध्यम से आपको तनाव के विषय में कुछ ऐसी रोचक जानकारियाँ दी जाएंगी जिससे तनाव के बारे में आपकी सोच ही बदल जाएगी और आप अगर तनाव को अच्छा नहीं कहेंगे तो यह तो जरूर कहेंगे कि “यार तनाव है तो होने दे, इसमें बुरा क्या है?”
यकीन नहीं है ? तो हो जाईए तैयार क्योंकि अब पेश है, तनाव के विषय में लेटेस्ट रिसर्च जो निश्चित ही आपके तनाव को कम करने वाला है।

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मैं अभी भी जल रही… निर्भया

हालांकि हमारी आदत में शुमार है भेड़चाल में चलना जैसे ही कोई मुद्दा तेजी से उभरता है हम उस पर चिल्लाना शुरू कर देते हैं और कुछ दिन बीतते ही जब सब शांत हो जाता है तो हम भी शांत हो जाते हैं। यह हमारी आदत में शुमार है और हम इसके आदी भी हैं लेकिन कुछ घटनाएं दिलोदिमाग से हटती नहीं बल्कि अक्सर याद आती रहती है। बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा का मसला कोई आज से है ऐसा नहीं है.. बरसों से चला आ रहा है। महिलाओं के प्रति अपराध भी होते आ रहे हैं लेकिन अब इनमें निरतंर बढ़ोत्तरी होती जा रही है और जब सरकार अपने काम में नकारा साबित होने लगे तो जरूरी है कि उस मुद्दे पर ध्यान दिलाया जाये।

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जनमानस में जानकारी का आभाव बना विपक्ष का हथियार

नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद से ही देश के कुछ हिस्सों में इस कानून के विरोध के नाम पर जो हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं वो अब गंभीर चिंता ही नहीं चिंतन का भी विषय बन गए हैं। हर बीतते दिन के साथ उग्र होते जा रहे आन्दोलनों और आंदोलनकारियों के हौंसलों के आगे घायल होती पुलिस और लाचार से प्रशासन तंत्र से ना सिर्फ विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठे बल्कि सरकार की नाकामी भी सामने आईं। विपक्ष इसलिए कठघड़े में है क्योंकि बात बात में गाँधी की विरासत पर अपना अधिकार जमाने वाला विपक्ष आज इन हिंसक आंदोलनकारियों के समर्थन में खड़ा है लेकिन उनसे अहिंसा और शांति के साथ अपनी बात रखने की समझाइश नहीं दे रहा। लोकतंत्र की दुहाई देने वाला विपक्ष जब लोकतंत्र के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाती अराजक होती भीड़ के समर्थन में उतरता है तो वो लोकतंत्र की किस परिभाषा को मानता है इसका उत्तर भी अपेक्षित है। संविधान की रक्षा की दुहाई देता विपक्ष जब नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाता तो है लेकिन कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना सड़कों पर उतरता है और लोगों को भृमित करने का काम करता है तो संविधान और न्यायतंत्र के प्रति उसकी आस्था पर भी उत्तर अपेक्षित हो जाता है।

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नए भारत में पुलिस की छवि की चुनौती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस नए भारत की परिकल्पना की है, उसमें पुलिस का चेहरा बदलना बड़ी चुनौती है। समूचा देश इस वक्त महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए आंदोलित है। खासकर बलात्कार और हत्या के बढ़ते अपराध पुलिस के रवैये की व्यापक आलोचना का आधार बने हैं। प्रधानमंत्री ने पुणे में आयोजित देश भर के पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के 55वें वार्षिक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया है कि महिलाओं के प्रति सुरक्षा का भाव जगाने वाली पुलिसिंग होनी चाहिए। पुलिस को अपने कामकाज और रवैये में भी बदलाव लाना चाहिए। यह एक संयोग ही है कि जिस वक्त हैदराबाद से उन्नाव तक की पुलिस कठघरे में खड़ी है, उसी वक्त पुणे में यह सम्मेलन हुआ है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों ने पुलिस सुधार की जरूरत को रेखांकित किया है। पूरे देश के पुलिस तन्त्र में शामिल अधिकारियों, पुलिस एकेडमियों को बिना वक्त गवाएं अपनी छवि बदलने की प्रभावी पहल करनी होगी। आज के भारत में पुलिसिंग की यह मौजूदा सूरत किसी हाल में स्वीकार नहीं हो सकती है। भारत की सिविल सोसाइटी अब अपराध के खिलाफ सामूहिक तौर पर सड़क पर उतरने लगी है। वह भयमुक्त माहौल और त्वरित न्याय की उम्मीद रखती है। उसे संविधान में यह सब गारंटियां दी गई हैं। ऐसे में न सिर्फ देश के राजनीतिक तन्त्र को ही संवेदनशील होना पड़ेगा, वरन अदालतों के भी सचेत होने का यही सही वक्त है। पीड़ित का पहला वास्ता पुलिस से है और यदि पहले ही कदम पर उसे मदद की जगह दुत्कार और अपमान मिलेगा तो मुश्किलें बढ़ना तय है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पुलिस की छवि कैसी है? यह किसी से छिपा नहीं है। जिस दिन प्रधानमंत्री ने पूणे में पुलिस में सुधार की नसीहत की, ठीक उसी दिन भारत के गृह मंत्रालय की एक सर्वे रिपोर्ट ने पुलिस को आइना दिखाया है। यह सर्वे रिपोर्ट पुलिस को समग्रता के साथ सोचने के लिए अवश्य विवश करेगी।

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दोहरा चरित्र–देश, समाज, संविधान के लिए खतरा- कुसुम सिंह

अभी कुछ ही दिन हुए हैदराबाद की महिला चिकित्सक का दुर्भाग्यशाली कृतघ्न सामूहिक बलात्कार व जघन्य हत्या। बात बात पर आग उगलने वाले हैदराबाद के सांसद महोदय के मुंह से एक भी शब्द इस शर्मनाक हत्याकांड के  विरुद्ध नहीं निकला। उन्होंने न तो पीड़िता के प्रति कोई संवेदना दिखाई न पीड़ित परिवार के प्रति कोई सहानुभूति न ही अपराधियों के प्रति सख्ती दिखाई और न ही इस कुकृत्य की निंदा की।वे मूक दर्शक बनकर पूरा घटनाक्रम देखते रहे शायद आनन्दित भी होते रहे। क्यों? क्या इसलिए कि पीड़िता एक हिन्दू थी या कोई और वजह?
विडम्बना देखिए, जैसे ही हैदराबाद पुलिस द्वारा अपराधियों के एनकाउंटर की सूचना प्रसारित। हुई,वे तुरंत मुखरित हो उठे।अपराधियों के मारे जाने से व्यथित हो उठे, पुलिस की कार्यवाही को कानून के घेरे में ले लिया। प्रश्न खड़ा कर दिया, कैसे पुलिस ने अपराधियों को मार गिराया, कानून अपने हाथ में कैसे ले सकते है, तुरन्त पुलिस एनकाउंटर की विशेष जांच कराई जाए।मारे गए अपराधियों के शवों का पोस्टमार्टम कराया जाय।

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एनकाउंटर नहीं त्वरित न्याय कीजिये

भारत ‘रूल ऑफ लॉ’ से चलने वाला देश है, मगर हैदराबाद काण्ड के रेपिस्टों को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराने के बाद जो हालात बने हैं, उसमें रूल ऑफ लॉ के पैरोकार जलालत के खतरों से जूझ रहे हैं। सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों ने जैसे मनोभाव जाहिर किए हैं, उसने कुछ समय के लिए बलात्कारियों का एनकाउंटर करने वाली पुलिस को हीरो बना दिया है। पुलिस पर जो फूल बरसें हैं, उनकी महक और ताजगी खत्म होते ही जन सामान्य के नथुनों में व्यवस्था की वही पुरानी सड़ांध भर जाएगी। वही भययुक्त महौल जहां बलात्कार के बाद पीड़िता की रिपोर्ट यही फूलों से नवाजी गई पुलिस नहीं लिखेगी। लिख गई तो अपराधी गिरफ्तार न होंगे और हो गए तो किसी पीड़िता को ट्रक से कुचलवा देंगे या उन्नाव की तरह जलाकर मार देंगे।
यह कोई नई बात नहीं है जब सड़ांध मारते तन्त्र से परेशान लोग अपराधियों का एनकाउंटर किए जाने की घटनाओं पर खुश हुए हैं।

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एक आवाजः समाज में बढ़ते महिला अपराधों के विरुद्ध

आज समाज में व्याप्त तमाम अपराधिक प्रवृत्तियों में सबसे ज्वलंत अपराध है महिला यौन शोषण। यह समाज की मानसिक विकृति व विक्षिप्तता की स्थिति है जो हमारे मनु स्मृति के वचन ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’ पर आधारित सनातनी संस्कृति व शिक्षा पर एक बहुत बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक व धर्मप्रधान देश में इंसानों की पाश्विक प्रवृति क्या संकेत दे रही है?
2012 में भारत की राजधानी दिल्ली में हुआ जघन्य निर्भया आपराधिक हत्या काण्ड के दोषी आज भी दंडित नहीं हुए। भारत की लचर न्यायव्यवस्था 7 वर्ष से अधिक समय लेकर भी अपराधियों को सजा नहीं सुना पायी है। जबकि अपराधी रंगे हाथ पकड़े गए, अपराध भी कुबूल किया। किन्तु न्यायव्यवस्था न जाने किस असमंजस की स्थिति में रहती है। त्वरित निर्णय ले ही नहीं पाती। अपराध पर अपराध होते जाते हैं, न्यायव्यवस्था आंखों में पट्टी बांधे बस न्याय का तराजू हाथ में थामे मूर्तिवत खड़ा रहती है।

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कौन है महिलाओं का चौकीदार ? -अनिल अनूप

आज भारत उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां तीन तलाक से मुक्ति मिल चुकी है, कश्मीर में धारा 370 से मुक्ति मिल चुकी है, अयोध्या जैसी समस्या का समाधान किया जा चुका है, समान आचार संहिता लागू करने की बात की जा रही है, हम टेक्नोलॉजी की ऊंचाइयों तक पहुंच चुके हैं पर रेपिस्ट के लिए कठोर कानून, फास्ट ट्रैक अभी तक मुकर्रर नहीं, किसी केस में फांसी की सजा मुकर्रर होती भी है तो भी विलंबित हो जाती है। ऐसे में हमारा चांद पर परचम लहराना भी वृथा है जहां धरती पर ही बेटियां महफूज नहीं। शहरों की तो बात छोडि़ए, यहां देवभूमि हिमाचल में भी वहां के लोगों को आज भी भोले-भाले लोगों की संज्ञा दी जाती है, संस्कृति, भाईचारे की बात की जाती है, सुरक्षित माहौल की बात की जाती है, यहां पर भी गुडि़या रेप केस ने पूरे हिमाचल को झकझोर कर रख दिया है और आरोपी अभी तक नहीं पकड़े गए हैं। ऐसे में बेटियां कैसे महफूज रहें।

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महाराष्ट्र गेम ओवर या ‘पवार’ गेम रईस अहमद ‘लाली’

गेम ओवर हो गया। ‘पवार’ गेम के आगे महाराष्ट्र के नंबर गेम में भाजपा की यह हालत होनी ही थी। जिस तरह सत्ता पर काबिज होने के लिए उसने हक़ीकत को नज़रअंदाज कर उतावलापन दिखाया, उससे इस खेल में उसकी हार सुनिश्चित थी। बावजूद इसके उसने हर जरिये से हर हथकंडे अपनाने की कोशिश की। और, जब अंतत: कोई चारा नहीं बचा तो 80 घंटे के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देकर शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार का रास्ता साफ करना पड़ा।
अंतत: अब यह तय हो गया है कि महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। और इस सरकार का नेतृत्व करेंगे शिवसेना के उद्धव ठाकरे। जाहिर है जब सरकार की सूरत साफ लग रही है, तो इस सरकार के भविष्य को लेकर बहस-मुबाहिसों का दौर भी शुरू हो गया है। बहुतों का मानना है कि बेमेल गठबंधन की यह सरकार ज्Þयादा दिनों तक चल नहीं पाएगी। कारण, एक तरफ शिवसेना जैसी हिंदुत्वादी विचारधारा वाली पार्टी है तो दूसरी तरफ एकदम विपरीत विचारधारा वाली एनसीपी, कांग्रेस जैसी पार्टियां। नितिन गडकरी समेत कई नेताओं ने कहा है कि यह अवसरवादी सरकार होगी और बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी। वहीं कई तो अब भी इस खेल में भाजपा को ही विजेता बता रहे हैं।

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क्या अब राजनीति की परिभाषा बदल गई ?

यह बात सही है कि राजनीति में अप्रत्याशित और असंभव कुछ नहीं होता, स्थाई दोस्ती या दुश्मनी जैसी कोई चीज़ नहीं होती हाँ लेकिन विचारधारा या फिर पार्टी लाइन जैसी कोई चीज़ जरूर हुआ करती थी।  कुछ समय पहले तक किसी दल या नेता की राजनैतिक धरोहर जनता की नज़र में उसकी वो छवि होती थी जो उस पार्टी की विचारधारा से बनती थी लेकिन आज की राजनीति में ऐसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं है । आज राजनीति में स्वार्थ, सत्ता का मोह, पद का लालच, पुत्र मोह, मौका परस्ती जैसे गुणों के जरिए सत्ता प्राप्ति ही अंतिम मंज़िल बन गए हैं। शायद इसीलिए अपने लक्ष्य को हासिल करने की जल्दबाजी में ये राजनैतिक दल अपनी विचारधारा, छवि और नैतिकता तक से समझौता करने से नहीं हिचकिचाते।

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